'आरक्षण' से मिला अवसर योग्यता का प्रमाण नहीं होता
अनन्त राम श्रीवास्तव
रविवार का दिन होने के कारण मैं आराम से बैठक में दैनिक समाचार पत्र की सुर्खियां देख रहा था कि पड़ोसिन भाभी जी की आवाज सुनाई दी लल्ला क्या हाल हैं। मैंने भाभी जी को बैठने के लिये कहा और श्रीमती जी को आवाज देकर कहा भाग्यवान एक गिलास और "पना" ले आना। भाभी जी ने कहा क्या बात है लल्ला चाय की जगह आम का पना पीने लगे। मैने कहा आम का "पना" चाय से अधिक गुणकारी है।
भाभी जी ने कहा लल्ला कल मैं अपनी ननद के एक सरकारी स्कूल गयी थी। स्कूल में टीचर बच्चों को पढ़ा रहे थे "भगत सिंह देश द्रोही थे" मैंने तुरंत टीचर को टोका और हेडमास्टर से शिकायत की तो एक नई बात पता चली कि टीचर का चयन आरक्षण के अंतर्गत हुआ था। हेडमास्टर ने कहा मैं कुछ कहूँगा तो मुझ पर उत्पीड़न का आरोप लग जायेगा।
इस पर श्रीमती जी ने कहा कि मैं तो परसों चाची जी के साथ सरकारी अस्पताल गयी थी। सरकारी डाक्टर एक मरीज को सीने में दर्द की शिकायत पर उसे हृदयाघात(हार्ट की समस्या बता कर) रेफर कर दिया। उनकी ड्यूटी समाप्त होने पर हार्ट के डाक्टर आ गये। उन्होंने उसे देखकर बताया कि उनको गैस की समस्या है और एक गोली खाने को दी। 10- 15 मिनट बाद उन्हें आराम मिल गया। पहले वाले डॉक्टर के बारे में पता चला कि वे आरक्षण ब्यवस्था की देन हैं वैसे तो वे फिजीशियन हैं पर हर मरीज को विशेषज्ञों की तरह सलाह देते हैं। यही नहीं नान प्राइवेट प्रक्टिशनर भत्ता लेने के साथ डंके की चोट पर खुलेआम प्राइवेट प्रक्टिश भी करते हैं।
इतने में पड़ोसिन चाची भी आ गयीं। उन्होंने कहा कि आज मैं बस से जब वापस आ रही थीतो लोग बस में "आरक्षण" को बैशाखीबता कर उसका विरोध कर रहे थे। अधिकांश की राय थी कि सरकार को बिना भेदभाव के और बिना शुल्क लिये सबको समान रुप से शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराना चाहिये। सेवा में चयन का आधार आरक्षण नहीं योग्यता होना चाहिये। आरक्षण ब्यवस्था सरकार के "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" के सिद्धांत के खिलाफ है। हम सबको आगामी चुनाव में उसी दल का समर्थन करना चाहिये जो आरक्षण ब्यवस्था को समाप्त करने का आश्वासन दे।
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. आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव