प्रंशसा चाहे कितनी भी करो…,
किन्तु अपमान बहुत ही सोच-समझकर करना चहिये ;
क्योंकि अपमान वो ऋण है, जो हर कोई अवसर मिलने पर ब्याज सहित चुकाता अवश्य है ।
3 जनवरी 2018
प्रंशसा चाहे कितनी भी करो…,
किन्तु अपमान बहुत ही सोच-समझकर करना चहिये ;
क्योंकि अपमान वो ऋण है, जो हर कोई अवसर मिलने पर ब्याज सहित चुकाता अवश्य है ।
4 जनवरी 2018