कई बार किसी को अपशब्द कहना, इसे
अभिव्यक्ति की आजादी मान लिया जाए तो, आम जीवन में चर्चा का उग्र माहौल पैदा हो जाता
है और अनेक बार मामला गाली-गलौच तक पहुँच जाता है । दुर्भाग्य से पिछले कुछ वर्षों में संसद और राज्यों
की विधान सभाओं में चर्चा के स्थान पर, आपेक्ष वादी परम्परा, शाब्दिक तकरार के साथ-साथ
अनेक बार गाली-गलौच के मामलों में बढ़ोतरी हुई है तथा यह माहौल यत्र तत्र सर्वत्र रूप में अत्यधिक बढ़ रहा है । एक समय था जब इस प्रकार के आक्रामक निवेदन और अपशब्दों के
प्रयोग के बाद आदमी को क्षोभ महसूस होता
था । किन्तु उसने मुझे गाली दिया है और मुझे भी गाली देने की छूट है, इस प्रकार की नीति
को मानते एवं समर्थन करते हुए, कई
लोग गाली-गलौच देने
के माहौल को भी समर्थन देने लगे है ।
जम्मू-कश्मीर में पथराव करने वालों
‘ पत्थरबाज ों' से बचाव और उदाहरण के लिए एक कश्मीरी युवक
को सेना द्वारा ‘मानव-ढाल' बनाकर जीप के सामने बांधकर घुमाया गया । इस घटना के समर्थन और विरोध
में अनेक लोगों ने अपने-अपने मंतव्य प्रस्तुत किए गए । इस सम्बंध दिए गए अभिप्राय ‘अभिव्यक्ति
की आजादी’ है, यहाँ तक तो सब कुछ योग्य था किन्तु उसके बाद एक अभिनेता एवं सांसद माननीय परेश रावल जी द्वारा “सेना को लेख िका अरुंधती रॉय को मानव-ढाल के रूप में बांधा जाए” इस आशय
की पोस्ट ट्विटर पर रखी गई । ध्यान
रहे, अरुंधती रॉय अक्सर भारत सरकार के विरुद्ध, सेना के विरुद्ध, सत्ताधीशों के विरुद्ध
बे-लगाम लिखने तथा बोलने के लिए काफी
मशहूर है, इसलिए उसके विरुद्ध ट्वीट किया जाना उचित या अनुचित
मामले पर अत्यधिक चर्चा का विषय बन
गया और लगभग सभी सोशियल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर इस बाबत बहस हुई । इस विवाद के
चलते हुए एक वामपंथी महिला कार्यकर्ता द्वारा विभिन्न राज्यों में चल रहे सेक्स-स्केण्डल
में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के शामिल होने बाबत ट्विटर पर पोस्ट किया गया । इस
महिला के सम्बंध में फिल्मी दुनियाँ के मशहूर गायक अभिजीत द्वारा सार्वजनिक रूप से
न बोली जा सकने वाली अभद्र एवं अति गम्भीर टिप्पणी किया गया । यह टिप्पणी आपत्तिजनक
होने के कारण, इसका प्रचंड विरोध हुआ और अंततः उसका ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया
।
आश्चर्य की बात यह है कि, अभिजीत के समर्थन में सोनू निगम द्वारा भरपूर भड़ास निकालते
हुए ट्विटर अकाउंट ही छोड़ दिया गया । अब मामला यह है कि, इस प्रकार की विचारधारा पनपने
दिया जाए या नहीं ??? हो सकता है कि, कोई अभिजीत की विचारधारा को भी समर्थन प्रदान
करे, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है । किन्तु अभिव्यक्ति की आजादी के आधार पर
मनमाने अर्थों के लिए, यह सबकुछ स्वीकार किया जा रहा है, यह एक बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण कड़वी सच्चाई
है ।