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आपको याद होगा कि पहले कागजों या
फाइलों को आपस में नत्थी (बांधने) करने के लिए सूआ से उनमें छेद किया जाता था फिर
किसी मोटे धागे से उन्हें नत्थी किया जाता था । भारत में फाइलिंग का यह बड़ा ही
कठिन और असुरक्षित काम था । देखते ही देखते होल पंच (Hole punch) हमारी स्टेशनरी
में शामिल हुआ और फाइलिंग के काम को बहुत आसान बना दिया । आपको पता है दिखने
में यह बेहद आसान लेकिन अद्भुत होल पंच को हमारे जीवन में शामिल हुए 130 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं । फ्रेडरिक सुनेनिकन ने 131 साल पहले आज ही के दिन यानी 14 नवंबर, 1886 को इसका पेटेंट कराया था । 131 साल का सफर करते हुए
यह होल मशीन हर जगह, हर ऑफिस यहां तक कि लगभग हर घर में अपनी
पैठ बना चुकी है । खास बात यह है कि जब इसका पेटेंट कराया गया था उस दिन भी
मंगलवार था और आज भी । इस अनोखे अविष्कार पर गूगल ने एक शानदार डूडल बनाकर
लोगों को इसकी जानकारी सभी तक पहुंचाने की कोशिश की है । भारत में 14 नवम्बर को जहां पूरा देश बाल-दिवस मना रहा है, वहां
गूगल द्वारा पंच मशीन की जानकारी देकर इस दिन को और रोचक बनाने की कोशिश की है ।
इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने
वाले एक छोटे से उपकरण कुछ और नहीं,
कागजों में छेद करने वाला होल पंच है । हमने फाइलों में देखा होगा
कि दो वायर या रिंग निकली रहती है इन वायर में पंच किये हुई शीट का कागजो को
व्यवस्थित किया जाता है ताकि ये अपनी जगह से ना हिले । इसके जरिए कागजों को फाइल
में लगाने के लिए आसानी से होल बनाने, टिकटों में छेद करने
आदि का काम आसानी से किया जाता है । भले ही आपको ये यंत्र छोटा सा लग रहा हो लेकिन
इस यंत्र ने कंप्यूटर युग से पहले ऑफिस वर्क में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है । आज
भी आपको हर ऑफिस में Hole Punch और स्टेपलर जैसे दैनिक यंत्र
अवश्य मिल जायेंगे । आज जब हर तरफ डिजिटल का जोर है, ऐसे में
एक 131 साल पुराना आविष्कार हमारे बीच अब भी प्रासंगिक है ।
जब आप अपने कंप्यूटर पर इंटरनेट खोलेंगे तो
गूगल का डूडल पंच किए गाए कागज की बिंदियों से सजा मिलेगा और ऊपर एक होल पंच
दिखेगा । इस पर क्लिक करने पर होल पंच गूगल के 'जी' (G) के रूप में बने
कागज पर क्लिक करके छेद कर देगा और अपने नए आकार पर कागज खुशी से उछलता नजर आएगा ।
इस पर क्लिक करने पर आप को होल पंच से जुड़ी तमाम जानकारियों के लिंक मिलेंगे ।
आइए जानते हैं होल पंच से जुड़ी कुछ
अहम बातें ---
o
आविष्कारक
पर पेच : कहा
जाता है कि होल पंच का अविष्कार मशूहर इन्वेंटर बेनजामिन स्मिथ ने किया था।
हालांकि, गूगल
ने अपने डूडल में होल पंच के आविष्कार का क्रेडिट एक जर्मन शख्स फ्रेडरिक जोनेखेन
को दिया है। उसने होल पंच के पेटेंट के लिए दावा किया, जो
उसे 14 नवंबर 1886 को दे दिया गया ।
o अमेरिका में तुरंत पहुंचा होल पंच
: अमेरिका
ने भी खुद से होल पंच का ईजाद कर लिया । अमेरिका में सबसे पहले होल पंच का पेटेंट
हासिल करने का श्रेय मेसाचुसेट्स के एक शख्स बेंजामिन स्मिथ को जाता है । कुछ
साइटों ने तो बेंजामिन को ही इसका असली आविष्कारक माना है । बता दें कि बेंजामिन
ने अपने उपकरण का नाम कंडक्टर पंच रखा था ।
o
वक्त के साथ बेहतर होता गया होल
पंच : आविष्कार
के बाद इस छोटे से उपकरण में गुजरते वक्त के साथ कई बदलाव हुए । बदलाव का मकसद
इसके इस्तेमाल को आसान बनाना था । चार्ल्स ब्रूक्स नाम के एक अमेरिकी शख्स को
जर्मन खोज वाले होल पंच को बेहतर करने का श्रेय दिया जाता है । उन्होंने इस उपकरण
में छोटा सा बक्सा लगाया, जिसमें छेद करने की वजह से उत्पन्न हुए कागज इकट्ठा हो जाते थे ।
o 20वीं और 21वीं शताब्दी में और बेहतर
हुआ होल पंच : दिखने
में होल पंच भले ही एक अदना सा उपकरण लगे लेकिन गुजरते वक्त में इसमें काफी ज्यादा
बदलाव हुए हैं और ये बदलाव 21वीं शताब्दी तक हुए । वक्त के साथ ये प्लायर के आकार के बनने लगे । इसका
मूलभूत डिजाइन तो वही रहा, लेकिन हल्का बनाने के लिए बॉडी
में प्लास्टिक का इस्तेमाल होने लगा । वहीं, कटर की जगह लोहे
या आम मेटल के स्थान पर स्टील का इस्तेमाल होने लगा ।
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होल पंच का अविष्कार मशूहर इन्वेंटर बेनजामिन स्मिथ ने किया था
। हालांकि इस होल पंच में कुछ बदलाव कर बाद में 14 नवंबर, 1886 को जर्मनी के रहने वाले इन्वेंटर फ्राइडरिच ने
इसे अपने नाम पर पेटेंट करा लिया था । फ्राइडरिच को सम्मान देते हुए गूगल ने उनके
इस होल पंच का डूडल बनाया है । बता दें कि एक बाइंडर और
निब जो कि इंक पैन के लिए इस्तेमाल की जाती है, फ्राइडरिच
ने इन दोनों चीजों का भी अविष्कार किया था । जर्मन के
रहने वाले फ्रेडरिक सुनेनिकन ऑफिस स्टेशनरी की सप्लाई करने का काम करते थे और खुद
की अपनी एक कंपनी चलाते थे । होल पंच के अविष्कार से वे जल्दी ही प्रसिद्ध हो गए ।
उनके कागज़-कलम के दिवानों में से एक जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे भी थे ।
फ्रेडरिक का मानना था कि हार किसी को मारती नहीं बल्कि औऱ
मजबूत बनाती है । दिलचस्प बात यह है कि इस पंच मशीन की डिजाइन में बहुत ज्यादा विशेष
बदलाव नहीं किए गए है,
यानी आज से सैकड़ों साल पहले जैसी यह मशीन दिखती थी आज भी वैसी ही
है ।