चुनावी विसंगतियां
अनन्त राम श्रीवास्तव
सुबह सुबह नित्य क्रिया से निपट कर बैठक में दैनिक समाचार पत्र की सुर्खियां देख रहा था। उसी समय "भाई साहब नमस्ते" सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुयी। नजरें उठाकर देखा तो कुछ महिलाओं के साथ एक महिला हाँथ जोड़े खड़ी थी। मेरे नजरें उठाते ही उस महिला ने बोलना शुरू किया "कि वो नगर पालिका परिषद के चुनाव में अध्यक्ष पद की उम्मीदवार है। इतने में श्रीमती जी ने उसे पहचानते हुये कहा आप तो फला मोहल्ले की मिश्रायिन हैं। आपके पति तो सामाजिक आदमी हैं। पड़ोस वाली भाभी ने कहा लेकिन अध्यक्ष पद तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। फिर आप कैसे उम्मीदवार हो गयीं। उसने कहा वह अनुसूचित जाति से ही है उसने प्रेम विवाह किया था। हम सबने अच्छा कह कर उसे विदा किया।
अब श्रीमती जी व भाभी दोनों अदालत के मंजे हुये वकीलों की तरह मुझसे बहस करने लगीं। श्रीमती जी ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार धरा, नारी व जल का कोई धर्म नहीं होता। नारी का जिस पुरुष के साथ विवाह होता है पति की जाति व धर्म ही उसकी जाति व धर्म हो जाता है। इसी प्रकार धरा अर्थात भूमि जिसके अधिकार में होती है वही उसका स्वामी होता है। जल भी जिसमें मिला दो वैसा हो जाता है। फिर ये मिश्रायिन कैसे अनुसूचित जाति की हो गयीं यह हमारे समझ से परे है। ये तो पैसे वालों के चोचलें हैं। चित्त भी हमारी और पट्ट भी हमारी। चुनाव आयोग को इसमें संसोधन करना चाहिए।
अब भाभी ने मोर्चा संभालते हुए कहा चुनाव आयोग ने आरक्षित वर्ग के नामंकन पत्रों व जमानत राशि में 50 प्रतिशत की छूट दी है फिर सामान्य वर्ग से आधे खर्च में चुनाव लड़ने का प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया। छूट और प्रतिबंध का हिसाब बराबर होना चाहिये। यही नहीं आरक्षित वर्ग में सामान्य वर्ग का व्यक्ति उम्मीदवार नहीं बन सकता तो सामान्य सीट पर आरक्षित वर्ग के नामंकन पर प्रतिबंध होना चाहिये।ये तो सामान्य वर्ग के साथ अन्याय है।
भाभी ने कहा लल्ला आप तो बड़े बड़े कालम लिखते हो चुनाव आयोग की इन विसंगतियों पर आप ही उसे आइना दिखा सकते हो। आखिरी विसंगति यह है कि जब संविधान में आरक्षण का प्राविधान सिर्फ दस वर्ष के लिये किया गया था फिर इसे 75 वर्षो तक क्यों जारी रखा गया। जब धारा 370 हट सकती है तो आरक्षण क्यों नहीं बंद हो सकता है। आरक्षण व्यवस्था के चलते सरकार का "सबका साथ सबका विकास व सबका विश्वास का नारा बेमानी है। आरक्षण की बैशाखी के सहारे नहीं योग्यता के आधार पर सबको आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए।
मित्रो आपको आज की "आप बीती व जग बीती" का अंक कैसा लगा। अगर आपको सही लगे तो इसे इतना वायरल कीजिये कि सरकार व चुनाव आयोग को इन विसंगतियों को दूर करने के लिये मजबूर होना पड़े।
आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव