पानी पीजिये छान के गुरू कीजिये जान के
A.R. Srivastava
राहुल बाबा ने लगभग एक सप्ताह पूर्व ही सार्वजनिक रूप से बयान जारी कर भाजपा को अपना गुरू बताया था। अब पता नहीं क्या हो गया कि वे भाजपा के खिलाफ ही बयानबाजी पर उतर आये हैं। हमारे यहाँ एक कहावत है" पानी पीजिये छान के गुरू कीजिये जान के" विदेश में पढ़े राहुल बाबा को यह कहावत मालूम नहीं होगी। अगर मालूम होती तो वे बहुत ही सोच समझ कर गुरू बनाने की बयानबाजी करते। जिससे न गुरू की फजीहत होती और न ही शिष्य की। भारतीय संस्कृति के अनुसार एकलव्य ने गुरू को अपना अंगूठा काट कर दे दिया और ऊफ तक नहीं की। यहां तो राहुल बाबा गुरू के खिलाफ ही बयानबाजी पर उतर आये हैं।
राहुल बाबा के गुरू ने उन्हें अपना शिष्य मानने के न तो सार्वजनिक रूप से और न ही अनौपचारिक रूप से हाँ की थी। अगर शिष्य मानने के लिए हामी भर दी होती तो राहुल बाबा गुरु द्रोही के अपराध से बच नहीं सकते थे। भारतीय परंपरा के अनुसार "गुरू से कपट मित्र से चोरी या होय निर्धन या होय कोढ़ी" का कुफल सुदामा को भुगतना पड़ा था। मित्र कृष्ण की क।पा के बाद ही उन्हें निर्धनता से छुटकारा मिला था। इस लिये राहुल बाबा को अपने गुरू का शुक्रगुजार होना चाहिये कि उन्होंने अपराध होने से बचा लिया।
राहुल बाबा को जीवन मे सफलता चाहिये तो गुरू अवश्य बना लेना चाहिये। गुरू शिष्य के अवगुणों का शमन कर उसे सफलता के मार्ग पर आग्रसर करता है तभी शिष्य इस योग्य हो जाता है कि वह ईश्वर को पहिचान सके। जब शिष्य ईश्वर को पहिचानने लायक हो जाता है तो कहते हैं कि गुरू गुरू (गुड़) ही रह गये चेला (शिष्य) शक्कर (गुरू से अधिक योग्य) हो गये। इसलिये राहुल बाबा को यदि शक्कर की तरह योग्य हो कर जनता जनार्दन रुपी ईश्वर के हृदय में जगह बनानी है तो गुरू की शरण में जाना होगा।
मित्रो अगर आप मेरे विचारों से सहमत हैं अथवा राहुल बाबा के हमदर्द हैं तो उन्हें इस मुफ्त की सलाह से अवगत करा देना कि बिना गुरू बनाये उनका कल्याण संभव नहीं है। यह हमारा सुझाव है दबाव नहीं है।
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A.R. Srivastava