फिल्में
समाज का दर्पण होती है, अक्सर कहा जाता है । फिल्मों के माध्यम से समाज की कड़वी
सच्चाई और कथित धर्म गुरूओं के पाखण्ड को बड़े पर्दे पर हमेशा से विभिन्न तरीकों से
प्रस्तुत किया जाता रहा है । वास्तव में थोड़ा गौर से इस मुद्दे पर नज़र डालें तो
महसूस होता है कि, समाज में अनेकों कथित ‘गौड़मेन' देखने को मिलते है, जो अपने आप
को ‘मेसेंजर ऑफ गोड' के रूप में प्रदर्शित करते आ रहे है । किन्तु हक़ीक़त यह
है कि वे लोग धर्म की आड़ में ऐसी हरकतें करते रहते है कि, उन्हें देखकर रावण को भी
शर्म आ जाए । आस्था के नाम पर इस प्रकार के कई धर्म गुरूओं अर्थात कथित ‘गोडमेन'
के जीवन, आतंक मचाने वाले कारनामों और चकाचौंध से प्रभावित होकर ‘बोलीबुड' में अनेक
फिल्में बन चुकी है । आइए... इस थीम पर बनी कुछ फिल्मों पर एक नज़र डालते है –
1) ओह माय गोड :
यह
एक बहुत ही मजेदार फिल्म थी, जिसे उमेश शुक्ल द्वारा निर्देशित किया गया है । इस
फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती द्वारा ‘गोडमेन' के करेक्टर को बहुत ही अच्छे तरीके से
निभाया गया है । इस फिल्म में मिथुनदा के अलावा परेश रावल और अक्षय कुमार भी है ।
इस फिल्म में मुख्यतः मूर्तियों की दुकान के मालिक (परेश रावल) की कहानी है, जिसकी
दुकान भूकम्प के कारण ध्वस्त हो जाने से उसके द्वारा ‘भगवान' के विरुद्ध केस किया
जाता है । पाखंडी धर्म गुरूओं द्वारा किस प्रकार से धर्म के नाम पर बिजनेस किया
जाता है, इस बात को बहुत ही असरदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है ।
2) ग्लोबल बाबा :
इंडिया के ढोंगी बाबाओं पर आधारित इस
फिल्म ‘ग्लोबल बाबा' को
मनोज सिद्धेश्वरी तिवारी द्वारा निर्देशित किया गया है । इस फिल्म मे दिखाया गया
है कि, किस प्रकार की गलत मान्यताओं और श्रद्धा के नाम पर
लोगों को उल्लू बनाया जाता है । इस फिल्म
में अभिमन्यु सिंह द्वारा ‘ग्लोबल बाबा’ का किरदार निभाया गया है ।
3) पी के :
बहुचर्चित
इस ‘पीके’ फिल्म में सौरभ शुक्ला
द्वारा आज तक अभिनीत किरदारों में से सबसे बेस्ट-परफ़ोर्मेंस वाला
रोल
किया गया है । सौरभ शुक्ला को इस फिल्म में एक तपस्वी महाराज
एवं सेल्फ-स्टाइल्ड ‘गोडमेन’ के रूप में दिखाया गया है । इस तपस्वी महाराज के बहुत
सारी संख्या में अनुयायी होते है, जिनके द्वारा परगृह वासी ‘पीके’ (आमिर खान) को
वापस जाने के प्रयासों को निष्फल बनाने की कोशिश करते है ।
4) जादूगर :
डायरेक्टर
प्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘जादूगर’ में अमिताभ बच्चन, जया प्रदा,
प्राण, अमृता सिंह एवं अमरीश पुरी की मुख्य भूमिकाएँ है ।
इस फिल्म में अमरीश पुरी द्वारा एक पाखंडी ‘धर्मगुरू’ का रोल अभिनित किया गया है,
जिसमें उसके लड़के के द्वारा ही ‘पाखण्ड’ का पर्दाफाश करने के लिए, एक दूसरे जादूगर
की मदद ली जाती है ।
5) सिंघम रिटर्न्स :
’सिंघम
रिटर्न्स’ वर्ष 2011 में आई हुई फिल्म ‘सिंघम’ की सिक्वल थी । रोहित शेट्टी द्वारा
निर्देशित इस फिल्म में अजय देवगन और करीना कपूर की मुख्य भूमिका थी । इस फिल्म
में अमोल गुप्ते द्वारा एक दुष्ट ‘गोडमेन' की भूमिका के माध्यम से सबका
ध्यानाकर्षण किया गया था । इस गोडमेन के अनेक राजनेताओं के साथ हाई-प्रोफाइल
कनेक्सन होते है, जिसके आधार पर वह अनेकों अपराधों को सरअंजाम देता है । आखिर में
अपने ‘सिंघम' द्वारा उस पर शिकंजा कसा जाता है ।
छैलवाणी : भारतीय लोकतन्त्र में सभी
धर्मों का एक समान आदर है । मैं यह कतई विश्वास नहीं करता और मानता हूँ कि,
सभी धार्मिक बाबा लोगों का आचरण खराब होता है । किन्तु सभी धर्मों में कुछ ना कुछ “गोडमेन
या धर्माधिकारियों" के आचरण बाबत अनेक किस्से प्रिंट-मीडिया में और आम जनता
के बीच उजागर होते ही रहते है । यद्यपि इनमे कितनी सच्चाई होती है, इसके बारे में
भी अनेकों सवालिया निशान उठते भी रहते है । किन्तु कई बार पीड़ित/पीड़िता द्वारा डर
या दवाब, समाज में बदनामी का डर से अथवा प्रभुत्त्व के कारण अनेकों पाखंडियों के
अत्याचार के किस्से उजागर ही नहीं होते है और यह एक कटु सत्य भी है । आज के समय
में लोगो को समझना चाहिए कि, हमारे कारण ही इन ‘बाबाओं' का अस्तित्त्व है, जैसे
सूर्यमुखी का फूल सूरज की ओर गतिमान होता है, उसी तरीके से हम अंधश्रद्धा, भक्ति,
कट्टर धार्मिकता, चमत्कार या ट्रिक के नाम पर सब कुछ भूल जाते है और वैज्ञानिक
दृष्टिकोण को बाजू में रखकर तथा अतार्किक बनकर पाखण्ड को नियमित बढ़ावा देते ही
रहते है ।
हाल ही में गुरमीत राम रहीम सिंह के अनुयायियों द्वारा की गई हिंसा और तोड़फोड़ के कारण जो जानहानि और राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुकसान हुआ है, उससे लगता है कि, उनके जहन में अच्छे संस्कार और विचार का अकाल था और जो कुछ वह सब बकवास था । इस सम्बंध में माननीय कोर्ट का संपत्ति जब्त करके बिक्री का आदेश और नुकसानकी भरपाई का निर्णय स्वागत योग्य है । इसके साथ ही सरकार को भी चाहिए कि ऐसे बाबाओं के साथ ‘वोट' की राजनीति से उठकर पूर्ण शक्ति से पेश आना चाहिए । ऐसे बाबाओं और उनके फोलोवर्स के प्रति कोई सम्मान नहीं हो सकता है । सरकार को भी ऐसे धोखेबाजों, ठगबाजों, धूर्त और कपटी बाबाओं के विरुद्ध निश्चिततौर पर कठोर कार्यवाही करके सजा करना चाहिए; चाहे भले वो सुखविंदर कौर (राधे माँ) हो, रामपाल हो, आशाराम हो, नित्यानन्द हो या अन्य कोई बाबा... ये सभी समाज के क्रिमिनल्स है और वास्तव में कड़ी सजा के हक़दार है ।
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आज के सन्दर्भ में कवि प्रदीप द्वारा रचित गीत की याद अनायास ही आ जाती है । अपनी-अपनी राजनीति साधने के लिए हर नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहा है, मानों वह खुद ही पाक साफ हो और शेष सभी गंदे हो । अपने-अपने घोषणा पत्र तो सभी पार्टियों द्वारा जारी तो कर दिए जाते है, परन्तु उन पर न तो कोई विचार ही कर रहा है और ना ही देश को आगे ले जाने की बात कर रहा है । हाँ, एक दूसरे की टांग खींचकर अपने आप को महान जरूर सिद्ध कर रहे है; जबकि हक़ीक़त यह है कि, कोई भी महान नहीं है । ऐसे समय में पुरानी इस फिल्म के इस गाने में मानों संक्षिप्त में सब कुछ समझ में आ गया हो, ऐसा प्रतीत होता है और आज के माहौल में वाकई काफी सटीक भी बैठता है -
देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इंसान....
.... राम के भक्त रहीम के बंदे, रचते आज फरेब
के फंदे,
कितने ये मक्कार ये अंधे, देख लिए इनके भी
धंधे,
इन्ही ही काली करतूतों से, बना ये मुल्क महान,
कितना बादल गया इंसान.....!!!