बोये पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय
अनन्त राम श्रीवास्तव
रविवार का अवकाश होने के कारण मैं बिलंब से सो कर उठा। नित्यक्रिया से निवृत्त होकर बैठक में आकर समाचार पत्र देखने लगा। मैं श्रीमती जी की बनाई गरमागरम चाय का इंतजार कर रहा था पड़ोसन चाची ने "लल्ला मैं जे का सुन रही हूँ। हमारे पड़ोसी देश में आग लगी हुयी है" डुगडुगी बजा कर खेल दिखाने वाला मदारी इस बार स्वयं बंदरों की घुड़की से डरकर अपने बचाव के लिये हाँथ पैर मार रहा है। बंदर हैं कि मानते ही नहीं हैं।
मैंने कहा आप भी चाची जी पहेलियां बुझा रही हो साफ साफ बताओ! श्रीमती जी ने चार कप चाय और नास्ते के साथ बैठक में प्रवेश करते हुए कहा मैं आपको समझाती हूँ। यह कह कर उन्होंने सर्वप्रथम चाचाजी को चाय का कप देने के बाद उनके पैर छू कर सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लिया। उसके बाद मुझे चाय दी। मैंने पूँछा ये चौथा कप किसके लिये है? इस पर श्रीमती जी ने जवाब दिया ये पड़ोसिन जेठानी जी के लिये है वे भी आती ही होंगी। इतने दरवाजे से आवाज आयी देवरानी जी मैं आ गयी। मैंने कहा बड़ा तालमेल है देवरानी जेठानी में। भाभीजी ने भी नहले पर दहला जड़ते हुये कहा सो तो है लल्ला। इतना कहकर वे अपना चाय का कप लेकर चाचीजी के बगल में जा कर बैठ गयीं।
श्रीमती जी अपना चाय का कप लेकर मेरे बगल में बैठ गयीं। श्रीमती जी ने कहा चाचीजी के कहने का अर्थ है हमारे पड़ोसी देश में सेना मदारी की तरह डुगडुगी बजा कर कभी इस बंदर (पार्टी) को सत्ता दे देती थी कभी उस बंदर (पार्टी) को दे देती थी। इस बार मदारी (सेना) ने जिस बंदर को सत्ता से बेदखल किया वो मदारी व सत्ताशीन बंदर पर भारी पड़ रहा है। जिसके कारण मदारी अपने को बचाने के लिए हाँथ पैर मार रहा है।
भाभीजी ने हम सबकी जानकारी में इजाफा करते हुए कहा मैन तो यहां तक सुना है कि मदारी (सेना) के परिवार में भी दो फाड़ यानी गुटबाजी शुरू हो गई है। इस लिये मदारी स्वयं को बंदरों के आगे बेबस महसूस कर रहा है। आपने ठीक कहा भाभी जी बोये पेड़ बबूल का आम कहां से होये। पड़ोसी देश ने जो बबूल रुपी आतंक की फसल बोयी है अब वही काँटे उसके बरबादी का कारण बन चुके हैं। मदारी अब तक बंदरों को आपस में लड़वाकर सत्ता की मलायी खाता रहता था। अब वो अपनी सत्ता (साख) बचाने के लिये परेशान है।
हमेशा से मदारी का खेल देखने वाली जनता इस बार मदारी की चालाकी समझकर सत्ता से बेदखल किये गये बंदर के परिवार के कंधे से कंधा मिलाकर उसका साथ दे रही है इसलिये मदारी को अपनी सत्ता (साख) बचाने के लाले पड़ रहे हैं। यही नहीं मदारी के उत्पीड़न से त्रस्त पड़ोसी देश का समर्थक टीटीपी भी मौके का फायदा उठा कर मदारी की सत्ता (साख) को चोट पहुँचाने में लगा है। इसबार दो बंदरों की लड़ाई में सैंडविच की तरह फँस गया है। देखो आगे आगे होता है क्या?
चाचीजी ने कहा वो तो है लल्ला! आपके भैया भी आपके इस सप्ताहिक कालम को बहुत पसंद करते हैं। सो हम भी आपकी इस रविवासरीय चर्चा में भाग लेने के लिए आ गये। बहुत दिनों से बहू के हाँथों से बनी चाय भी नहीं पी थी सो एक पंथ दो काज हो गये। दूसरी बात ये है कि चाय की चाहत से सास और बहू में तालमेल अच्छा रहता है। अब दोनों बहुवों के साथ हमारा तालमेल अच्छा रहेगा।
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आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव