भागदौड़ भरे जीवन मे अनेक बार ऐसे अवसर अवश्य आते है, जब व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्त्व को न बदलकर, विश्व को बदलने की नाकाम कोशिश करता है । इस विचारधारा वाला छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब या अच्छा-बुरा कोई भी व्यक्ति हो सकता है । यहाँ तक कि, अनेक बार दृढ़-निश्चयी और अच्छा व्यक्ति भी अपने व्यक्तित्त्व को नहीं बदल पाता है । एक किदवन्ती है कि, सबसे सुखी कौन ? और इसका जवाब है, जिसका पडौसी दुखी... । कई बार व्यक्ति अपने पड़ौसी के चक्कर में अपना दरवाजा, कमरा, मकान बदलने को तैयार हो जाता है किन्तु स्वयं को बदलने को तैयार नहीं होता है । सोचिए, हमें जब नींद नहीं आती है तब हम करवटें, तकिया, जगह बदलते है और कई बार पलंग बदलते है । जबकि इसके विपरीत, कुदरती नींद आने पर वह व्यक्ति उसी स्थल पर अपने आप करवटें बदलते हुए भी सोता रहता है, अर्थात अच्छी नींद के लिए पलंग नहीं... बल्कि करवट बदलने की अवश्यकता है । यदि व्यक्ति एक ही जगह पड़ा रहे और उसके बाद शिकायत करें कि, मेरी कमर में दर्द है, शरीर में जकड़न हो गई है इत्यादि-इत्यादि । ऐसे समय पर यह कहना अधिक उपयुक्त रहेगा कि, इसके लिए अपने सोने का तरीका बदलो, जगह नहीं अर्थात स्वयं को बदलो ।
वास्तव में बदलाव के लिए हमेशा दृश्य बदलने की कम आवश्यकता है बल्कि, दिशा - दृष्टि बदलने की अधिक आवश्यकता है । जब हमारी अंर्तदृष्टि की आंखे खुलती है और उस समय सच्चे मन से आत्म-निरीक्षण करते हुए, अपनी दैनिक दिनचर्या को बदल लिया जाए तो हमारा जीवन ही बदल जाएगा । कई बार दशा बदलने के लिए, दिशा बदलने की भी आवश्यकता होती है । उदाहरण के तौर पर जैसे – एक मूर्ख व्यक्ति सूर्य के सामने खड़ा होकर शिकायत करते हुए बोले कि, सूर्य मुझे परेशान कर रहा है, जिसके कारण मेरी आंखे और मुंह जल रहा है, मेरा गला सूख रहा है और अधिक धूप से चक्कर आ रहा है । ऐसे समय पर कोई अनुभवी एवं समझदार मनुष्य उसे शांतिपूर्ण तरीके के साथ, कंधे पर हाथ रखकर बोले कि, तुम अपनी दिशा बदलो, दशा अपने-आप बादल जाएगी । सूर्य के प्रकाश के समक्ष देखने की जगह, उसके प्रकाश से दूसरों को देखना सीखो । जीवन में यदि सफल बनना है तो मुसीबत ों को, मौके में बदलने की कला और धैर्य की आवश्यकता होती है । जब विपरीत परिस्थितियाँ पैदा होती है तब, जीवन में असंतुलन और खतरा पैदा होने का भय महसूस होने लगता है । अतः मुसीबतों से घिरने पर अपनी शक्ति को शिकायत, आक्षेप, बुराई इत्यादि में बर्बाद करने से बेहतर है कि, शांतचित्त और धीरज के साथ योग्य रास्ता ढूंढें । हमें मुसीबतों के समय रास्ता निकालने का तरीका सीखना ही पड़ेगा और इसके लिए हमें अपने अंदर सोई हुई आत्मशक्ति और पुरुषार्थ को जगाने के अलावा, कोई अन्य विकल्प नहीं है ।