रावण का पश्चाताप : हे प्रभु राम, आज
के समय में भी स्त्री के अपहरण का दंड आपके भारतवर्ष में दस वर्षों से अधिक का
कारावास नहीं है । मुझे अपने अपराध का कितना और कब तक दंड देते रहेंगे... आपके
भारतवासी !!! यह सत्य है कि मेरी बहन शूर्पणखा के अपमान (हालांकि किसी की नांक काट
देना कहाँ का न्याय है ) के प्रतिकार में,
मैंने आपकी सीता का छलपूर्वक हरण किया था, लेकिन
मैंने उसका कभी स्पर्श तक नहीं किया । आपने तब ही,
उस अपराध में मुझे प्राण-दण्ड दे दिया था और मैंने कृतज्ञतापूर्वक उसे सहर्ष स्वीकार
भी कर लिया था । जब मैं मृत्य शैय्या पर था तब आपने
आंखों-आंखों में मुझे क्षमा करते हुए अपने भ्राता लक्ष्मण को मेरे पास ज्ञान
प्राप्त करने के लिए भेजा था । मेरी समझ में नही आता है कि एक बार दण्डित किए जाने
के बाद भी भारतवासी युगों-युगों से क्यों मुझे हर वर्ष जलाते और मारते आ रहे हैं ।
एक अपराध के लिए सहस्त्रों मृत्युदंड ? वैसे अपराधी क्या, एक अकेला मैं
ही था ? आपने तो अग्निपरीक्षा लेने के पश्चात भी अपनी
निर्दोष गर्भवती पत्नी (सीता) को मरने के लिए वन में बेसहारा छोड़ दिया था । दंड के
भागी तो आप भी थे, लेकिन आप अब भी अपने लोगों के आराध्य और मर्यादा पुरोषोत्तम
बने हुए हैं... आखिर वह आपकी लीला जो ठहरी ! कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझे जलाकर आपके
भक्तों को अपने अंतर में बैठे पशु से आंख चुराने का अवसर उपलब्ध होता रहा है ? आज एक बार फिर आपके देशवासी मुझे अग्नि के हवाले
करने जा रहे हैं । क्या आपके देश में मुझे कभी न्याय नहीं मिलेगा… ???
आप ही जरा तार्किक
रूप से सोचिए.... रावण में अहंकार तो था, पर
पश्चाताप भी था । रावण में वासना थी, पर पराई
स्त्री को बिना सहमति के छूने का संकल्प भी था । सीता ‘माता’
अगर जीवित मिली तो वह भगवान ‘राम’ के बलशाली
होने का परिचय था । सीता अगर ‘पवित्र’
रही तो वह रावण की मर्यादा की वजह से पवित्र रही है । आज रावण दहन के समय, यह
सवाल पूछता है... आज समाज की भीड़ में है कोई राम... जो आकर सबसे पहले मुझे जलाएं...
और समाज में आ रही नैतिक गिरावट को पहले रोके...। जलता हुआ रावण का पुतला कह रहा है...
पहले अपने अंदर के रावण (अहम) को मारें । हमारी माता-बहनों को भी चाहिए कि, अपने
अंदर की कैकई, ताड़का, मंथरा
और शूर्पणखा जैसी बुराईयों को मारे । आज हमारा खून पानी हो गया है,
पहले गाय के लिए रोटी बनती थी... आज रोटी के साथ कुछ लोग गाय को खा रहे है । आज
हमारे समाज में युवाओं में नशा कैंसर की तरह फैल रहा है । भाई-भाई का रिश्ता, भाई-बहन
का रिश्ता, मां-बाप और बेटे का रिश्ता और नैतिकता तार-तार हो
रहे है । छोटी-छोटी बच्चियों को भी ये समाज के कुछ दरिंदे हवस का शिकार बना रहे
हैं । आज आप लोगो से विनम्र प्रार्थना है कि, रामायण
के पात्रों से शिक्षा ले,
भगवान श्री राम चन्द्र, सीता
माता, लक्ष्मण, हनुमान
जी जैसे महान विभूतियों के चरित्र को अपने जीवन में उतारें और एक बार फिर से समाज
की गिरती हुई साख और मानवता को बचाएं । ...फिर से समाज को मजबूत बनाने का संकल्प
लें...।
लोग पहले अपने अंदर के “रावण” को मारें ।
भारत माता की जय... एक भारत, श्रेष्ठ भारत...
बुराई पर सच्चाई की जीत.... विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभ-कामनाएँ एवं बधाइयाँ....
raawan dahan video
Raavan Dahan at Ram Lila Maidan .... New Delhi