जम्मू-कश्मीर
के कठुआ और उत्तर-प्रदेश के उन्नाव की वहसी घटनाएँ जब से प्रिंट/मीडिया और समाचार
पत्रों में नित नए रूप में आ रही है तथा अनेक खुलासे हो रहे है, तब
से अधिकतर बुरे विचारों ने ही मन को घेर लिया है और सोचने के लिए विवश है कि, अपने साथ यदि ऐसा हो जाए तो क्या किया जाए... ???
वर्ष 2009 में मुम्बई की एक घटना*
थी जिसमें पड़ोसियों द्वारा शिकायत किए जाने के बाद एक रहस्यमय घर में पुलिस द्वारा
छापा मारा तो वह बुरी तरह चौंक उठी ! कारण…फ्रांसिस गोम्स नाम के 60
वर्षीय व्यक्ति द्वारा अपनी दो सुंदर लड़कियों और पत्नी को 7वर्षों से जंजीर (चैन)
से बांधकर रखा हुआ था । प्रथमदृष्टा यह एक मनोविक्षिप्त व्यक्ति मामला लगता था ।
बंधुआ मजदूर की तरह रखी गई पत्नी और लड़कियाँ शारीरिक रूप से बहुत ही कमजोर हो गई
थी और उनकी आंखे गड्ढों में धँसी हुई थी । वह व्यक्ति भी सर्कस के खेल “आग की
रिंग” मे से पास होते समय झुलसे हुए घोड़े के समान बड़ा ही दर्दनाक लगता था । पुलिस
द्वारा पड़ोसियों से पूछताछ करने के बाद मामले को ‘मनोवै ज्ञान िक’ के पास रेफर किया गया तो यह सत्य सामने आया कि उसने अपनी लड़कियों को
प्रोटेक्शन में रखने के लिए यह रास्ता अपनाया था । भूतकाल में घटित किसी घटना के
कारण उसके दिलो-दिमांग पर इतना गहरा असर हुआ कि, उसने उसका
मुक़ाबला करने के स्थान पर अपने परिजनों को घर में ही बंदी बनाकर रखना ज्यादा आसान
और सुरक्षित समझा । गोम्स के जीवन में घटित किसी एक हादसे से डरने के कारण, उसे हमेशा यह डर सताता रहता था कि, यदि उसकी पत्नी
और लड़कियाँ घर से बाहर निकलेगी तो उनके साथ बलात्कार हो जाएगा !!
मनो विज्ञान
से भागते-फिरते हिंदुस्तानियों द्वारा उस समय इस घटना में कोई दिलचस्पी नहीं रखी
थी और ‘कोई ऐसा करता होगा’ कहकर घटना को भुला दिया । सामान्य मनुष्य की तरह, मुझे
भी उस समय कुछ विशेष गम्भीर नहीं लगा किन्तु उन्नाव और कठुआ की घटना के बाद, कमनसीब 8वर्षीय लड़की के पिता से जब एक पत्रकार द्वारा पूछा गया कि “इस
जंगल में रहते हुए, डर नहीं लगता है ?” तब से लड़की के पिता द्वारा दिए गए जवाब ने मुझे
“साइको” डेड गोम्स की याद दिला दिया । ...घुम्मकड़ जाति के और प्रताड़ित पिता द्वारा
बहुत ही सादा जवाब दिया गया कि, “पहले जानवरों से डर लगता
था किन्तु अब तो मनुष्यों से भी डर लगने लगा है ।“
कठुआ में एक 65वर्षीय पुजारी
द्वारा, मुसलमानों को सबक सिखाने के उद्देश्यार्थ 8वर्षीय अबोध कन्या को दस दिन
तक बेहोशी दवा देकर और छिपाकर रखा गया । इस दौरान उस बाला पर, मनुष्य जिसके बारे में कभी विचार नहीं कर सकता, ऐसे
जुल्म किए गए । उसका ‘शव’ नहीं पहचाना
जा सके, इसके लिए उसके मुँह को छत-विक्षत किया गया और बड़े
ताज्जुब कि बात है कि, इस बर्बर कृत्य और गम्भीर अपराध में,
पुलिसकर्मियों को भी शामिल किया गया था और साथ ही पिछले चार वर्षों
से इस देश में बहुमत के साथ शासन करने वाले कुर्सीदास भी इस जघन्य अपराध में शामिल
हुए हैं ।
हिंदुत्व,
श्रीराम और भारत माता की नारेबाजी के साथ मानसिक गंदगी से भरी से एक कौम द्वारा
लड़की एक मुस्लिम थी और वह प्रताड़ना के योग्य हैं; इसलिए
मामले को चार महीने तक दबाने में सक्षम रही है । पूरी घटना को भारतीय जनता पार्टी
के गोबरिया नेताओं द्वारा पूर्णतः कौमी रूप और सियासत का मुद्दा बना दिया गया, जिसके कारण पुलिस भी स्वतंत्र रूप से काम करने की स्थिति में न रही । इतना
ही नहीं बल्कि जिन्होंने न्याय के रूप में देवी माना और न्याय के दरबार में काले
कोट वाले करतूतबाज वकीलों द्वारा भी दिल्ली और नागपुर में बैठे केसरियाधारी
आलाकमानों के निर्देशों के तहत केस लड़ने से इनकार कर दिया और पीड़ित की मदद करने
वालों को धमकियों की भाषा समझाना शुरू कर दिया । ... अब जबकि मामला काफी आगे बढ़
चुका है तब, सम्भवतः उस दिवंगत बाला को न्याय मिले ...।
...मंदिर
परिसर में घटित इस घटना ने तो मेरे सामने, भगवान के अस्तित्त्व पर ही
प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है !!!
क्या
ईश्वर /अल्लाह/भगवान वास्तव में है ?
यदि
हाँ, तो इस घटना को उस परमशक्तिमान ईश्वर/अल्लाह ने क्यों रोका नहीं ?
उसने
अपने किसी देवदूत/जानवर/साँप-बिच्छू या अन्य किसी रूप को उस अबोध बाला के ऊपर हो
रहे अत्याचार को रोकने के लिए क्यों नहीं भेजा ?
इतने
सारे अत्याचारियों में से किसी के भी मन में दयाभाव क्यों नहीं आया ? ....
....
यदि किसी मानवतावादी अभिगम व्यक्ति के पास कोई सटीक जवाब हो तो अवश्य ही शेयर करें
।
उन्नाव कि घटना में पीड़ित लड़की का
दोष यह था कि, उसके पिता एक दबंग भारतीय जनता पार्टी के धारासभ्य कुलदीप सेंगर के दोस्त
थे । यह याद रखना चाहिए कि यह घटना जून 2017 में हुई थी और पूरा मामला दस महीनों के
बाद उजागर हुआ है । बलात्कार और धमकी से पीड़ित लड़की द्वारा सबसे पहले लोकल पुलिस
में सूचना दी गई कि उसके साथ बलात्कार हुआ है और जान से मारने की धमकियाँ दी जा
रही है, किन्तु उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं करते हुए दुत्कार
दिया था । “पार्टी विथ ए डिफरेंस” कहकर, अक्सर कांग्रेस कल्चर
को गाली देते हुए, बीजेपी शासन के तहत नीचे से ऊपर तक किसी भी
आलाकमान द्वारा उस बेसहारा की पीड़ा और दर्द को नहीं सुना । मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने भी उसकी पीड़ा को नहीं समझा और बिना न्याय दिए ही निकाल दिया ।
हिंदुओं के हितों की रक्षा का शंखनाद करने वाली भाजपा, आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल,
हिंदू युवा वाहिनी और उनके आलाकमानों के इशारों पर समय-समय पर मुसलमानों को सबक सिखाने
के लिए तलवार उठाने और जान न्यौछावर करने वाले हिन्दूओं के बलबूते पर सत्ता प्राप्त
होने के बाद, किसी भी प्रखर हिन्दू हितेषी ने, एक हिन्दू लड़की का साथ नहीं दिया । उसके पिता को इतना पीटा गया कि, चोटों के कारण उसकी मृत्यु हो गई अथवा मार दिया गया । ऐसी घटनाओं के लिए आवाज
उठाने वालों पर से, कांग्रेस-वामपंथियों द्वारा अथवा पाकिस्तानी
साजिश का रूप देकर घटनाओं पर ध्यान हटाया गया । भारतीय जनता और युवाओं ने हमारे देश
में अमन-चैन, भाईचारा, बेरोजगारी उन्मूलन, महगाई पर अंकुश, सर्वांगी विकास, काश्मीर समस्या, पड़ौसी देशों के साथ तनाव को कम करने
जैसी आशाओं के साथ जंगी बहुमत से भारतीय जनता पार्टी को सत्तारूढ़ किया है किन्तु समस्याएँ
जस की तस है ।
कथुआ
की घटना में,
पीड़ित की बेटी मुस्लिम समुदाय थी । उन्नाव में पीडि़त की बेटी,
हिंदू... (हिंदू,मतलम कौनसा हिन्दू... यह सवाल
पांच हजार वर्ष पुरानी भव्य संस्कृति, संस्कार और और परंपराओं
में विकसित हुए लोगों वाले, हिन्दू धर्म के रूप में उठना स्वाभाविक
हैं) । जब कठुआ की बेटी को परमशक्तिमान ईश्वर/अल्लाह भी नहीं बचा सकता है, ऐसे माहौल में, मैं इस बात से परेशान हूं कि, उन्नाव की बेटी की जिंदगी, कैसरिया सियासती दरिंदों
से कैसे बच पाएगी... ?
मुझे ऐसा लगता है कि, कहीं
भविष्य में हम सभी को अपनी बहन-बेटियों को, उसी तरह से बचाना
नहीं पड़ेगा जैसा कि मुम्बई के एक पिता ने अपनी बेटियों और पत्नी को बचानेके लिए, अपनाया था ?
(*संदर्भ : TOI 30Sept.2009 & http://epaper.navgujaratsamay.com//imageview_7269_27555_4_71_15-04-2018_12_i_1_sf.html)