होली पर विशेष
फिर आयी होली........
अनन्त राम श्रीवास्तव
आमों के झुरमुट से कोयल यूँ बोली
फिर आयी होली, फिर आयी होली
देवर की पिचकारी से निकली फुहारें
हुयी सराबोर भौजी भीगे अंग सारे
साड़ी बचाने में भीग गयी चोली
संबधों में रंग भरने को आती है होली
फिर आयी होली
वर पक्ष को बरात में मिलती हैं गालियाँ
फिर भी प्रताड़ित होती कितनी ही नारियाँ
विटिया के दहेज में हुयी खाली झोली
माँ बाप को रुलाने आ गयी होली
फिर आयी होली
आओ हम सब होली मनायें
जाति, धर्म, भाषा की तोड़ें सीमायें
गले मिल माथे पर लगायें रोली
खुसियाँ ही खुसियाँ ले आयी होली
फिर आयी होली
रंगों की कौन कहे मंहगी पिचकारी
खर्चों की मार जेब पर भारी
गुझिया की मिठास पर मंहगाई भारी
मंहगाई में तंग करने आ गयी होली
फिर आयी होली
अनन्त राम श्रीवास्तव