राजनीति के आइने में "मुफ्त संस्कृति"
अनन्त राम श्रीवास्तव
कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव क्या जीता केजरी का "मुफ्त संस्कृति" वाला ट्रंप कार्ड राजनीतिक दलों से लेकर जनता तक सबको लुभाने लगा है। पहले से ही करोड़ों रुपये के कर्ज में डूबी कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर मुफ्त संस्कृति के तहत किये गये चुनावी वादों को पूरा करने में लगभग बारह हजार करोड़ रुपये का सालाना खर्च और बढ़ जायेगा। इन खर्चों का भार अंततः राजकोष पर पड़ेगा। इस राजकोष पर भार कम करने के लिये राज्य सरकार या तो कर्ज लेगी अथवा जनता पर करों (टैक्स) का बोझ बढ़ायेगी। मुफ्त संस्कृति के चलते जनता को सार्वजनिक सुविधाओं उपलब्ध कराने में सरकार को कठिनाई होगी वहीं नये विद्युत उत्पादन गृह, कल कारखाने स्थापित करने में भी सरकार को कठिनाई होगी। जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी।
कुछ विद्वान राजनेता और अर्थशास्त्री मुफ्त संस्कृति पर विराम लगाने की बात कर रहे हैं। जनता में मुफ्त संस्कृति की चाह विधायकों, सांसदों को मिलने वाली मुफ्त सुविधाओं के कारण पैदा हुयी है। जनता से मुफ्त संस्कृति का मोह छुड़वाने के पूर्व विधायकों सांसदों को मिलने वाले वेतन भत्तों को आयकर के अंतर्गत लाना आवश्यक है। इसी के साथ उन्हें मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाओं को वापस लेकर सरकार को एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिये। इसके बाद ही सरकार को जनता से मुफ्त संस्कृति छोड़ने का आग्रह करना चाहिये। विधायक सांसद यदि मुफ्त संस्कृति का मोह नहीं छोड़ सकते हैं तो जनता से मुफ्त संस्कृति का मोह छोड़ कर निरविकार भाव से मतदान करने की आशा करना बेमानी है।
जनता हो या जनप्रतिनिधि मुफ्त संस्कृति का प्रसार समाज व राजनीति के लिये कोई शुभ संकेत नहीं है। मुफ्त संस्कृति हम सबको अर्कमण्य एवं आलसी बनाती है। यही नहीं मुफ्त संस्कृति हमारी अर्थव्यवस्था को भी कमजोर करने के साथ सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के भी खिलाफ है। इस लिये मुफ्त संस्कृति को रोकने के लिये सरकार को इसकी शुरुआत जन प्रतिनिधियों से करनी चाहिये।
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अनन्त राम श्रीवास्तव