विश्व कप की हार से उपजी रार
अनन्त राम श्रीवास्तव
ऊपर वाले की मेहरबानी है कि इस बार क्रिकेट के टी-20 प्रारुप के विश्व कप के फाइनल मैच में भारत पाकिस्तान आमने सामने नहीं थे। वरना पाकिस्तान की हार के बाद पाक में टीवी तोड़ने के साथ साथ पूरे विश्व में तोड़ फोड़ की घटनायें होना तय था। पिछले बार एशिया कप में इंग्लैंड, कनाडा सहित कई देशों में तोड़ फोड़ की घटनायें महिनों चलीं थीं। पता नहीं पाकिस्तानी लोग सब कुछ बर्दाश्त कर सकते हैं पर क्रिकेट की हार को हाजमोला खाकर भी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। हार पर विषेशज्ञों से इतर जिसने कभी बैट और बाल भी नहीं पकड़ा वो भी खिलाड़ियों के खेल पर ऊँगली उठाने लगता है। ये क्रिकेट की लोकप्रियता है या हमारी हार को न पचा पाने वाली सोच है।
अरे भाई कहते हैं कि "बाल बाई पावर, हाकी बाई प्रक्टिस, क्रिकेट बाई चाँस" कहने का मतलब है कि बालीबाल, फुटबॉल, बास्केटबॉल आदि खेलों को ताकत अथवा मानवीय शक्ति से जीता जा सकता है वहीं निरंतर अभ्यास से ही हाकी में विजय श्री नसीब होती है। रही क्रिकेट की बात तो इसमें मानवीय शक्ति व अभ्यास दोनों की अपेक्षा अवसर अधिक काम आता है। जब क्रिकेट बाई चांस ही है तो इसमें किस बात का रोना। हाँ ये हो सकता है कि खुजलीवाल को अम्पायर बना दिया जाये तो टीम हमेशा जीतती रहेगी जैसा कभी हमारे पड़ोसी पर ठप्पा लगा था कि वहां की टीम तेरह खिलाड़ियों के साथ खेलती है। जब टीम हारने लगती तो अम्पायर अपने फैसलों से जितवा देते थे। इसीलिये आई सी सी ने नियम बदल दिये। अब जो दो देश आपस में खेलते हैं अम्पायरिंग किसी अन्य देश के होते हैं।
ऐसा ही जुनूनी बुखार अब अपने देश में भी टाइफाइड की तरह फैलना शुरू हो गया है। सेमीफाइनल में इंग्लैंड से हार के बाद भारतीय क्रिकेट टीम की क्षमता पर सवालिया निशान लगाते हुये बहस का दौर शुरू हो गया था। फाइनल में पाक की हार के बाद थोड़ा थम गया है। हमें अपनी हार से उतना दुख नहीं होता जितना पड़ोसी की हार से सुख मिलता है। हम तो सनम डूबे ही थे लेकिन तुम डूब गये यह अच्छा हुआ। अब भारतीय खिलाड़ियों की जवाबदेही पर दबाव कम हो गया।
जीतने से जहाँ विश्व की क्रिकेट बिरादरी में हमारी शान बढ़ती है वहीं हारने के भी फायदे हैं। भारतीय टीम से कुछ खिलाड़ियों की बिदाई होगी उनकी जगह पर नये लोगों को मौका दिया जायेगा। वहीं सबसे बड़ी बात यह है कि विदेशों में बसे भारतियों पर इस बार हमले नहीं होगें क्योंकि हमारे साथ पाक टीम भी हार गयी है वे अपनी हार का मातम मनाने के बजाय इंग्लैंड से हारने के कारणों की समीक्षा कर रहे होंगे।
पाक हमसे आतंकवाद को छोड़कर किसी भी मोर्चे पर जीत नहीं पाता। अब तो उसके आतंकी हमलों का जवाब भी हम उसी की भाषा में मजबूती से देने लगें हैं। अब तो क्रिकेट ही बचा है जिसमें वह हार की खुन्नस टीवी तोड़ कर व विदेशों में बसे भारतियों पर हमले कर निकालने का प्रयास करता रहता है।
जहाँ तक हमारी टीम की हार का सवाल है तो उसकी समीक्षा अवश्य होनी चाहिये। हम पहलवानों को क्यों इतना खिलाते पिलाते हैं विश्वस्तरीय मुकाबलों में हार के लिये। क्रिकेट खिलाड़ियों को करोड़ों रुपये इसी लिये दिये जाते हैं कि वह हार जायें। हमारे खिलाडियों से कम धन पाने वाली इंग्लैंड की टीम जीत गयी। क्रिकेट खिलाडियों को सबक सिखाने के लिए उनकी वार्षिक धनराशि व सुविधाओं में कटौती की जानी चाहिए।
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अनन्त राम श्रीवास्तव