डॉ. रेड्डी को लोग एक शिक्षक, समाज सुधारक, सर्जन और व्यवस्थापक के तौर पर जानते और याद करते हैं । आज अर्थात 30 जुलाई को इनकी 133वीं जन्म-जयंती है । इन्होंने महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने पर काम किया था । साथ ही लिंग-भेद के लिए भी लड़ाई लड़ी । डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी पर आज गूगल ने ‘डूडल’ बनाया है । इस ‘डूडल’ में डॉ. रेड्डी के हाथ में एक किताब है और दूसरा हाथ सीधा किया हुआ है । इनके पीछे महिलाएं और लड़कियाँ भी दिखाई गई हैं ।
मुथुलक्ष्मी रेड्डी उन महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने समाज में फैली बुराइयों से लड़कर आशा की एक नई किरण पैदा करने में अहम भूमिका निभाई है । मुथुलक्ष्मी रेड्डी भारत की पहली महिला विधायक थीं और आज उनकी 133वीं जन्म-जयंति है और इसी मौके पर गूगल ने ‘डूडल’ बनाकर उन्हें याद किया है । जिस समय भारत पर अंग्रेज़ों का राज था उस समय वह सरकारी अस्पताल में सर्जन के तौर पर काम करने वाली पहली महिला बनीं थी । देश की पहली महिला विधायक होने के साथ ही वह देश की पहली महिला सर्जन भी रही है । मुथुलक्ष्मी रेड्डी सामाजिक असमानता, लिंग आधारित असमानता और आम जनता को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की दिशा में अपने प्रयासों के लिए भी जानी जाती हैं । उन्होंने लड़कियों के जीवन को सुधारने के लिए काफी काम किया । मुथु जीवन भर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़तीं रहीं और देश की आज़ादी की लड़ाई में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर सहयोग दिया । आज उनकी जन्म-जयंती के मौके पर, हम आपको उनके जीवन से जुड़ी हुई खास-खास बाते बताने जा रहे हैं –
उनका जन्म जन्म वर्ष 1883 में 30 जुलाई को तमिलनाडु के पुडुकोट्टई में हुआ था । जिस दौर में मुथुलक्ष्मी रेड्डी बड़ी हो रही थीं, उस समय बाल विवाह का चलन बहुत आम था । लेकिन मुथुलक्ष्मी ने इसका विरोध किया और अपने माता-पिता को उन्हें शिक्षित करने के लिए राजी किया । मुथुलक्ष्मी की मां चंद्रामाई ने समाज के तानों के बावजूद उन्हें पढ़ने के लिए भेजा । मुथुलक्ष्मी रेड्डी को भी बचपन से ही पढ़ने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । मुथु के पिता एस नारायण स्वामी चेन्नई के महाराजा कॉलेज के प्रिंसिपल थे और मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडू के महाराजा कॉलेज में पढ़ाई की, उस समय तक वह कॉलेज सिर्फ़ लड़कों के लिए ही था । इतना ही नहीं मद्रास मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं । अपनी मेडिकल ट्रेनिंग के दौरान एक बार मुथुलक्ष्मी को कांग्रेस नेता और स्वतन्त्रता सेनानी सरोजिनी नायडू से मिलने का मौका मिला । बस यहीं से उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और देश की आजादी के लिए लड़ने की कसम खा ली । यहां तक कि उन्हें इंग्लैंड जाकर आगे पढ़ने का मौका भी मिला लेकिन उन्होंने इसे छोड़कर वूमेंस इंडियन एसोसिएशन के लिए काम करना ज्यादा जरूरी समझा । जिस समय भारत पर अंग्रेज़ों का राज था उस समय वह सरकारी अस्पताल में सर्जन के तौर पर काम करने वाली पहली महिला बनीं थी । मुथुलक्ष्मी को साल 1927 में मद्रास लेजिस्लेटिव काउंसिल से देश की पहली महिला विधायक बनने का गौरव भी हासिल हुआ । उन्हें समाज के लिए किए गए अपने कामों के लिए काउंसिल में जगह दी गई थी । उस समय बाल विवाह प्रचलित था । मुथुलक्ष्मी ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और मद्रास विधानसभा में काम करते हुए शादी के लिए तय उम्र को बढ़ाने की मांग की । 1914 में, उन्होंने सुंदरा रेड्डी नामक एक डॉक्टर से शादी की । महिलाओं के उत्थान और लैंगिक असमानता से लड़ने के लिए काम करते हुए, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के प्रयासों का समर्थन किया ।
डॉ. रेड्डी की बहन की मृत्यू कैंसर से हुई थी जिसके बाद से वो गहरे सदमे में थी । उन्होंने लोगों के लिए वर्ष 1954 में चेन्नई में वह चेन्नई में अड्यार कैंसर इंस्टिट्यूट की शुरुआत की गई । आपको बता दें कि यह कैंसर अस्पताल अभी भी दुनिया के सबसे सम्मानित कैंसर हॉस्पिटल्स में से एक है । यहां पर हर वर्ष 80,000 से ज्यादा कैंसर से पीड़ित लोगों का निस्वार्थ भाव से इलाज किया जाता है । अपने जीवनकाल में मुथुलक्ष्मी ने कम उम्र में लड़कियों की शादी रोकने के लिए नियम बनाए और अनैतिक तस्करी नियंत्रण अधिनियम को पास करने के लिए परिषद से आग्रह किया । अपने महान योगदान के चलते मुथुलक्ष्मी को 1956 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया । 22 जुलाई 1968 को चेन्नई में उनका निधन हो गया था ।
मुथुलक्ष्मी रेड्डी भारत की पहली महिला विधायक होने के साथ-साथ देश की पहली महिला सर्जन भी थीं । मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने के साथ-साथ लिंगानुपात को बराबर करने और लड़कियों के जीवन को सुधारने के लिए काफी काम किया । तमिलनाडु सरकार ने घोषणा किया है कि वह हर साल 30 जुलाई को 'हॉस्पिटल-डे' के तौर पर मनाएगी ।
.... आपको "हॉस्पिटल-डे" की हार्दिक शुभ-कामनाएं ....