मेले और त्यौहार भारतीय लोक संस्कृति
की अनूठी पहचान रही है । ग्रामीण अंचलों में तो मेलों का पौराणिक और आर्थिक
महत्त्व कुछ अधिक ही होता है । गुजरात राज्य में आयोजित सबसे बड़े ग्रामीण मेलों में
से “ वौठा मेले” की एक अनूठी ही पहचान है । इस मेले के बारे में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य
यह है कि यह गुजरात में एकमात्र प्रमुख पशु व्यापार मेला है और इसकी महत्त्वता,
पुष्कर (राजस्थान) के प्रसिद्ध ऊँट मेले जैसा दिखता है । आइए... इस मेले के बारे
में कुछ आवश्यक तथ्य और जानकारी हांसील करते है -
वौठा मेला का स्थान : वैसे तो वैठा गांव काफी छोटा है और यहाँ की आबादी लगभग
2000 लोगों की है । यह मेला हर साल वाठ में आयोजित किया जाता
है, जहाँ दो नदियों,
साबरमती और वात्रक के संगम पर गुजरात के, वौठा गाँव में हर साल मनाया जाता है । जिस स्थान पर मेले
आयोजित किया जाता है, उसे सप्तस-संगम भी कहा जाता है क्योंकि यह सात नदियों का संगम
भी माना जाता है । मेला आजोजन के दौरान, लोगो की संख्या लगभग 2 से 5 लाख तक बढ़ जाती है । मेला के
लिए लगभग 3 वर्ग मील का क्षेत्र बना हुआ है । यहाँ सबसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर सिद्धनाथ
का मंदिर है ।
वौठा मेले का आकर्षण : हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक के महीने में प्रत्येक
वर्ष वाठ आयोजित किया जाता है जो अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक नवम्बर के महीने के साथ
मेल खाता है । यह मेला मुख्यतः पशु मेला है इसका मुख्य आकर्षण हैं, गधों की बिक्री
। आमतौर पर बंजारा जनजाति या जिप्सी व्यापारियों द्वारा बिक्री के लिए हर साल लाया
जाता है । मेले मे लाए गए गधों को विभिन्न सुंदर रंगों की एक सरणी में चित्रित करके
अक्सर लाया जाता है और उन्हें इस अवसर पर विभिन्न रंगरूपों में सजाया भी जाता है ।
इस मेलें में गधों के अलावा ऊँट और अन्य जानवरों का भी व्यापार होता है ।
मेले के दौरान कई जातियों और समुदायों
से संबंधित किसानों, मजदूरों और अन्य तीर्थयात्री पूर्णिमा की रात के दिन, पवित्र नदी संगम में डुबकी लेते हैं और
अपनी प्रार्थनाएं करते हैं । मेले के दौरान हस्तशिल्प और खाद्य स्टालों का बड़ा जमावड़ा
होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन सोमनाथ में धार्मिक मेला, सिद्धपुर में एक ऊँट
मेला और शामलीजी के ऐतिहासिक
मंदिर में एक आदिवासी मेला भी साथ मे मनाया जाता है ।
पौराणिक कथाएं वौठा मेला : एक पौराणिक कथा के अनुसार
कहा जाता है कि भगवान शिव और पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिक या कार्तिकेय ने इस जगह
पर भ्रमण किया था । कार्तिकेय, जिन्हें मरुगा नाम से भी
जाना जाता है,
देवों की सेना का कमांडर कहा गया है, यह मेला उन्ही कार्तिकेय भगवान को समर्पित है । बुजुर्गों का कहना है कि यह मेला गुजराती कार्तिक महिने की पूर्णिमा के दौरान
(अक्टूबर-नवम्बर), उसी समय से आयोजित किया जाता है । कार्तिक के महीने में पूर्णिमा
की रात अक्सर नवम्बर माह से संबंधित होने से सटीक बैठता है । इस वर्ष यह मेला 4
एवं 5 नवम्बर को मनाया जा रहा है और मुख्य आकर्षण के दिन रहेंगें ।
वौठा मेला की विशेषता : इस मेले के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह गुजरात में एकमात्र प्रमुख पशु व्यापार मेला है और पुष्कर, राजस्थान में प्रसिद्ध ऊँट मेले के समान है । हालांकि यहाँ केवल एकमात्र जानवरों का कारोबार किया गया है जो मुख्यतः गधें हैं । बिक्री के लिए लगभग 4,000 गधे हर साल लाए जाते हैं । आमतौर पर वंजारा (जिप्सी) व्यापारियों द्वारा गधों को अलग-अलग रंगों में चित्रित किया जाता है और सजाया जाता है और यही इस मेले का मुख्य आकर्षण का केंद्र है ।