'दान' से शुरू दान पर खतम।
दान के बिना अधूरे हमदम।।
अनन्त राम श्रीवास्तव
सुबह सुबह चाय की चुस्कियों के साथ समाचार पत्र पढ़ने में तल्लीन था कि पड़ोसिन भाभी ने अपनी खनकदार आवाज से मेरी तंल्लीनता भंग करते हुये कहा लल्ला अखवार में का पढ़ रहे थे कि हमारे आने की खबर तक न लगी। वो भाभी अखवार में पंडित जी का प्रबचन पढ़ रहा था जिसमें पंडित जी बता रहे थे कि जीवन 'दान' से ही शुरू होता है और 'दान' के साथ ही समाप्त होता है। हमें जीवन में दान देने के साथ दान लेना भी चाहिए। केवल दान देने अथवा दान लेने से सृष्टि का कार्य अधूरा रहता है।
यह तो बड़ी अच्छी बात है लल्ला नेक खुलकर बतइयो!
मैंने कहा भाभी इस प्रबचन में पंडित जी ने कहा है कि हमारी सनातन संस्कृति के अनुसार बच्चे के जन्म के साथ ही दान देने व दान लेने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ये दान तीन प्रकार के होते हैं अन्न दान, वस्त्र दान व अर्थ दान के रुप में होता है। बच्चे के जन्म की खुशी में 'भोज' के रुप अन्न दान, उपहार व भेंट के रुप वस्त्र व अर्थ ( रुपये, जेवरात ) आदि दिये जाते हैं। यही नहीं हम त्योहारों पर भी घर के सभी लोगों के साथ साथ परजों तक को बख्सीश व भेंट के रुप में यही दान देते हैं। शादी समारोह में भी लड़की वाले लड़के वालों को यही दान देते हैं। मृत्यु के समय भी हम सबके परिजन मृतक की स्मृति में यही दान देते हैं। ये तीन वस्तुओं के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा रहता है। भोजन के लिये अन्न, पहनने के लिए वस्त्र और जीवन की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अर्थ (धन) आवश्यक है। इसलिए हम सबको दान देने के साथ दान लेते रहना चाहिए।
भाभी ने कहा लल्ला दान देना तो समझ में आयो पर दान लेना क्यों जरूरी है। भाभी अगर सभी लोग दान देने लगेंगे तो दान लेने वाले कहाँ से आयेंगे। इसलिये हर व्यक्ति को दान देने के साथ दान लेने के लिये भी तैयार रहना चाहिए। गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा ने भी कहा है कि जीवन में हम किसी न किसी रुप में समाज व लोगों से दान लेते रहते हैं इसलिए 50 वर्ष की आयु के उपरांत हमें भी किसी न किसी रुप में दान देकर समाज को आगे बढ़ाने में सहयोग करना चाहिए। दान लेने व देते समय दान देने व लेने वाले दोनों पक्षों को समान रूप से खुशी मिलती है।
भाभी जी ने कुछ देर सोचते हुए कहा लल्ला कुछ लोग दान लेने में अपनी तौहीन समझते हैं। कुछ लोग तेरहीं ( मृत्यु भोज ) में भोजन करना पसंद नहीं करते हैं। भाभी जी जब कभी उनके यहाँ तेरहीं ( मृत्यु भोज ) होगा तो लोग उनके यहाँ भी नहीं जायेंगे तब उनके समझ में आयेगा कि इस प्रकार के आयोजनों में खिलाने के साथ खाना भी आवश्यक है।
वाह लल्ला आज मुझे जीवन में दान के महत्व के बारे बहुत अच्छी तरह से समझा दिया। मित्रो आज की "आप बीती व जग बीती" का अंक आपको कैसा लगा। अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराना मत भूलें।
आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव