कोर्ट की तलवार, महाबली लाचार
अनन्त राम श्रीवास्तव
मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान, भीलन लूटी गोपिका वहि अर्जुन वहि वाण अर्थात मनुष्य नहीं समय बलवान होता है अगर मनुष्य बलवान होता तो अर्जुन के सामने कोल भील गोपिकाओं को कैसे लूट लेते। आजकल समय कोर्ट का चल रहा है। उसकी तलवार से राजनीतिक रुप से समर्थ महाबलियों पर वार पर वार कर रही है पर सब महाबली लाचार हैं। कोई चूँ तक नहीं कर पा रहा है। सभी महाबली "खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे" कहावत के अनुसार कोर्ट को कुछ न कहकर आरोपों का ठीकरा अपने विरोधियों पर फोड़ कर अपनी भड़ांस निकाल रहे हैं।
लालू यादव से शुरू हुआ कोर्ट की तलवार का वार आज तक ब-दस्तूर जारी है पर मजाल है कि शहीद अथवा उसके परिवार वाले कोर्ट के खिलाफ एक शब्द भी बोले हों। राजनीति में पारदर्शिता व शुचिता का दिखावा करने वाले महाबलियों ने अपने विरोधियों के पर कतरने के लिये कानून बना कर कोर्ट कोर्ट (न्यायालय) को यह अधिकार दे दिया कि दो वर्ष या उससे अधिक सजा पाने वाले महाबलियों को तत्काल प्रभाव से उनकी विधान सभा अथवा लोक सभा, राज्य सभा की सदस्यता समाप्त कर दी जाये। एक बार निचली अदालत से दो साल की सजा होने के बाद सदस्यता तो जा ही रही है इसी के साथ उन्हें सजा की अवधि के बाद भी 6वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
लालू यादव के बाद आजम खां, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम अपनी सदस्यता से महरूम हो चुके हैं। ताजा मामला पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के पोते व पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी के पुत्र व कांग्रेस के वायनाड से सांसद राहुल गांधी एक मानहानि के मामले में दो साल की सजा पाने के बाद अपनी संसद सदस्यता गवां चुके हैं। राहुल सहित सभी कांग्रेसी कोर्ट के बजाय इस कृत्य के लिये भाजपा पर आरोपों की झड़ी लगाये हुये हैं। इसी को कहते हैं कि जबर मारै और रोने भी न दे। कोर्ट सजा भी दे रही है और कुछ कहने भी नहीं दे रही है। बेचारे महाबली अपने विरोधी को भी कोस कर अपनी खीज न मिटावें तो क्या करें।
सुना है दीदी के खिलाफ भी महाराष्ट्र में राष्ट्र गान की अवमानना का मामला अदालत ने सज्ञान में ले लिया है। इस मामले में भी तीन साल तक की सजा व अर्थदंड का प्राविधान है देर सबेर दीदी पर भी इसकी गाज गिरना तय है। अगर यह हो गया तो दीदी के साथ उनकी पार्टी का बंटाधार होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसे कहते हैं :---
समय की लाठी बेआवाज़ सभी को देती है यह न्याय
देर हो जाती ही हो भले, नहीं यह करती है अन्याय
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अनन्त राम श्रीवास्तव