जाति (caste) और उसमें भी क्रमिक
ऊँच-नीच के वर्ण !!! एक ईश्वर की संतान होने के बावजूद, भारतीय समाज में कुछ विशेष
जाति के लोग तो विशेष काम ही कर सकते है अथवा कुछ विशेष कामों पर कुछ विशेष जाति
का ही हक है अथवा कुछ काम विशेष विशेष जाति के द्वारा ही किए जाने चाहिए और दूसरे
नहीं कर सकते है.... इस प्रकार की बहुत सारी मान्यताएँ, रूढ़ियाँ, बंधन एवं परम्पराओं
का प्रचलन हमारे देश में सदियों से चला आ रहा है । आजादी के 70 साल गुजरने के बाद
भी भारतीय समाज जात-पात के चंगुल से नहीं निकल पाया है; हालांकि आजादी के बाद अनेक
बुद्धिजीवियों की धारणा थी और विश्वास था कि, शिक्षा ही इस प्रकार के सामाजिक दूषण
और मान्यताओं को दूर करने में मददगार साबित होगी तथा उन्हे कालांतर में समाप्त
किया जा सकता है । इस अवधारणा को बुरी तरह से गलत साबित करने वाली और जातिवाद की
कट्टरता को सिद्ध करने वाली एक घटना, हाल ही देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित
हुई है ; जिसमें एक उच्च शिक्षित और महिला वै ज्ञान िक द्वारा अपनी खाना बनाने वाली
(महिला रसोईया ) के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट (FIR) दर्ज करवाई है ।
समाचार पत्रों में छपी घटना के अनुसार एक
बड़ा ही सनसनीखेज मामला, जो भारतीय समाज को नए सिरे से विचार करने और मनुष्य की
विवशता को दर्शाने वाला किस्सा सामने आया है । पुणे (महाराष्ट्र) स्थित मेघा खोले
नाम की एक उच्च शिक्षित एवं वैज्ञानिक , भारतीय मौसम विभाग (IMD) में
डिप्टी-डायरेक्टर जनरल (वैदर-फ़ोरकास्टिंग) के एक उच्च पद पर कार्यरत है । पुलिस
में दर्ज की गई शिकायत में वैज्ञानिक मेघा खोले द्वारा कहा गया है कि, उसको घर की
रसोई बनाने के लिए एक ब्राह्मण ‘कुक' की आवश्यकता थी किन्तु उसकी रसोई बनाने वाली
महिला द्वारा काम मांगते समय, झूठ बोला गया था कि वह ब्राह्मण है और इस प्रकार से
वह काम खोने के डर से काम करती रही । लगभग एक वर्ष बाद गणेशोत्सव के दौरान पुजारी
द्वारा बताया गया कि, उसकी रसोई बनाने वाली महिला ‘निर्मला’ ब्राह्मण नहीं है और
उसका असली नाम ‘निर्मला यादव’ है । इसकी जानकारी होने पर उस उच्च शिक्षित और बड़ी
महिला वैज्ञानिक द्वारा, रसोई बनाने वाली ने अपनी जाति को छुपाया, जिसके कारण उसके
मन की भावनाओं को ठेस पहुंची है, के कारण पुलिस में FIR दर्ज कारवाई गई है । ध्यान
रहे कि, महाराष्ट्र में विभिन्न माँगों की पूर्ति के लिए मराठा समाज एकत्रित होकर,
धरना-प्रदर्शन तथा आंदोलन करता आ रहा है । ऐसे में जातिवाद को उकसाने वाली, इस
प्रकार की घटना के बाद मराठा समाज द्वारा महिला वैज्ञानिक के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया गया है ।
भले ही इसे एक व्यक्ति विशेष द्वारा घटना
को अंजाम दिया गया हो, किन्तु कुछ चंद लोग अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने के कारण
जातिवाद को बढ़ावा तो दे ही रहे है । आजादी के 70 वर्षों बाद भी उच्च पदासीन और अनेक
शिक्षित लोगों की कुंठा एवं मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता है । एक उच्च शिक्षित
एवं वैज्ञानिक द्वारा पुलिस में FIR दर्ज करवाना, यह इस बात का संकेत है कि, अभी
भी हमारे समाज में से जातिवाद के बीज पूरी तरह समाप्त नहीं हुए है; यह इस किस्से
से स्पष्ट होता है । जहाँ एक ओर सरकार द्वारा देश में भाईचारा और समता
बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किए जा रहे है और व्यक्ति की योग्यता को अधिक महत्त्व
देने हेतु प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा हो, वहाँ पर इस प्रकार की घटनाएँ घटित होना
मानवता और समता के मुँह पर ‘तमाचा’ समान है । जहाँ देश में कथित सवर्ण समाज द्वारा
एक ओर आरक्षण की समीक्षा के सवाल उठाए जा रहे है, वहीं पर ऐसी घटनाएँ कुछ ओर ही वास्तविकता
का संदेश प्रदर्शित करती है ।
यद्यपि 19 सदी के दौरान देश भर में
सामाजिक सुधारों के लिए जो हवा चली थी, जिसके परिणामस्वरूप अनेक रूढ़ियाँ धराशायी भी
हुई परंतु अभी भी जातिवाद के नाम पर, कर्म के बटवारे की लकीर के निशान मिटाने के
लिए, एक बार पुनः विचार करने के साथ-साथ भारतीय समाज को मानवातावादी और वैज्ञानिक
दृष्टिकोण अपनाते हुए बहुत ही मेहनत करने की आवश्यकता है ।
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मै अपनी बात कहने में अक्सर नाकाम हो जाता हूँ;
मैं एहसास लिखता हूँ और लोग अल्फ़ाज़ समझते है ।
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