20 जुलाई से ठीक 50 साल पहले नील आर्मस्ट्रांग, माइकल कालिंस और एडविन एल्ड्रिन, एक रोमांचक यात्रा पर गए । उस वक्त किसी ने सोचा भी नहीं था कि जिस काम के लिए वे दोनों चाँद पर जा रहे थे, उसमें सफल होंगे भी या नहीं । लेकिन आंखों में ढेरों सपने लिए और अरबों लोगों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ढोते हुए नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एल्ड्रिन ने 16 जुलाई को अपना सफर शुरू किया । नासा के अंतरिक्ष यान अपोलो 11 में खूब सारा ईंधन भरा गया और उसने अपनी उड़ान भरी और आज ही के दिन, ठीक 50 वर्ष पहले 20 जुलाई 1969 को चांद की सतह पर मानव ने पहला कदम रखा था । 8 बज कर 26 मिनट (कोआर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम) पर अपना बांया कदम चांद पर रखते हुए प्रथम चंद्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग ने कहा था, “यद्यपि मानव का यह छोटा-सा कदम है, लेकिन मानवता के लिए यह बहुत ऊंची छलांग है ।” सदियों से शीतल चांदनी बिखेरते, मानव मन को मोहते और उसकी कल्पनाओं में नए रंग भरते चांद से मनुष्य की वह पहली सीधी मुलाकात थी । आपको शायद यकीन न हो, लेकिन इंसान को चांद की सतह तक पहुंचाने में करीब 4 लाख लोगों की मेहनत लगी थी, जिनमें कंप्यूटर प्रोग्रामर से लेकर इंजिनियर और वे कारीगर भी शामिल थे जिन्होंने एयर टाइट स्पेस सूट सिला था । नासा ने पृथ्वी पर तीन एंटेना लगाए । एक स्पेन, एक ऑस्ट्रेलिया और एक कैलिफॉर्निया में ताकि धरती पर मौजूद टीम उन्हे देख सके और उन्हें गाइड कर सके ।
आजकल गूगल ने भी “डूडल” बनाकर मानव की इस महान यात्रा को जीवंत कर दिया है और डूडल में एक अन्तरिक्ष यात्री को चाँद की सतह पर उतरते हुए दिखाया गया है और एक 'प्ले' का बटन भी दिया है, जिस पर ‘क्लिक’ करते ही उस यात्रा के बारे में विवरण और जानकारी मिलना शुरू हो जाती है । इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने चांद पर इंसान का पहला कदम पड़ने की 50वीं वर्षगांठ का जश्न मनाते हुए शुक्रवार को एक एनिमेटेड वीडियो डूडल लॉन्च किया। अमेरिका के नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के अपोलो 11 मिशन तहत 50 वर्ष पहले 20 जुलाई 1969 को इंसान ने पहली बार चांद पर कदम रखा था । नासा के अपोलो 11 मिशन ने इतिहास में पहली बार इंसान को चांद तक सफलतापूर्वक पहुंचाकर और उन्हें वापस लाकर यह साबित कर दिया था कि, इस दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है । गूगल ने अपने वीडियो के माध्यम से इस एतिहासिक उपलब्धि का जश्न मनाते हुए हमें चंद्रमा तक इंसान के पहुंचने की यात्रा वृतांत सुनाया हैं । पूर्व अंतरिक्ष यात्री एवं अपोलो 11 मिशन के कमांड मॉड्यूल पॉयलट माइकल कोलिन्स ने अपनी आवाज में इस यात्रा का वृतांत सुनाने के साथ-साथ इस दौरान के अपने अनुभव भी साझा किये है । आइए, इस रोमांचक यात्रा के सम्बंध में थोड़ी अधिक जानकारी प्राप्त करते है ।
16 जुलाई 1969 को केप केनेडी से अमेरिकी अंतरिक्ष यान अपोलो-11 चाँद की ओर रवाना हुआ । उसमें तीन अंतरिक्ष यात्री थे- नील आर्मस्ट्रांग, माइकल कालिंस और एडविन एल्ड्रिन । चंद्रमा के निकट पहुँच कर परिक्रमा यान से चंद्रयान ‘ईगल’ अलग हो गया और वह नील आर्मस्ट्रांग तथा एडविन एल्ड्रिन को लेकर रात के 1 बज कर 47 मिनट पर चंद्रमा के शांति सागर मैदान में उतरा । परिक्रमा यान ‘कोलंबिया’ चाँद की सतह से 96 किलोमीटर ऊपर परिक्रमा करता रहा । माइकल कालिंस उस यान की बागडोर सम्भालते रहे ।
प्रथम चंद्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग ने सतह पर अपना पहला कदम रखने के बाद कवियों की कल्पनाओं के उस चाँद की सतह को निहारा और कहा, “यहां आसपास बड़े-बड़े पत्थर दिखाई देते हैं । चंद्रमा की सतह बहुत सख्त है और यहां की मिट्टी रेगिस्तान जैसी है ।” एडविन एल्ड्रिन ने भाव विभोर होकर कहा, “दृश्य बहुत सुंदर है । जहां हम उतरे हैं उससे कुछ दूरी पर हमें बैंगनी रंग की चट्टान दिखाई दी । सूर्य के प्रकाश में चाँद की मिट्टी और चट्टानें चमक रही हैं । यह एक शानदार मगर बिल्कुल खामोश जगह है ।” दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए सतह पर उपकरण रखे । चाँद की सतह से मिट्टी और चट्टानों के नमूने लिए । जिस सीढ़ी से चाँद पर उतरे, उसके पाए पर स्मृति चिह्न के रूप में एक धातु-फलक लगाया जिस पर तीनों अंतरिक्ष यात्रियों और अमेरिका के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर थे । साथ ही एक संदेश के शब्द भी उस पर खुदे हुए थे जिन्हें नील आर्मस्ट्रांग ने जोर से पढ़ा, “यहां पृथ्वी ग्रह से आकर मानव ने चाँद पर पहली बार अपने कदम रखे । जुलाई 1969 । हम यहां समस्त मानव जाति के लिए शांति की कामना लेकर आए ।” इस तरह मानव ने चाँद पर विजय पाई । 4 अक्टूबर 1957 में जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अंतरिक्ष में पहला स्पूतनिक छोड़ा था, तब भला कौन जानता था कि अगले चंद वर्षों में ही मानव के चरण चाँद तक पहुँच जाएंगे !
चाँद से पृथ्वी की ओर लौटते समय अपोलो-11 यान से नील आर्मस्ट्रांग ने कहा, “शुभ संध्या । मैं अपोलो-11 का कंमाडर बोल रहा हूँ । करीब सौ वर्ष पहले जूल्स वर्न ने चाँद की यात्रा पर एक पुस्तक लिखी थी । उसकी पुस्तक का अंतरिक्ष यान ‘कोलंबियाड’ फ्लोरिडा से अंतरिक्ष में छोड़ा गया और चाँद की यात्रा पूरी करके प्रशांत महासागर में उतरा । आज के हमारे इस ‘कोलंबिया’ यान का भी कल प्रशांत महासागर में ही पृथ्वी से मिलन होगा ।” जूल्स वर्न ने अपने उपन्यास ‘फ्राम अर्थ टु द मून’ में सन् 1865 में चाँद की सैर की कल्पना की थी । प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक एच. जी. वेल्स ने भी अपना उपन्यास ‘फर्स्ट मिन इन द मून’ चाँद की यात्रा पर लिखा था । चाँद पर प्रथम भारतीय विज्ञान कथा ‘चंद्रलोक की यात्रा’ केशव प्रसाद सिंह ने 1900 में लिखी जो सरस्वती में छपी । दूरबीन से पहली बार चाँद को गैलीलियो ने 1610 में देखा था । तब उसने कहा था चाँद की सतह उबड़-खाबड़ है । उसमें गड्ढे और उभार हैं ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी पर पहाड़ और घाटियां हैं । खगोल वैज्ञानिक केप्लर का कहना था कि चाँद पर जीवन है लेकिन वहां जीवन के रूप पृथ्वी से बिल्कुल भिन्न हैं । सन् 1833 में अंग्रेज खगोल वैज्ञानिक जान हरशेल ने चाँद की सतह का सनसनीखेज वर्णन प्रकाशित किया । उसने कहा कि चाँद में हरी-भरी घाटियां हैं, नीली चट्टानें हैं और हैं सफेद रेतीले किनारों से घिरी नीली झीलें और कलकल बहती नदियां ! लेकिन वे कपोल-कल्पनाएं साबित हुई । आज अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष यानों के स्वचालित वैज्ञानिक उपकरणों ने चाँद के तमाम रहस्यों का अनावरण कर दिया है । अपोलो अंतरिक्ष यानों की श्रृंखला में ही 1969 से 1972 के बीच 12 अंतरिक्ष यात्री चाँद पर उतरे है । वे कुल मिला कर 166 घंटे चाँद की सतह पर रहे और कुल 385 किलोग्राम चाँद की मिट्टी और चट्टानों के टुकड़े पृथ्वी पर लाए है । उधर, तत्कालीन सोवियत संघ ने ‘लूना’ चंद्रयानों से चाँद का अध्ययन किया । सन् 1959 में ‘लूना-1’ चंद्रयान छोड़ा गया । फिर दूसरा और फिर तीसरा । तीसरे चंद्रयान ‘लूना-3’ ने चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए उसके दूसरी ओर के अंधेरे भाग के फोटो खींचे । 3 फरवरी 1966 को ‘लूना-9’ अंतरिक्ष यान छोड़ा गया । वह चाँद की सतह पर धीरे से उतरा । उसमें एक स्वचालित चंद्रमा स्टेशन था । उसके दूरदर्शी कैमरे ने चाँद की सतह के फोटो खींचे । तब पहली बार दुनिया भर में लोगों ने चाँद के चेहरे को इतने करीब से देखा । 12 सितंबर 1970 को तत्कालीन सोवियत संघ ने ‘लूना-16’ अंतरिक्ष यान भेजा, जिसके स्वचालित उपकरणों ने चाँद पर पहुँच कर मिट्टी खोदी, उसे बक्सों में भरा और फिर यान पृथ्वी पर लौट आया । ‘लूना-17’ ने चंद्रमा की सतह पर ‘लूनाखोद-1’ नामक चाँदगाड़ी उतारी । वह इधर-उधर और आगे-पीछे मुड़ सकती थी तथा सौर ऊर्जा से चलती थी । उसमें अनेक उपकरण रखे गए थे, जिनसे चाँद का अध्ययन किया गया । ‘लूना-21’ चंद्रयान ने ‘लूनाखोद-2’ नामक चाँद गाड़ी चाँद पर पहुंचाई जिसने चाँद के सूखे सागरों और पर्वतों का अध्ययन किया ।
हमारे देश ने भी अपने पहले प्रयास में ही चंद्रमा के पास तक अपना चंद्रयान-1 भेजने में सफलता हासिल की है । चंद्रयान-1 को 22 अक्टूबर 2008 को छोड़ा गया था । अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक चंद्रयान-2 भेजने की तैयारियों में जुटे हुए हैं । अब पड़ोसी चाँद, हमारे लिए अनजाना नहीं रह गया है । चाँद पृथ्वी से औसतन 3,84,400 किलोमीटर दूर है लेकिन पृथ्वी के चारों ओर उसका परिक्रमा पथ बिल्कुल गोलाकार नहीं है इसलिए वह कभी 4,06,000 किलोमीटर दूर होता है तो कभी केवल 3,56,000 किलोमीटर । वह हमारी पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है । कई वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सौर सामग्री से हमारी पृथ्वी और चाँद का जन्म एक साथ ही हुआ लेकिन कुछ अन्य वैज्ञानिकों का विचार है कि वह पृथ्वी से टूट कर बना । वैज्ञानिक कहते हैं, महाविस्फोट के बाद जब सौरमंडल के तमाम पिंड धीरे-धीरे ठंडे हुए तो ग्रहों के साथ ही हमारा चाँद भी ठंडा होने लगा । छोटा होने के कारण वह जल्दी ठंडा हो गया और उसकी सतह कठोर चट्टानों से भर गई । युग-युगों तक उल्काओं के टकराने से सतह पर छोटे-छोटे से लेकर बहुत विशाल विवर तक बन गए जिनका व्यास 1000 कि.मी. तक है । पहले तक लोग चाँद के विशाल चौरस मैदानों को सागर समझते थे इसलिए उनके काल्पनिक नाम सागरों पर रख दिए गए जैसे प्रशांत सागर, तूफान सागर आदि । चाँद पर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ भी हैं । कुछ पहाड़ तो 6000 मीटर तक ऊंचे हैं । चाँद के दक्षिणी ध्रुव के निकट लीबनिज पहाड़ों की ऊंचाई ऐवरेस्ट से भी अधिक यानी 10,660 मीटर तक आंकी गई है । और हां, चाँद की अपनी रोशनी नहीं है । वह सूरज की रोशनी से चमकता है । चाँद से पृथ्वी की ओर परावर्तित होने वाली सूरज की रोशनी ही शीतल ‘चाँदनी’ है । चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11.47 सेकेंड (लगभग 27.3 दिन) में एक चक्कर लगाता है । साथ ही वह अपनी धुरी पर 27.32 दिन में एक बार घूमता है । पृथ्वी के चारों ओर और अपनी धुरी पर घूमने का लगभग एक ही समय होने के कारण हमें उसका केवल आधा भाग ही दिखाई देता है । दूसरा भाग सदा अंधेरे में रहता है और हमें दिखाई नहीं देता । परिक्रमा पथ पर चक्कर लगाते हुए चाँद जिस कोण से हमें दिखाई देता है उसी के कारण उसकी कलाएं होती हैं । वह कभी दूज का चाँद हो जाता है तो कभी पूर्णिमा होती है और कभी अमावस्या । चंद्रमा पर किसी भी वस्तु का वजन पृथ्वी से छः गुना कम हो जाता है क्योंकि चंद्रमा का गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में कम है । वहां दिन में भीषण गर्मी पड़ती है और तापमान 130 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है । रात में चट्टानें ठंडी हो जाती हैं तो तापमान शून्य से 180 डिग्री सेल्सियस तक नीचे गिर जाता है । चाँद का वायुमंडल नहीं है । उसका गुरूत्वाकर्षण इतना कम है कि गैसें उसकी पकड़ में नहीं रह सकतीं । इसलिए वहां सूर्योदय और सूर्यास्त का वह नजारा नहीं दिखाई देता जो हमें अपनी पृथ्वी पर दिखाई देता है । यहां आसमान पर लाली छा जाती है और सूरज का बड़ा-सा लाल गोला क्षितिज पर उभरता है । चाँद पर तो बस भक से सूरज निकल आता है, मानो स्विच आन कर दिया गया हो । वायुमंडल न होने से वहां ऋतुएं भी नहीं होतीं । वहां न बादल उमड़ते हैं, न बिजली कड़कती है, न रिमझिम वर्षा होती है । हाँ, चंद्रमा के गुरूत्वाकर्षण से पृथ्वी पर समुद्रों में ज्वार जरूर आते हैं । वहाँ एकदम सन्नाटा है । कोई आवाज नहीं । आवाज के आने-जाने के लिए भी तो आखिर हवा होनी चाहिए न ! उस सन्नाटे और बिना मौसम के रूखे चाँद से तो हमारी यह हरी-भरी पृथ्वी बेहद सुंदर है । है ना ? मानते को नहीं ... । लेकिन, फिर चाँद के लिए इतनी चाहत क्यों ? आखिर रूखे-सूखे चाँद में रक्खा क्या है ? कुछ लोगों के विचार में रूखी-सूखी ही सही मगर जमीन तो है जहाँ इंसान अपनी बस्तियां बना कर बस सकता है । बस, इससे बात समझ में आ जाती है । मतलब कल चाँद की जमीन की भी मांग बढ़ेगी । प्रख्यात वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का अनुमान है कि अगले 30 वर्षों के भीतर मानव चाँद पर बसने लगेगा । जमीन के अलावा चाँद पर खनिजों का खजाना भी है । कल उसके लिए भी कई देश दावेदारी पेश करेंगे । अमेरिका तो अपनी विकसित प्रौद्योगिकी के बल पर चाँद को दूसरे ग्रहों तक यान भेजने का अड्डा बनाने के मंसूबे देख रहा है । उसने आगामी चंद्र अभियान के लिए अरबों डालर के व्यय की योजना बनाई है । चाँद के अड्डे से उसके लिए मंगल तक पहुँचना और आसान हो जाएगा । हमारे देश के अलावा जल्दी ही कुछ अन्य देश भी चाँद तक पहुँचने की दौड़ में शामिल हो जाएंगे । कौन जाने, कल हमारी आने वाली पीढ़ियां चाँद पर बनी बस्तियों के भीतर हरी-भरी वादियों और साफ-सुथरी हवा में रहने लगें ।
चलिए ... सर्वे भवन्तु सुखिन: की कमाना के साथ, आप सभी को, इंसान की इस महान उपलब्धि के 50 वर्ष पूरे होने पर हार्दिक शुभ कामनाएँ एवं बधाईयाँ .... ।
(संदर्भ एवं साभार उद्धृत : http://devenmewari.in/?p=637 & https://www.livehindustan.com/news/guestcolumn/article1-story-487636.html)
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