जिंदगी में "चूड़ी"
अनन्त राम श्रीवास्तव
पृथ्वी भी गोल है और चूड़ी भी गोल होती है। चूड़ी बनाने वाले ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि चूड़ी इंसान की जिंदगी में इतना रच बस जायेगी कि इंसान को चूड़ी के बिना जिंदगी अधूरी अधूरी सी लगेगी।
चूड़ी को ही देख कर इंसान ने जलेबी बनायी जिससे जिससे हर छोटे बड़े के जीवन में मिठास भरी जा सके। जलेबी की तरह इमरती का अविष्कार भी जीवन में मिठास भरने के लिए ही किया गया होगा। चूड़ी के बिना नर व नारी दोनों का जीवन अधूरा होता है। तभी तो जिंदगी का अधूरापन दूर करने के लिए हीरोइन फिल्मों में गाना गाती है "गोरी हैं कलाइयां पहना दे मुझे हरी चूड़ियां अपना बना ले मुझे बालमा" और जिंदगी में मिठास कायम करने के लिए हीरोइन कहती है "चूड़ी मजा न देगी कंगन मजा न देगा तेरे बगैर साजन सावन मजा न देगा"।
जिंदगी के अधूरेपन को लेकर लोग ताने कसने से भी बाज नहीं आते थे। अधिक उम्र वाले को देखकर ताना कसते हैं "तुम्हारी किस्मत में चूड़ी का धोवन नहीं लिखा है। जब भी अधिकारियों को अपने मातहतों को डाँटना होता था तो वे उसे "चूड़ी टाइट करना " कहते थे। इसी तरह जब किसी मातहत को किसी प्रकार की छूट देनी होती थी तो उसे "चूड़ी ढीली करना" कहते थे।
जामवंत ने हनुमान जी को "का चुप साधि रहा बलवाना" कहकर उनके पौरुष को जाग्रत किया था किन्तु आम जिंदगी में महिलायें पुरुषों को "चूड़ियाँ भेंट कर "उनके पौरुष को जाग्रत करती हैं। पुरुष भी दुश्मनों से लोहा लेने के पूर्व चेतावनी देते हैं कि "उन्होंने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं।
जिंदगी में पति की मृत्यु के बाद सारा गुस्सा चूड़ी पर ही उतारा जाता है और चूड़ियाँ तोड़ने के साथ माँग का सिंदूर भी पोंछ दिया जाता है। हालांकि बाद में चाँदी अथवा प्लास्टिक की चूड़ियाँ पहना दी जाती हैं जो बिधवा होने का प्रतीक मानी जाती हैं। यही कारण है कि अपराधी को लोहे की चूड़ियाँ (हथकड़ी) पहनायी जाती है। खतरनाक अपराधी के तो पैर में भी लोहे की चूड़ियाँ(बेड़ी) पहना दी जाती है जिससे वह भाग न सकें।
मित्रो "चूड़ी" हमारी जिंदगी में कितना रची बसी है यह तो आप समझ ही गये होंगे। इस लिये सदैव चूड़ी व चूड़ी वाली का सम्मान करना। अगर आपको यह व्यंग अच्छा लगे तो अपनी चूड़ी रूपी प्रतिक्रिया से अवगत कराना मत भूलें। इससे हमारा चूड़ी रूपी उत्साह और टाइट हो जायेगा और हम प्रत्येक सप्ताह इसी प्रकार के जीवन को गुदगुदाने वाले लेख लेकर आते रहेंगे।
आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव