"आसान
है एक मर्द की तलाश जो तुम्हें प्यार करे,
बस, तुम
ईमानदार रहो कि एक औरत के रूप में तुम चाहती क्या हो ।
उसे सब सौंप
दो,
वह सब जो
तुम्हें औरत बनाती है ।
बड़े बालों
की ख़ुशबू,
स्तनों के
बीच की कस्तूरी,
और तुम्हारी
वो सब स्त्री भूख ।"
कमला दास ने जब ये कविता लिखी थी तो उन्होंने परम्परागत
पुरुष समाज को झकझोर कर रख दिया था और सोचा था कि कोई लेख िका अपनी कविताओं में
इतनी बेबाक और ईमानदार कैसे हो सकती है !! भारतीय साहित्य में अगर कमला दास जैसी
लेखिकाएं नहीं होतीं तो आधुनिक भारतीय लेखन की वो तस्वीर उभर कर सामने नहीं आती
जिस पर आज का समूचा स्त्री विमर्श गर्व करता है ।
आज दिनांक 1 फरवरी 2018 के दिन गूगल के मुख पृष्ठ पर हाथ में कागज और कलम लिए एक नारी का ‘डूडल’ झलक रहा है । उस नारी का नाम कमला दास (कमला सुरय्या) है और उपनाम : माधवी कुट्टी , जो एक भारतीय लेखिका और कवियित्री थी । आज उनका जन्म-दिवस (1 फरवरी) है इसी मौके पर गूगल ने उन्हें ‘डूडल’ बनाकर सम्मानित करते हुए याद किया है ।
कमला सुरय्या पूर्व नाम कमला दास (31 मार्च 1934 - 31 मई 2009) अँग्रेजी और मलयालम भाषा की भारतीय लेखिका
थीं । वे मलयालम भाषा में माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं। उन्हें उनकी
आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ से अत्यधिक
प्रसिद्धि मिली। उनका जन्म आज़ादी से तेरह साल पहले 1934 में
केरल के साहित्यिक परिवार में हुआ था । 31 मार्च 1934 को केरल के त्रिचूर
जिले के पुन्नायुर्कुलम, (पूर्व
में मालाबार जिला, मद्रास
प्रैज़िडन्सी, ब्रिटिश राज) में जन्मी कमला दास की मात्र
15 वर्ष की आयु में ही विवाह रिज़र्व बैंक के एक अधिकारी
माधव दास से हो गया । पारिवारिक माहौल के कारण उन्होने छह वर्ष की आयु में ही कविताएं
लिखना शुरू कर दिया था । सुरैया ने मलयालम में माधवीकुट्टी के नाम से कई लघु कथाएँ
भी लिखीं हैं । प्रबंधन विशेषज्ञ वीएम नायर और जानी मानी कवयित्री बालामणियम्मा की
पुत्री सुरैया का जन्म त्रिसूर ज़िले के पुन्नायारकुलम के नलप्पड़ परिवार में हुआ
था । उनके दिवंगत पति माधवदास रिजर्व बैंक में अधिकारी थे । उनके परिवार में
प्रसिद्ध पत्रकार एम डी नलप्पड़ समेत दो पुत्र हैं । नारीवादी कवयित्री कमला जब आठ
वर्ष की थीं तभी उन्होंने विक्टर ह्यूगो की रचना का मलयाली में अनुवाद किया था ।
उनकी माँ बालमणियम्मा एक बहुत अच्छी कवयित्री
थीं और उनके लेखन का कमला दास पर खासा असर पड़ा । यही कारण है कि उन्होंने बचपन में
ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था । लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उन्हें
लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक कि पूरा परिवार सो न जाए । परिवार के सो
जाने के बाद वे रसोई घर में अपना लेखन जारी रखतीं और सुबह तक लिखती रहतीं । इससे
उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ा और यही कारण है कि वे बीमार रहने लगीं । वे उस समय
विवादों में आईं जब उन्होंने अपने आत्मकथात्मक लेखन को “माय स्टोरी” नाम से
संग्रहित किया । यह किताब इतनी विवादास्पद हुई और इतनी पढ़ी गई कि उसका पंद्रह
विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ । इसी की बदौलत उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर ख्याति मिली ।
कमला ने 1999 में इस्लाम अपना लिया । वो
साहित्य जगत में पहली कविता संग्रह 'समर इन कलकत्ता' से सुर्ख़ियों में आईं और उनकी छवि क्रांतिकारी कवयित्री के रुप में बनीं
। उनकी रचनाओं में रुढिवादी समाज में महिलाओं पर लगी बंदिशों का चित्रण होता था । उनकी
कविताओं में 'ऐन इंट्रोडक्शन, द
डिसेंडेंट, अल्फ़ाबेट ऑफ़ लस्ट और ओनली सोल नोज़ हाऊ टु सिंग'
काफी लोकप्रिय हुईं लेकिन उनकी कई रचनाओं की आलोचना भी हुई । लेकिन
सबसे ज़्यादा आलोचना उनकी आत्मकथा 'माइ स्टोरी' को लेकर हुई जिसका प्रकाशन वर्ष 1976 में हुआ । उन
पर विवाहेतर सम्बन्धों को सही ठहराने के आरोप लगे । वर्ष 1999 में उन्होंने इस्लाम अपना लिया और इसको लेकर भी काफी विवाद हुआ । कभी अपनी
लेखनी में भगवान कृष्ण का ज़िक्र करने वाली और अपने को राधा बताने वाली कमला के उस
बयान पर काफी हंगामा मचा जिसमें उन्होंने कहा था, 'मैंने
अपने कृष्ण को अल्लाह में रुपांतरित कर दिया ।' उन्होंने
वर्ष 1984 में साहित्य के नोबल पुरस्कार के दावेदारों की
सूची में भी जगह बनाई । हालांकि उन्हें सफ़लता हासिल नहीं हुई । अपनी रचनाओं के
लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान मिले जिनमें एसियन पोएट्री प्राइज़,
केंड अवार्ड फ़ॉर इंग्लिश राइटिंग फ़्रॉम एसियन कंट्रीज, साहित्य अकादमी और केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल है । कमला की अंग्रेजी
में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’,
‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी हाउस एंड अदर
पोएम्स ’, ‘अल्फ़ाबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि
अन्ना‘मलाई पोएम्सल’ और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह
पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’,
‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’, ‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी
हैं ।
उस ज़माने में कमला दास की कविताएं भारत की
मशहूर साप्ताहिक पत्रिका 'इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' में छपा करती थीं । एक
साधारण गृहस्थ महिला जब अपनी भावनाओं को अपनी पूरी ताकत और साहस के साथ कागज़ पर
उतारती है तो साहित्य की दुनिया में तहलका मच जाता है । कमला दास के साथ ऐसा ही
हुआ था । कमला दास का मानना था कि पूरी ईमानदारी के साथ आत्मकथा लिखना और कुछ भी
नहीं छिपाना, एक प्रकार से एक एक कर अपने कपड़े उतारने जैसा
काम है- यानि 'स्ट्रिप्टीज़ ।'
उन्होंने 20 से अधिक किताबें लिखी हैं ।
हमारे देश में कविता में उनके बहुत बड़ा योगदान है । भारत के इतिहास में दास शायद
पहिला लेखिका थीं जिन्होंने नारी विमर्श पर खुलकर अपने विचार रखे । वह हिन्दू
परिवार में पैदा हुई थीं लेकिन 68 की उम्र में उन्होंने अपना
धर्म परिवर्तन किया और इस्लाम धर्म अपनाया । बाद में अभिव्यक्ति की मांग को लेकर
कट्टर मुल्लाओं से भी उनकी ठनी । दिलचस्प बात ये थी कि निजी ज़िंदगी में कमला दास
की छवि एक परम्परागत महिला के रूप में उभर कर आती है, जबकि
उनकी आत्मकथा इसका ठीक विपरीत रूप प्रस्तुत करती है ।
बीबीसी से पत्रकार द्वारा पुछे गए एक सवाल के
जवाब में कमला दास ने कहा कि “जो कुछ भी हम लिखते हैं, उसमें
एक रचनात्मकता होती है । कहाँ वास्तिवकता आती है और कहाँ कल्पनाशीलता, इससे आप को कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए । ये देखना चाहिए कि वो चीज़ हमें
छू रही है या नहीं । हमें इससे प्रेरणा मिल रही है या ये हमें हिला रही है या नहीं
। बाकी सब बातें बेमानी हैं ।"
कुछ इसी तरह
की भावनाओं को कमला दास ने एक कविता में भी पिरोया था -
जब कभी
निराशा की नौका,
तुम्हें ठेल
कर अंधेरे कगारों तक ले जाती है ।
तो उन कगारों
पर तैनात पहरेदार,
पहले तो
तुम्हें निर्वसन होने का आदेश देते हैं ।
तुम कपड़े
उतार देते हो,
तो वो कहते
हैं,
अपना मांस भी उघाड़ो ।
और तुम त्वचा
के साथ अपना मांस भी उघाड़ देते हो,
फिर वो कहते
हैं कि हड्डियाँ तक उघाड़ दो,
और तब तुम
अपना मांस नोच नोच फेंकने लगते हो,
जब तक कि
हड्डियाँ पूरी तरह से नंगी नहीं हो जातीं ।
उन्माद के इस
देश का तो एक मात्र नियम है उन्मुक्तता,
और वो
उन्मुक्त हो,
न केवल तुम्हारा
शरीर,
बल्कि आत्मा
तक कुतर कुतर खा डालते हैं ।
‘मुङो
नहीं दरकार छलनामय घरेलू सुखों,
गुड-नाइट चुंबनों या साप्ताहिक खतों की
जो, ‘माय डियरेस्ट’ संबोधन से शुरू
होते हैं
उन ववाहिक कस्मों का खोखलापन
और डबलबैड का अकेलापन भी मैं जन चुकी हू,
जिस पर लेटा मेरा संगी स्वप्न देखता है
किसी और का / जो उसकी बीबी से कहीं बड़ी छिनाल है ।’
[ उपरोक्त कविता
कमला सुरय्या की एक पुस्तक 'दि अनमलाई पोएम्स' कविता का अंश है । ]
भारत की इस
महान लेखिका का मृत्यु पुणे में दिनांक 31 मई 2009 को 75 वर्ष की उम्र में हुई थी ।
( सौजन्य एवं साभार : http://www ।bbc ।com/hindi/india-39458579,
https://hindi ।oneindia ।com/art-culture/2009/kamladasdemisealk ।html )
https://www.youtube.com/user/pcv135/p...
Poem Middle Age- Kamala Das 12E1401 IN HINDI
कविता मध्यम आयु- कमला दास हिंदी
Kamala Das’s Middle Age is a deeply touching poem about the agonies of a mother. It reveals how shockingly painful it can be when you are neglected by your own children.
Poem Middle Age- Kamala Das 12E1401 IN HINDI कविता मध्यम आयु- कमला दास हिंदी ✅ - YouTube