सवाल आपके जवाब सोशल मीडिया के
अनन्त राम श्रीवास्तव
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रविवार का अवकाश हमारे लिए विशेष होता है। आराम से गपशप करते हुये चाय का आनंद लेना। इसमें श्रीमती जी के साथ साथ पड़ोसिन भाभी जी व चाची जी के नये नये सवालों का समाधान ढूढ़ना मेरी बौद्धिक क्षमता का एक तरह से इम्तिहान जैसा होता है। इस इम्तिहान में पास होना मुझसे अधिक श्रीमती जी को खुशी प्रदान करता है। आज भी मैं बैठा सोच रहा था कि किस प्रकार के सवालों को पेश किया जायेगा। तभी पड़ोसिन भाभी की आवाज सुनाई दी क्या हाल हैं लल्ला? आते ही उन्होंने कहा लल्ला अब गर्मी आ गयी है चाय मत पिया करो। मैंने पूँछा फिर क्या पिया करें भाभी जी? उन्होंने कहा छाछ (मट्ठा) में भुना हुआ जीरा व काला नमक मिला कर पिया करो। इसी के साथ उन्होंने कहा देवरानी मैंने बबुआ के हाँथ जो छाछ भिजवाया था वही हम सबके लिए लाना। इसी के साथ पड़ोसिन चाची जी की आवाज सुनाई दी हम सब में मैं भी शामिल हूँ लल्ला। मैंने श्रीमती जी से कहा कोरम पूरा हो गया है आ जाओ ।
श्रीमती जी जैसे ही चार गिलासों में छाछ लेकर आयीं वैसे ही भाभी जी ने कहा लल्ला तुम्हाये भैया ने कल एक मजेदार चुटकुला सुनाया। एक व्यक्ति ने टिवटर पर सूर्य भगवान से सवाल किया गर्मी बहुत है कुछ कम करो। इस सवाल का सूर्य भगवान ने तो कोई जवाब नहीं दिया किन्तु एक यूजर ने तुरन्त कमेंट किया सेटिंग में जाओ और अपनी सुविधा के अनुसार आप्शन चुन लो। क्या ये संभव है लल्ला कि हम अपनी सुविधा के अनुसार गर्मी को कम कर सकते हैं।
मैंने कहा बिल्कुल संभव है भाभी जी। वो कैसे चाची जी ने पूँछा। मैंने कहा पहला उपाय धूप चढ़ने के पूर्व घर के सारे काम निपटा लो उसके बाद घर में आराम करो धूप ढलने के बाद फिर काम शुरु कर दो। आफिस और कारखानों में तो दिनभर काम होता है। वहां ठंडा रखने के लिए एसी व कूलर लगाये जाते हैं अब तो एसी कारें व बसें तक आ गयीं हैं ट्रेनो में भी एसी कोच लगने लगें हैं। चाची जी ने तुरंत टोकते हुये कहा एसी और फ्रिज से जो गैस निकलती है उससे तो गर्मी और बढ़ती है। कूलर व एसी में भी तो बिजली खर्च होगी उसका भी तो बिल भरना पड़ेगा।
मैंने कहा भगवान ने जो भी मौसम बनाये हैं वे हमारे जीवन के लिये आवश्यक हैं। मौसम में बदलाव हमारे जीवन के साथ हमारी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है। गर्मी के बाद ही मानसून आता है जिससे बरसात होती है। बरसात के बाद जाड़ा आता है और जाड़े के बाद गर्मी आ जाती है। इन्हीं मौसमों के अनुसार खेती होती है। पेड़ो की अधाधुंध कटाई के कारण हमारी प्राकृतिक व्यवस्था छिन्न भिन्न होती जा रही है। हमें अपनी अर्थव्यवस्था व जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिये पौध रोपण करने के साथ उनकी रक्षा भी करनी होगी। अन्यथा वो दिनदूर नहीं जब हम असहाय होकर सब कुछ नष्ट होता हुआ देखेंगे। प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिये पौध रोपण कर अधिक से अधिक हरित वन क्षेत्र बढ़ाना ही एक मात्र उपाय है।
चाची जी व भाभी जी ने एक साथ कहा बात तो पते की कही है लल्ला। मित्रो आज की "आप बीती व जग बीती" आपको कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराने के साथ लाइक व शेयर करना मत भूलें।
आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव