रेलवे समपार फाटक (लेवल-क्रॉसिंग) रेलपथ का अभिन्न
भाग है । भारतीय रेल में लगभग 2 से 3 किलोमीटर के बीच एक समपार फाटक (मानवयुक्त
अथवा मानवरहित) उपलब्ध है । इन फाटको पर आए दिन अनेक दुर्घटनाओ के किस्से भी समाचार
पत्रों में देखने को मिलते है और इन दुर्घटनाओं के लिए हम लोग अक्सर रेलवे को ही
जिम्मेदार मानते है । हालांकि मानवयुक्त फाटक पर रेलवे का आदमी (चौकीदार) होने के
नाते आंशिक या पूर्णतः जिम्मेदार हो सकती है किन्तु मानवरहित फाटकों पर दुर्घटनाओं
के मामले बहुत ही ज्यादा है ।
मानवरहित फाटकों पर दुर्घटनाएँ रोकने
और कम किए जाने के उद्देश्यार्थ प्रति वर्ष “अंतर्राष्ट्रीय लेवल क्रासिंग जागरूकता दिवस (ILCAD)” आम जनमानस के बीच
जागरूकता लाने के लिए एक पखवाड़े के रूप में मनाया जाता है । इस वर्ष यह दिवस 2 जून
(शुक्रवार) के दिन मनाया जा रहा है ।
इस
पखवाड़े के दौरान रेलवे, राज्य प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं और आम आदमी की
भागीदारी के संयुक्त प्रयास होता है तथा फाटक से पास होने वाले सड़क उपयोगकर्ताओं
के संरक्षा सम्बन्धी पोस्टर, लीफलेट,
रैली, नियम इत्यादि की जानकारी बाबत बताया जाता है । यद्यपि सड़क दुर्घटनाओं कि तुलना में रेल दुर्घटनाओं का
अनुपात बहुत ही कम है, इसके बावजूद जब भी किसी लेवल-क्रॉसिंग
पर दुर्घटना होती है तो बड़ा ही हंगामा मचाता है और तब प्रश्न उठता है कि, क्या वास्तव में मानवरहित फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा
सकता है या नहीं ?
रेल फाटकों पर
होने वाली दुर्घटनाएं बड़े पैमाने पर मानव जनित है और इनसे बचा जा सकता है । ध्यान
रहे कि 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली किसी भी रेलगाड़ी को 1.0 किलोमीटर
की दूरी तय करने में एक मिनट से भी कम समय लगता है । इसी तरह रेलगाड़ी चालकों को
लेवल क्रासिंग के 600 मीटर दूर से ही इंजन की सीटी बजाने के लिए प्रशिक्षित किया
गया है ।
भारतीय रेल ने
चौकीदार रहित रेलवे फाटकों की जानकारी देने के लिए वास्तविक क्रासिंग से 200, 120 और 5 मीटर पहले से ही चार प्रकार के साइन
बोर्डो, सड़क चेतावनी निशानों को उपलब्ध कराया है ।
पहले साइन
बोर्ड में एक रेल इंजन दो पट्टियां, दूसरे में एक इंजन और एक पट्टी है । तीसरे में एक स्पीड ब्रेकर चेतावनी और
चौथे में बड़े-बड़े अक्षरों में ‘रूको, सुनो और आगे बढ़ो’ लिखा हुआ है ।
रेलवे लगातार
यात्रियों से अपील करता रहा है कि लेवल क्रासिंग पार करते समय अत्यधिक सावधानी बरतें, अधिक आवाज में कार का रेडियो बजाना, रेलगाड़ी को देखने के बावजूद लेवल क्रासिंग पार करने का प्रयास करना और
वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना, ये सभी दुर्घटनाओं को
सीधा निमंत्रण है, जिनसे जनहानि का जोखिम बना ही रहता है ।
मानवरहित फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए रेल प्रशासन द्वारा समपार फाटकों पर रेट्रो-रिफलेक्टिव चेतावनी बोर्ड, स्पीड-ब्रेकर, ऑडियो वार्निंग सिस्टम इत्यादि के साथ-साथ लोकल स्तर पर आम आदमियों में भी, विशेषतः मानवरहित फाटकों को पार करने सम्बन्धी जागरूकता संगोष्ठियाँ आयोजित करके हर सम्भव प्रयास किया जाता रहा है । हालांकि मानवरहित फाटकों को सावधानीपूर्वक पार करने कि ज़िम्मेदारी पूर्णतः फाटक पर करने वाले सड़क उपयोगकर्ता की होती है । उसे मानवरहित फाटक को पार करते समय दोनों ओर देखकर और ध्यानपूर्वक ‘सीटी’ की आवाज सुनने के बाद, कोई गाड़ी तो नहीं आ रही है, सुनिश्चित करने के बाद ही पार करना चाहिए । किन्तु अधिकतर मामलों में सड़क उपयोगकर्ता चेतावनी बोर्ड की अनदेखी, ‘सीटी’ की आवाज पार ध्यान न देना, जल्दबाज़ी, गाड़ी की गति का गलत अनुमान, तेज आवाज संगीत के साथ गाड़ी चलाना, फाटक को सख्तीपूर्वक पार करने का प्रयास इत्यादि के कारण दुर्घटना का शिकार बनते है । मानवरहित फाटकों पार होने वाली दुर्घटनाओं में अधिकतर रेल प्रशासन जिम्मेदार नहीं होता है फिर भी, चाहे गलती सड़क उपयोगकर्ता की ही क्यों ना हो, रेलवे को बदनामी का सामना तो करना ही पड़ता है ।
“रेलवे-विजन” कार्यक्रम
के तहत सभी मानवरहित फाटकों को, या तो मानवयुक्त बनाना है या
उसे ‘ओवर-ब्रिज’ अथवा ‘अंडर-ब्रिज’/’सब-वे’ के रूप
में 2020 तक परिवर्तित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । किन्तु वर्तमान में
रेलवे की माली-हालत को देखते हुए यह कार्य राज्य सरकारो के सहयोग तथा निजीकरण /
सहकारी भागीदारी (पी. पी. पी.) पद्धति के बिना सम्भव नहीं है और यह लक्ष्य कब पूरा
होगा, कहना बड़ा ही कठिन है । रेलवे द्वारा मानवरहित फाटकों
पर दुर्घटनाएँ रोकने के प्रयासरूप फाटक पर “ गेट-मित्र ” प्राइवेट आदमी के आदमी रखने
का काम शुरू कर दिया गया है और प्रक्रिया चालू भी है । प्राइवेट पार्टी द्वारा रखे
गए, इन ‘गेट-मित्र’ को नामशेष का प्रशिक्षण देकर रेलवे द्वारा खानापूर्ति भी कर लिया है ; किन्तु रेलवे कामकाज की विशिष्टशैली, अवरोध/खतरा की
स्थिति में बचाव एवं संरक्षण कार्य, ‘सेफ़्टी-नियमों’ का ज्ञान एवं महत्त्वता, प्रशिक्षण इत्यादि का अभाव, इन गेट-मित्रों के लिए एक बहुत बड़ा सवालिया निशान है ?? ऐसे मानवरहित फाटक, जहाँ पर ‘गेट-मित्र’ रखे गए है, पर यदि कोई दुर्घटना होती है तो, जिम्मेदार कौन ? रेलवे या एजेंसी ??
रेलवे में वर्ष
2016 के आंकड़ों के अनुसार कुल 28607 समपार फाटक है, जिसमें से 9340 मानवरहित और 19267 मानवयुक्त फाटक है । इन मानवरहित
फाटकों पर होने वाली दुर्घटनाओं की 40% हिस्सेदारी है और भारत सरकार या रेल मंत्रालय
कितना गम्भीर है; यह तो आने वाला समय ही बताएगा ।
मेरा तो “अंतर्राष्ट्रीय
लेवल क्रासिंग जागरूकता दिवस (ILCAD)” के इस मौके पर यही अपील है कि, भारतीय रेल अपने यात्रियों से बार-बार विभिन्न संदशों के माध्यम
से अपील करती आ रही है कि, आपकी जान अत्यंत ही कीमती
है और घर पर आपके परिजन आपका इंतजार कर रहे है ।
रेल सुरक्षा
संगठन ने चौकीदार रहित रेलवे फाटकों को पार करते समय दिशा-निर्देशों का पालन करने
की आवश्यकता पर हमेशा ज़ोर देता आ रहा है । रेलवे द्वारा बार बार कार और बस
यात्रियों (सड़क उपयोगकर्ताओं) से यही अपील करता है कि, अपने वाहन को रोककर नीचे उतरे और दोनों दिशाओं
में देखें और ध्यानपूर्वक ‘सीटी’ की
आवाज सुनने के बाद, कोई गाड़ी तो नहीं आ रही है, सुनिश्चित करने के बाद ही पार करना चाहिए ।
अगली
बार आप जब भी किसी लेवल क्रासिंग के पास से गुजरे तो याद रखिएगा – “एक मिनिट से भी कम समय का इंतजार आपके लिए
जीवन भर फायदेमंद रहेगा और आप स्वस्थ, आनंदमय तथा
प्रफुल्लित जीवन व्यतीत करेंगे ।
हमेशा ध्यान रखे :- “सतर्क व्यक्ति ही संरक्षा का सर्वोत्तम साधन है
।”
रेलवे समपार फाटक (लेवल-क्रॉसिंग) रेलपथ का अभिन्न भाग है । भारतीय रेल में लगभग 2 से 3 किलोमीटर के बीच एक समपार फाटक (मानवयुक्त अथवा मानवरहित) उपलब्ध है । इन फाटको पर आए दिन अनेक दुर्घटनाओ के किस्से भी समाचार पत्रों में देखने को मिलते है और इन दुर्घटनाओं के लिए हम लोग अक्सर रेलवे को ही जिम्मेदार मानते है । हालांकि मानवयुक्त फाटक पर रेलवे का आदमी (चौकीदार) होने के नाते आंशिक या पूर्णतः जिम्मेदार हो सकती है किन्तु मानवरहित फाटकों पर दुर्घटनाओं के मामले बहुत ही ज्यादा है ।