[ ...भूतकाल को कोसने के बदले भविष्य सुधारें... ] “बीत गई, वह बात गई ।" भूतकाल को कोसना और दोष देना बंद करके, उससे सबक लेकर भविष्य के निर्माण हेतु ध्यान दिया जाना चाहिए और इतिहास हमेशा से ही इस बात सीख देता आ रहा है । यदि हम भूतकाल के इतिहास की बातें ही करते रहेंगे तो उसका दुखद पुनरावर्तन हमारे समक्ष अवश्य ही प्रस्तुत होगा । पिछले 70 वर्षों में हमारे देश भारत द्वारा अनेक क्षेत्रों में प्रगति एवं अभूतपूर्व प्रसिद्धि हांसिल किया गया है । स्पेस टेक्नोलोजी में आज भारत विश्व के प्रमुख 5 राष्ट्रों में स्थान रखता है, न्यूक्लियर क्षेत्र में बढ़त बरकरार है, इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी में विश्व को अचंभित किया हुआ है । देश की शैक्षणिक संस्थाओं का स्तर भी वर्ल्ड-क्लास लेवल का होता जा रहा है । वर्ष 1947 में आम मनुष्य की औसत आयु 32 वर्ष थी, जो आजकल 68 वर्ष है । आजादी के बाद देश के सामान्य नागरिक की आय 249.06 थी जो आजकल 1.03 लाख हो गई है और देश के नागरिकों का जीवन-यापन में बहुत सुधार हुआ है । चीन और अमेरिका के बाद भारत का जीडीपी विकास दर, विश्व में तीसरे स्थान पर है । आजादी के बाद संविधान निर्माताओं और नेताओं द्वारा अंग्रेजों की बुराई तथा टीका-टिप्पणी के बदले आधुनिक भारत के निर्माण के लिए, सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से कैसे निजात मिले, इस मुद्दे पर अधिक ध्यान दिया गया ।
उन दूरदृष्टाओं द्वारा सती-प्रथा, बाल-विवाह, समाज में उंच-नीच का भेद मिटाना, अस्पृश्यता निवारण जैसे मुद्दों की प्रधानता सरकारी योजनाओं में दी गई । जमींदारी प्रथा और सामंतवादी मानसिकता में से देश को मुक्त करना तथा विकासशील और उसके बाद विकसित देश एवं राज्य किस प्रकार से बनाया जाए, इस दिशा में रोडमेप तैयार किया जाएँ, इस मामले पर काफी ध्यान दिया गया । सुभाषचंद्र बोस द्वारा वर्ष 1938 में कॉंग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे, उस समय आजाद भारत की एक परिकल्पना की गई थी और उस आयोजन पंच की कल्पना को जवाहर लाल नेहरू द्वारा वर्ष 1950 में अमलीजामा पहनाया गया । उस समय भारत का जीडीपी 10536 करोड़ था, वो आज के समय में 1.68 लाख करोड़ को पार कर गया है । उस दौर की (भूतकाल) सभी सरकारों द्वारा देश निर्माण में कम-ज्यादा मात्रा में, जो कुछ भी योगदान किया गया है, उसकी प्रशंषा करते हुए, भविष्य में हमारे देश की प्रगति में किस रूप में भागीदार हो सकेगी; इसका आत्मचिंतन करें, यही आज का नागरिक धर्म है । देश आपके लिए क्या कर रहा है, इसके स्थान पर राष्ट्रनिर्माण के लिए हम क्या कर रहे है ? इस प्रकार के सवाल आजादी की 71वें वर्ष पर आपसे कियाा जाए तो कोई अनुचित नहीं हैं !!!
9 अगस्त के दिन हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने संसद में “अंग्रेजों, हिंदुस्तान छोड़ो” आंदोलन की दुहाई देते हुए, ‘करेंगे या मरेंगे’ का विचार-विस्तार करते हुए कहा कि, “करेंगे नहीं, करके रहेंगे" उसी दौरान, दूसरी तरफ मराठा समुदाय के लगभग 7 लाख लोग आरक्षण के लिए ढ़ोल पीट रहे थे । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस इस लोक समुदाय/बहुमत को देखकर तत्काल नतमस्तक हुए और घोषणा की गई कि, सरकार उन्हें आरक्षण देने के लिए कटिबद्ध है । हमारे राजनेता, चाहे कॉंग्रेस के हो या बीजेपी के, एनसीपी के हो या शिवसेना के, सभी चलती गाड़ी में सवार हो गए और मराठा समुदाय को आरक्षण देने की खबर को सभी के द्वारा खुशी के रूप मनाया गया । नेताओं द्वारा इस प्रकार के वचन दिए जाने की प्रवृत्ति के कारण ही आज देश और समाज को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है । नेता लोग भी “अभी बोला, अभी फोक" की तरह व्यवहार करते है क्योंकि, नेताओं की नज़र मात्र चुनावी परिणामों पर होती है, न कि, राष्ट्र निर्माण की ओर ! मराठा समुदाय के उदाहरण को गुजरात के हार्दिक पटेल के आंदोलन के स्थान पर रख कर देखें या राजस्थान के गुर्जर समुदाय अथवा हरियाणा और उत्तरप्रदेश के जाट समुदाय के लिए आरक्षण की माँग... मगर सभी जगह कौवे काले ही है । ये सभी नेता भली प्रकार से यह जानते हुए कि, संवैधानिक प्रक्रिया के अलावा किसी भी जाति या समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है और भारतीय संविधान की मर्यादा के तहत आरक्षण प्रदान करना कोई आसान कार्य नहीं है, के बावजूद वादे करते रहते है ।
संविधान निर्माताओं द्वारा आरक्षण प्रथा के रिव्यू करने बाबत प्रावधान सम्बन्धी बात की गई है । उस समय संविधान-कमिटी को विश्वास था कि, संभवतः सात दशकों के बाद तो देश इतना प्रगति कर ही लेगा, जिससे आरक्षण को समाप्त किया जा सकेगा । किन्तु दुर्भाग्यवश चुनावी राजनीति के कारण देश का कोई भी पक्ष, आरक्षण-कोटा कम करने या समाप्त करने के बारे में बोलने की कोई हिम्मत ही नहीं कर सकता है । यदि वास्तव में देखा जाए तो आरक्षण देने का मकसद समाज के दलित, पिछड़े और दबे हुए वर्ग को शिक्षा और सरकारी रोजगारी में प्रमोशन के समान अवसर मिल सके और वे देश की मुख्यधारा के साथ जुड़ सके, के रूप में था । आज के समय में सरकारी नौकरियों का प्रमाण क्रमशः घटकर नामशेष रह गया है । केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार आज के समय में एडहॉक अथवा फिक्स/न्यूनतम वेतन के आधार पर विद्या सहायकों, रक्षा सहायकों, शिक्षण सहायकों, चिकित्सा सहायकों को तैनात करके अपनी गाडी चला रही है । सरकारी कॉलेजों की संख्या बढ़ती नहीं है और शिक्षा का प्राइवेटाजेशन हो गया है । मेनेजमेंट कोटा और एनआरआई केटेगरी में धनवान व्यक्ति, येन-केन-प्रकारेण मेडिसिन और इंजीनियरी कॉलेजों में प्रवेश ले लेते है और कई बार तो लगता है कि, शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण मात्र एक मज़ाक बन कर रह गया है । इसके बाद इंजीनियरी कॉलेजों में प्रवेश तो मिल जाता है, परंतु रोजगारी के मौके कितने ??? प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि, वर्ष 2022 तक देश में से भ्रष्टाचार, गरीबी, आतंकवाद, जातिवाद एवं उंच-नीच समाप्त कर दिया जाएगा । किन्तु विचारणीय प्रश्न है कि, क्या उनका सपना साकार करने का काम आसान है ? क्या मात्र सरकारी घोषणाओं या मुद्दों से यह सब सम्भव है ? मेरे मतानुसार इस प्रकार के स्वप्न साकार करने का भागीरथी प्रयास / काम सम्पूर्ण जन-भागीदारी से ही हो सकते है । “यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असम्भव नहीं है" किन्तु क्या इसके लिए सामाजिक मानसिकता और नागरिकों की सुरक्षा आवश्यक नहीं है ? हम इसके लिए कितने तैयार है ??
भारत में बिस्तर विकृति कहाँ पर नहीं है ? कोई भी समस्या पैदा होती है तो, राजकीय पक्ष उसका निराकरण ढूढ़ने के स्थान पर एक-दूसरे पर दोषारोपण करने की शुरुआत कर देते है । क्या आप लोग गवाह नहीं है कि, कॉंग्रेस एवं बीजेपी द्वारा भूतकाल में एक-दूसरे की सत्तारूढ़ सरकारों के दौरान क्या हुआ था ? वे एक दूसरे की कमियों का इतिहास बयान करने की मानसिकता दर्शाते है ! किन्तु कोई ठोस उपाय और अनुकूल परिणाम लाने की दिशा में कोई काम नहीं होता है !! उत्तरप्रदेश के फायरब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मत-विस्तार गोरखपुर की सरकारी हॉस्पिटल में पिछले एक सप्ताह में 70 से भी अधिक मासूम बच्चों की अपमृत्यु हुई; कारण हॉस्पिटल सत्ताधीशो को, ऑक्सीज़न सप्लाई करने वाली एजेंसी द्वारा 38-38 रिमाइन्डर देने के बावजूद भी, 63 लाख रुपए का बाकी पेमेंट नहीं किया गया जिसके कारण एजेंसी द्वारा गेस सप्लाई बंद कर दिया गया और ऑक्सीज़न सिलिन्डर देना बंद कर दिया गया और परिणाम स्वरूप, ऑक्सीज़न के अभाव में बच्चों की मौत हुई । यह घटना जब टी.वी. चैनलों के माध्यम से सरकार के ध्यान में आई तब सर्वप्रथम तो भाजप की सरकार के मंत्री द्वारा कहा गया कि, इस प्रकार के आपेक्ष बिलकुल ही वाहियात है; ऑक्सीज़न के अभाव से किसी भी बच्चे कि मृत्यु नहीं हुई है बल्कि, अगस्त महीने में बालकों कि मृत्यु दर हर साल ज्यादा ही होती है !! उसके बाद एक मंत्री द्वारा कहा गया कि, खुले में शौचक्रिया किए जाने से यह बीमारी फैली है, जिसके कारण बच्चों के मृत्यु संख्या बढ़ी है !!!
सम्पूर्ण देश में हल्ला होने और चर्चा बढ़ने, लंदन टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयार्क टाइम्स जैसे विश्व स्तर के समाचार पत्रों में भारत के 70 वर्ष कि आजादी की इस उपलब्धि की मजाक और संवाददाता टिप्पणियों से योगी सरकार हरकत में आई और कहा गया कि, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा यह टेंडर दिया गया था ... !!! अंततः योगी सरकार ने स्वीकार किया कि, यह घटना गेस-सप्लायर के कारण घटित हुई है और उस गैस-एजेंसी को ब्लेक-लिस्टेड कर दिया है और मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को भी नौकरी से निकाल दिया गया है; साथ ही बताया गया कि, दोषियों को नहीं छोड़ा जाएगा उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही होगी । अब यक्ष प्रश्न यह है कि, गेस एजेंसी कि बात तो छोड़ो... हॉस्पिटल स्टॉफ को भी पिछले चार महीने से वेतन भुगतान नहीं हुआ था, मामला बाहर आया... । वैसे उत्तरप्रदेश की सरकार “गौरक्षा", “लव-जेहाद", नॉन-वेज आइटम्स की दुकानों के लाइसेन्स रद्द करने जैसे मामलों में जितनी सतर्क है; इतनी जागरूकता मेडिकल स्टॉफ के वेतन भुगतान के बारे में क्यों नहीं थी ? क्या 70 से भी अधिक मासूम बच्चों की चिता पर राजकीय रोटी सेकने का काम योग्य है ? इसके चलते हुए कॉंग्रेस द्वारा भी आदतानुसार योगी आदित्यनाथ का स्तीफ़े की माँग किया गया ? वैसे पिछले 70 वर्षों के दौरान हमारे देश भारत ने अनेक क्षेत्रों में अनौखी प्रगति हासिल किया है किन्तु ऑक्सीज़न सिलिन्डर के अभाव में 70 से अधिक मासूम बच्चों की मृत्यु की घटना बने, यह बड़ी ही शर्मनाक बात है । ...
परंतु इस प्रकार की घटना भारत में कहीं पर भी भविष्य में घटना घटित ना हो; इस बाबत फूलप्रूफ योजना के बारे में सभी राजनीतिक दल संयुक्त रूप से चिंतन करेंगे ? आपको शायद ध्यान हो, एक वर्ष पहले छत्तीसगढ़ राज्य में नसबंदी ऑपरेशन के बाद 32 महिलाओं की मृत्यु हुई... गुजरात राज्य में ब्लड-बेंक की लापरवाही के कारण जूनागढ़ में एचआईवी काण्ड हुआ, जिसमें थेलेसिमिया वाले अनेक बच्चों को एचआईवी पॉज़िटिव रक्त चढ़ा दिया गया... अहमदाबाद में डेढ़ वर्ष पहले मोतियाँ के ऑपरेशन के दौरान 20 लोगों की दृष्टि चली गई और अब स्वाइन-फ्लू से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 200 को पार कर गया है । कहीं पर अतिवृष्टि और कहीं पर अकाल की समस्या... ऐसे में सरकारी तंत्र और राजकीय पक्षों की प्रधानता के मुद्दे राज्यसभा के चुनाव होने चाहिए या नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा !!! मध्यप्रदेश हो या महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश हो या हरियाणा, किसानो की आत्महत्याओं के किस्से दिन-प्रतिदिन बढ़ ही रहे है; क्योंकि मुट्ठीभर उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने / करवाने के कारण किसानों को उचित भाव नहीं मिलते है । किसानों की समस्याओं के निराकरण हेतु देशभर में एक समान नीति ही नहीं है ।
देश के नागरिक वर्तमान कर पद्धति से निराश एवं दुखी है, इसके लिए देश में लाइसेन्स-परमिट राज्य से मुक्त करना अनिवार्य है । सीनियर सिटीजन की आकांक्षा होती है कि, उनकी डिपॉजिट सुरक्षित रहे... डिजिटल इंडिया में ट्रांजेक्सन करने वाले चाहते है कि, बेंकिंग कोस्ट न्यूनतम रहे... बिजली और पेट्रोलियम पदार्थों के भाव काबू में रहे । हमारे देश में आज भी 18% पुरुष और 35% महिलाएँ निरक्षर है । देश के राजमार्गों पर जानवर खुलेआम फिरते है । 38% लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है । विश्व का एक तृतीयांश गरीबी वाली जनता हमारे देश में है । ऐसे समय में सभी राजकीय पक्ष एक-दूसरे से लड़ने-लड़ाने के बदले देश के विकास पर ध्यान दें और नागरिक भी “व्हिसल-ब्लोवर" बनकर इन नेताओं को उनके फर्ज का एहसास कराएँ; यही समय की मांग है । सारे जहाँ से अच्छा... हिंदोस्ताँ हमारा… : जय हिन्द :