मनुष्य एक अजीब प्रकृति एवं चरित्र वाला प्राणी है । उसके खून में विद्यमान रक्त कणों और श्वेत कणों की तरह विरोधाभास उसकी रगों में सतत बहता ही रहता है । उसके द्वारा अधिकतर वहीं किया जाता है, जिसका उसके द्वारा अक्सर विरोध किया जाता रहा है । आपका जीवन में कई बार, ऐसे व्यक्तियों से अवश्य ही पाला पड़ा होगा जो कहते है कि, यह बात गोपनीय या व्यक्तिगत है, किसी से भी ना कहना और वही बात वह अनेक व्यक्तियों से कहता फिरता है ।
मनुष्य अपनी पहचान, अच्छी छाप और प्रतिष्ठा पाने की लालसा के लिए वह अनेक प्रयत्न एवं उपाय आजमाता है । इस मकसद में सफल होने और प्रसिद्धि मिलने के बाद काला चश्मा पहन लेता ताकि, कोई अपना उसकी वास्तविकता को ना जान सके । उसके व्यक्तिगत जीवन में कोई दूसरा दखल दे, यह उसके लिए आपत्तिजनक और सिद्धान्त विरोधी होता है किन्तु वही व्यक्ति जब उसी व्यक्ति को अपने स्वार्थ हेतु पक्ष में करने के लिए जब मौका मिलता है तब उन सभी सिद्धांतों को बाजू में रखने में कोई आपत्ति नहीं होती है, जिनके लिए वह विरोध करता आ रहा है अथवा पक्षधर था ।
बहुत से लोग दूसरों के निजि जीवन के सम्बंध में बहुत कुछ बोल दिए जाने के बाद कहते है कि, दूसरों के व्यक्तिगत जीवन से उनका कोई लेना-देना नहीं है और इस बारे में उन्हें फालतू बात करने का शौक नहीं है । कुछ कहते है, ‘मैं डाइटिंग पर हूँ’, कहते हुए आवश्यकता से अधिक खाते रहते है और उसके पश्चात वज़न कम करने के लिए पैसा भी खर्चते है । हमारे शास्त्रों में तो “अन्नं ब्रह्म” कहा गया है । हिपोक्रेट का कहना है कि, “खुराक को दवा समझ के खाओ, नहीं तो दवा को खुराक बनाना पड़ेगा ।”
ऐसा अनेक लोगो द्वारा कहा जाता है कि, सोनी का सोना खरीदने का ' तराजू ' अलग और बेचने का 'तराजू' (हालांकि आजकल तो इलेक्ट्रोनिक वज़न मशीन का जमाना है) दोनों अलग-अलग होते है । अकेला सोनी ही क्यों ? हमारे सभी के “स्व” मूल्यांकन के लिए अलग 'तराजू' और दूसरों के मूल्यांकन के लिए दूसरा ही 'तराजू' होता है । कोई दूसरा चोरी करे तो उसे ‘चोर’ कहें और खुद चोरी करें और पकड़े जाने पर, उसे चोरी नहीं बल्कि ‘मजबूरी’ की उपमा ! … कितना बड़ा विरोधाभाष !!
मेहनत करने की सलाह देने वाला जब ‘लॉटरी' का टिकिट खरीदता है; तब समझ में आता है कि, आदमी की ‘करनी' और ‘कथनी' में जमीन-आसमान का वास्तविक अंतर कितना है और यह ठीक उसी तरह से है जैसे- हाथी वज़न कम करने की सलाह दे !!
किसी भी घटना या परिस्थिति के दौरान आदमी का रवैया या प्रतिक्रिया में अपने व्यक्तिगत अनुभव का अहम आधार होता है । कोई भी व्यक्ति 100% तटस्थ नहीं बन सकता है हालांकि, हमें तटस्थ होने का वहम जरूर होता है । ‘सोशियल मीडिया' ने हमारे इस वहम को कुछ अधिक ‘ग्लोरीफ़ाई' किया है; आदमी स्वयं के चेहरे/चरित्र का ‘स्व' आंकलन / मूल्यांकन को एक बाजू रखकर, दूसरे के चरित्र का सत्य-असत्य तरीके से ‘महिमामंडन’ करने की खुली छूट... मेरे, तुम्हारे जैसे सभी को ‘सोशियल मीडिया' ने दे दिया गया है । सोशियल मीडिया पर अभिप्राय की हिंसा के आचरण के कारण, लगभग हम सभी “ आत्मतुष्ट ” ( Holier than Thou) सिंड्रोम से पीड़ित है । सोशियल मीडिया पर किसी भी घटना या विषय पर अपना अभिप्राय देने से पूर्व, किसी दूसरे के आधार पर नहीं बल्कि, स्वयं को उस परिस्थिति में रखते हुए और प्रमाणिक रह कर ही प्रतिक्रिया करनी चाहिए । हालांकि, कमियाँ ढूढ़ने वाले को मेरी बात नहीं समझ आयेगी क्योंकि पीलिया रोग से पीड़ित व्यक्ति को पीला ही दिखाई देगा, इसमें उसका क्या दोष ? हाथी के दाँत खाने के कुछ ओर और दिखाने के कुछ ओर... । अपना गणित सोशियल मीडिया पर अलग और व्यवहारिक जीवन में अक्सर कुछ अलग ही होता है !! कई बार तो ऐसा लगता है कि, “चेहरे पर मुखौटा और मुखौटे में चेहरा" के कर्म रूपी खेल में, स्वयं के जरूर खो जाने की आशंका है ।
आजकल शरीर में से कचरा निकालने के लिए ‘डिटोक्स’ ड्रिंक्स का बहुत बोलबाला है । काश, कोई ऐसी भी रेसिपी होती, जिसके द्वारा मन की गंदगी को निकाला जा सके । जिस प्रकार से दुनिया भर के जंक-फूड खाने के बाद, एक डिटोक्स-ड्रिंक पीने से शरीर का कचरा दूर हो सकता है; हम लोग भी कुछ इसी प्रकार के भ्रम में जी रहें है ।
इसी प्रकार से दुनिया भर के गलत काम करके, एक सत्य नारायण की कथा करवाने से सारे पाप धुल जाते है, इस प्रकार के आश्वासन मनुष्य ढूढ़ता ही रहता है । ‘पाप और पुण्य’ कोई रबर-पेंसिल नहीं है कि, पहले कर्म करो और उसके बाद पूजा-पाठ से मिटा दो... । यहाँ पर आपत्ति सत्य नारायण की कथा या पूजा-पाठ से नहीं है, यह तो व्यक्तिगत आस्था और श्रद्धा का विषय है । किन्तु मेरा विरोध, इस पाप-पुण्य के गणित एवं मानसिकता से है ।
गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति मेरी बात से अवश्य ही सम्मत होना चाहिए कि, जब आगे रास्ता साफ हो तो आँखें खुली रखकर गाड़ी को द्रुतगति से आगे की ओर चलाया जा सकता है किन्तु जब गाड़ी ‘रिवर्स' में लेना हो या चलना हो, तब ‘रियर-व्यू मिरर' में देखते हुए, सावधानीपूर्वक गाड़ी धीरे से लेते है । बस यही बात जब जीवन में लागू पड़ती है और हम इस नियम को भूलकर हम विपरीत दिशा में ‘फुल-स्पीड' से गाड़ी दौड़ाते रहते है और सोचते है कि, कोई भी दुर्घटना ना हो । क्या ऐसा हमेशा सम्भव है !!! ये ही इस लेख का आशय और अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने के लिए विचारणीय प्रश्न है ।
कितने अच्छे है आप... !!!
कवर पर लिखते हो ‘अंगत' और उसे खुला रखते हो,
खुद के दरवाजे रखते हो बंद और पड़ौसी के घर ताकते हो ।
कितने अच्छे है आप... !
उधारी चूकाते नहीं और लोगो से ब्याज माँगते हो,
लेते हो गुणाकार में और देते समय भाग जाते हो ।
कितने अच्छे है आप... !
डायटिंग में हूँ कहकर, बहुत ज्यादा ही खाते जाते हो,
फिर शरीर का वज़न कम करने के लिए पैसे गँवाते हो ।
कितने अच्छे है आप... !
मेहनत किए बिना ही आप, कितना अधिक थक जाते हो,
वर्तमान की तो खबर नहीं, किन्तु भविष्य की चिंता में डूबे जाते हो ।
कितने अच्छे है आप... !
अगणित करके पाप तुम, उन्हें पूजा-पाठ से ढकते हो,
गलत दिशा में जीवन की गाड़ी बड़ी तेजी से चलाते हो ।
कितने अच्छे है आप... !
कुछ भी होता है खराब तो, दूसरों के नाम मढ़ देते हो,
जिसने धनुष विद्या सिखाई, उसी पर निशान ताकते हो ।
कितने अच्छे है आप... !
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( संदर्भ : कितने अच्छे है आप..., NGS समाचार )