आजकल जब आप मार्केट में जाते है तो, लगभग सभी स्थलों की दुकानों पर 'चाइना' आइटम्स की भरमार देखने को मिलती है । हम इन चीनी आइटमों की ओर बरबस आकर्षित हुए बिना नहीं नहीं रह सकते है । आजकल भारतीय सीमा पर चीनी सेना द्वारा अतिक्रमण या घुसपैठ का मुद्दा कुछ ज्यादा ही गरमाया हुआ है । ऐसी स्थिति में हमारे फेसबुक एवं व्हाट्सअप वीर अथवा ज्ञान ी बाबाओं के उपदेश शुरू हो जाते है कि हमें चाइना निर्मित आइटमों का बहिष्कार किया जाना चाहिए । बात कुछ हद तक ठीक भी है किन्तु ऐसे समय में सामान्य समझ वाले व्यक्ति के लिए बड़ी ही विकट स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि, वह आसानी और सस्ते मूल्य पर उपलब्ध चाइना आइटम्स को अपनी आवश्यता पूर्ति के लिए खरीदे अथवा न खरीद कर देशभक्ति का प्रदर्शन करे... ? आइए, इन “फेंगशुई” आइटमों के सम्बंध में थोड़ा परिचित होते है ।
यह सच्ची घटना एक परिचित के साथ घटी थी; जब गृह प्रवेश के वक्त मित्रों ने नए घर की ख़ुशी में उपहार भेंट किए थे । अगली सुबह जब उन्होंने उपहारों को खोलना शुरू किया तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था !!! जिसके बारे में उन्होंने बाद में सुनाया था ।
एक दो उपहारों को छोड़कर बाकी सभी में लाफिंग बुद्धा , फेंगशुई पिरामिड, चाइनीज़ ड्रेगन, कछुआ , फेंगसुई सिक्के, तीन टांगों वाला मेंढक और हाथ हिलाती हुई बिल्ली जैसी अटपटी वस्तुएं दी गई थी । जिज्ञासावश उन्होंने इन उपहारों के साथ आए कागजों को पढ़ना शुरू किया जिसमें इन चाइनीज़ “फेंगशुई” के मॉडलों का मुख्य काम और उसे रखने की दिशा के बारे में बताया गया था । जैसे लाफिंग बुद्धा का काम घर में धन, दौलत, अनाज और प्रसन्नता लाना था और उसे दरवाजे की ओर मुख करके रखना पड़ता है । कछुआ पानी में डूबाकर रखने से कर्ज से मुक्ति, सिक्के वाला तीन टांगों वाला मेंढक रखने से धन का प्रभाव, चाइनीज ड्रैगन को कमरे में रखने से रोगों से मुक्ति, विंडचाइम लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, प्लास्टिक के पिरामिड लगाने से वास्तुदोषों से मुक्ति, चाइनीज सिक्के बटुए में रखने से सौभाग्य में वृद्धि होगी ...ऐसा लिखा था ।
यह सब पढ़ कर वह हैरान हो गया क्योंकि यह उपहार उन दोस्तों ने दिए थे जो पेशे से इंजीनियर, डॉक्टर, बुद्धीजीवी और वकील जैसे पदों पर काम कर रहे थे । हद तो तब हो गई जब डॉक्टर मित्र ने रोग भगाने वाला और आयु बढ़ाने वाला चाइनीज 'ड्रैगन' गिफ्ट किया ! जिसमें लिखा था “आपके और आपके परिवार के सुखद स्वास्थ्य का अचूक उपाय” !!
इन “फेंगशुई” उपहारों में एक प्लास्टिक की सुनहरी बिल्ली भी थी, जिसमें बैटरी लगाने के बाद, उसका एक हाथ किसी को बुलाने की मुद्रा में आगे पीछे हिलता रहता था । कमाल तो यह था कि उसके साथ आए कागज में लिखा था “मुबारक हो, सुनहरी बिल्ली के माध्यम से अपनी रूठी किस्मत को वापस बुलाने के लिए इसे अपने घर, कार्यालय अथवा दुकान के उत्तर-पूर्व में रखिए !”
उन्होंने इंटरनेट खोलकर “फेंगशुई” के बारे में और पता लगाया तो कई रोचक बातें सामने आई । ओह ! जब गौर किया तो 'चीनी आक्रमण' का यह गम्भीर पहलू समझ में आया ।
दुनिया के अनेक देशों में कहीं न कहीं “फेंगशुई” का जाल फैला हुआ है । इसकी मार्केटिंग का तंत्र इंटरनेट पर मौजूद हजारों वेबसाइट के अलावा, TV कार्यक्रमों, न्यूज़ पेपर्स और पत्रिकाओं तक के माध्यम से चलता है । मजहबी बनावट के कारण अमूमन मुस्लिम उसके शिकार नही होते । यानी इस हथियार का असल शिकार कौन है ? आप आसानी से समझ सकते हैं । चीनी इस फेंगसुई का इस्तेमाल किसी बाजार में प्रारम्भिक घुसपैठ के लिए करते हैं ।
अनुमानत: भारत में ही केवल इस का कारोबार लगभग 200 करोड रुपए से अधिक का है । उसी के सहारे धीरे-धीरे भारत के उत्पाद मार्केट पर चीनी उत्पादों ने पचास प्रतिशत तक कब्ज़ा लिया है । किसी छोटे शहर की गिफ्ट शॉप से लेकर सुपर माल्स तक चीनी प्रोडक्ट्स आपको हर जगह मिल जाएंगे....वह छा गये है । उन्होंने स्थानीय उत्पादों को लगभग समाप्त कर दिया है । चाइनीज उत्पादों का आक्रामक माल, भारत सहित दुनिया के अलग-अलग देशों में इस कदर बेचा जाता है कि, दूसरों की मौलिक अर्थ-व्यवस्था तबाह हो जाती है । सस्ता और बड़ी मात्रा में होना उसका जाँचा-परखा पैंतरा है ।
अब आते हैं उसके जादुई हथियार पर जो जेहन का शिकार करती है !!!
चीन में "फेंग" का अर्थ होता है वायु और "शुई" का अर्थ है जल अर्थात “फेंगशुई” का पूरा मतलब है जलवायु । इसका आपके सौभाग्य, स्वास्थ्य और मुकदमे में हार जीत से क्या संबंध है ? आप खुद ही समझ सकते हैं ।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिपेक्ष्य से भी देखा जाए तो कौन सा भारतीय अपने घर में आग उगलने वाली चाइनीज छिपकली यानी "Dragon" को देख कर प्रसन्नता महसूस कर सकता है ? बल्कि घर मे नवजात शिशु भयानक मुख वाले ड्रेगन को देखकर अंदर ही अंदर भयभीत होता रहता है और जिसे डॉक्टर भी न समझ पाए, कई बार ऐसी ही बीमारी के गिरफ्त में आ जाता है । उनके जेहन में ड्रेगन को देवता मानने का गुण हो सकता है, पर हम उनसे एकदम भिन्न हैं । किसी जमाने में जिस बिल्ली को अशुभ मानकर रास्ते पर लोग रुक जाया करते थे; उसी बिल्ली के सुनहरे पुतले को घर में सजाकर सौभाग्य की मिन्नतें करना महामूर्खता नहीं तो और क्या है ??
अब जरा सर्वाधिक लोकप्रिय “फेंगशुई” उपहार 'लाफिंग बुद्धा' की बात करें... धन की टोकरी उठाए, मोटे पेट वाला गोल मटोल सुनहरे रंग का पुतला, क्या सच में महात्माबुद्ध है ? वह किसी भी तरह से ‘बुद्ध’ जैसा सौम्य, शांत और सुडौल दीखता है ??
क्या ‘बुद्ध’ ने अपने किसी प्रवचन में कहीं यह बताया था कि मेरी इस प्रकार की मूर्ति को अपने घर में रखो और मैं तुम्हें सौभाग्य और धन दूंगा ? उन्होंने तो सत्य की खोज के लिए स्वयं अपना धन और राजपाट त्याग दिया था ।
एक बेजान चाइनीज पुतले (लाफिंगबुद्धा) को हमने तुलसी के पेड़ की महिमा से ज्यादा बढ़कर मान लिया और तुलसी जैसी रोग मिटाने वाली सदा प्राणवायु देने वाली और हमारी संस्कृति की याद दिलाने वाली प्रकृति की सुंदर देन को अपने घरों से निकालकर, हमने ‘लाफिंग बुद्धा’ को स्थापित कर दिया और अब उससे सकारात्मकता और सौभाग्य की उम्मीद कर रहे हैं ? क्या यही हमारी तरक्की है ???
अब तो दुकानदार भी अपनी दुकान का शटर खोलकर सबसे पहले ‘लाफिंग बुद्धा’ को नमस्कार करते हैं और कभी-कभी तो अगरबत्ती भी लगाते देखे गए हैं !
फेंगसुई की दुनिया का एक और लोकप्रिय मॉडल है चीनी देवता फुक, लुक और साऊ । 'फुक' को समृद्धि, 'लुक' को यश, मान-प्रतिष्ठा और 'साऊ' को दीर्घायु का देवता कहा जाता है । “फेंगशुई” ने बताया और हम अंधभक्तों ने अपने घरों में इन मूर्तियों को लगाना शुरु कर दिया । मैंने देखा कि इंटरनेट पर मिलने वाली इन मूर्तियों की कीमत भारत में रूपए 200/- से लेकर रूपए 15000/- तक है, मसलन जैसी जेब; वैसी मूर्ति और उसी हिसाब से सौभाग्य का भी हिसाब-किताब सैट है । क्या आप अपनी लोककथाओं और कहानियों में इन तीनों देवताओं का कोई उल् लेख पाते हैं ? क्या भारत में फैले 33 कोटि देवी देवताओं से हमारा मन भर गया कि, अब इन चाइनीज देवताओं को भी घरों में स्थापित किया जा रहा है ?
जरा सोचिए कि किसी कम्युनिस्ट चीन के ‘बूढ़े देवता’ की मूर्ति घर में रखने से हमारी आयु कैसे ज्यादा हो सकती है ? क्या इतना सरल तरीका विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को अब तक समझ में नहीं आया था ?
इसी तरह का एक और “फेंगशुई” प्रोडक्ट है तीन चाइनीज सिक्के जो लाल रिबन से बंधे होते हैं, “फेंगशुई” के मुताबिक रिबिन का लाल रंग इन सिक्कों की ऊर्जा को सक्रिय कर देता है और इन सिक्कों से निकली यांग (Yang) ऊर्जा आप के भाग्य को सक्रिय कर देती है । दुकानदारों का कहना है कि इन सिक्कों पर धन के चाइनीज मंत्र भी खुदे होते हैं लेकिन जब मैंने उनसे इन चाइनीज अक्षरों को पढ़ने के लिए कहा तो ना वे इन्हें पढ़ सके और नहीं इनका अर्थ समझा सके ?
मेरा पूछना है कि क्या चीन में गरीब लोग नहीं रहते ? क्यों चीनी कम्युनिष्ट खुद हर नागरिक के ‘बटुवे’ में यह सिक्के रखवा कर अपनी गरीबी दूर नहीं कर लेती ? हमारे देश के रुपयों से हम इन बेकार के चाइनीज़ सिक्के खरीद कर, न सिर्फ अपना और अपने देश का पैसा हमारे शत्रु मुल्क को भेज रहे हैं बल्कि अपने कमजोर और गिरे हुए आत्मविश्वास का भी परिचय दे रहे हैं ।
“फेंगशुई” के बाजार में एक और गजब का प्रोडक्ट है तीन टांगों वाला मेंढक, जिसके मुँह में एक चीनी सिक्का होता है । “फेंगशुई” के मुताबिक उसे अपने घर में धन को आकर्षित करने के लिए रखना अत्यंत शुभ होता है । जब मैंने इस मेंढक को पहली बार देखा तो सोचा कि जो देखने में इतना भद्दा लग रहा है वह मेरे घर में सौभाग्य कैसे लाएगा ? मेंढक का चौथा पैर काट कर उसे तीन टांग वाला बनाकर शुभ मानना किस सिरफिरे की कल्पना है ? क्या किसी मेंढक के मुँह में सिक्का रखकर घर में धन की बारिश हो सकती है ? संसार के किसी भी जीव विज्ञान के शास्त्र में ऐसे तीन टांग वाले और सिक्का खाने वाले मेंढक का उल्लेख क्यों नहीं है ?
कम्युनिष्ट चाइना ने इसी तरह की आक्रामक रणनीति के सहारे धीरे-धीरे भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर लगभग कब्ज़ा लिया है । उनके इस हथियार से देश के हजारों छोटे कारीगर, लघु उद्यमी, स्थानीय व्यापार , छोटे-कल कारखाने नष्ट हो चुके है । सब वस्तुएं चाइना से बनकर तैयार आ रही हैं । वह वस्तुएं भी जिन्हें बनाने में हजारों सालो से हमारे कारीगर निपुण थे । केवल कुम्हार, बढ़ई, लुहार, कर्मकार आदि 5 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाली जातियों के लोग, पारम्परागत रॊजगार छिनने से बेकारी के शिकार हो रहे हैं । आप लिस्टिंग करें... ऐसे हजारों काम-व्यापार दिखेगें, जिसे चीन ने अपने छोटे और सस्ते उत्पादों से भरमार करके कब्ज़ा कर लिया है; परिणामस्वरूप... हम केवल एक बिचौलिए विक्रेता की भूमिका में ही रह गये हैं ।
बहुत दिमाग लगाकर समझिए, अब युद्द के हथियार वह नही होते हैं जो पारम्परिक थे । अब पूरी योजना से शत्रु के पास जाकर उसके दिमाग को ग्रिप में लेना पड़ता है । यह ‘फेंगशुई’ भी उसी ‘दिमागी खेल ’ का हिस्सा है, जो हमारे हजारों साल के अध्यात्मिक ज्ञान को कमजोर करने के लिए भेजा गया है । कम्युनिष्टों ने उसे गोरिल्ला रणनीति की तरह अपनाया है ।
अपनी वैज्ञानिक सोच को जागृत करना और इनसे पीछा छुड़ाना अत्यंत आवश्यक है । आप भी अपने आसपास गौर कीजिए आपको कहीं ना कहीं इस “फेंगशुई” की जहरीली और अंधविश्वास को बढ़ावा देती चीजें अवश्य ही मिल जाएगी ।
जब पूरे संसार ने एक मत से यह माना है कि सनातन धर्म ही विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है और हमारे उसी धर्म ने आवास को लेकर हमे बहुत ही पवित्र, वैज्ञानिक और उन्नत एवं ग्राह्य शास्त्र दिया है जिसे हम "वास्तुशास्त्र" के नाम से जानते हैं ; वास्तुशात्र हमे हमारी भौगोलिक स्थिति जैसे- हमारे उत्तर-पूर्व में हिमालय, दक्षिण और पश्चिम में विशाल सागर, दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी आदि के अनुरूप दिशाओं के वर्गीकरण, उत्तरीय और दक्षिणी ध्रुवों की चुम्बकीय रेखा और सूर्य रश्मियों के आधार पर हमारी सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा सुख-सौभाग्य निर्धारण करने में अनुभवसिद्ध और सक्षम है । यह "वास्तुशास्त्र" हमारी ही नही पूरे विश्व के लिए कल्याणकारक है ।
यह तो बस हमारी "विदेशी चीज, सदा अच्छी" जैसी सस्ती मानसिकता की वजह से अपने महान "वास्तुशात्र" के सहज और सरल निर्देशों का पालन न कर के स्मार्ट बनने की अंधी दौड़ में सामिल हैं और फेंगसुई उत्पादों जैसे वाहियात चीजों के लिए अपनी गाढ़ी कमाई को खर्च करके खुद और देश को कमजोर करने में लगे हैं ।
अतः “वैज्ञानिक सोच और दष्टिकोण अपनाओ तथा अंधविश्वास दूर भगाओ ॥”