गूगल ‘ डूडल ’ ये गूगल की एक सेवा
है जिसके द्वारा ये पूरी दुनिया को कुछ ऐसी चीज, लोगों,
अविष्कारों के बारे में बताता है जो उस दिन से सम्बंधित हो और
महत्वपूर्ण हो । अगर आज (22 नवम्बर) आपने गूगल देखा है, तो आज गूगल का ‘डूडल’ फिर एक
नए रुप में सबके सामने आया है । आज गूगल ने फिर से
इतिहास के पन्नों से एक महिला को हमारे सामने जिंदा कर दिया है । ‘डूडल’ में आपको एक महिला साड़ी में नजर आएगी,
जिन्होंने गले में एक स्टेथोस्कोट (आला) लिए हुए है । साथ ही डूडल
में आप महिला के पीछे एक अस्पताल में कुछ नर्सों को पेसेंट की देखभाल करते भी देख
सकते हैं । आप आज के गूगल ‘डूडल’ में
जिन महिला को देख रहे है वह डॉ. रुख्माबाई राउत हैं । रुख्माबाई राउत ब्रिटिश भारत
के सबसे शुरुआती अभ्यास करने वाली डॉक्टरों में से एक थी । गूगल ने रुख्माबाई राउत
के 153वें जन्मदिन पर ‘डूडल’ बनाकर इन्हें याद किया है और उन्हें ‘डूडल’ बनाकर श्रद्धांजली दी है ।
इनका जन्म मुम्बई में 22 नवम्बर,
1864 को हुआ था । वहीं, इनकी शादी 11 साल की उम्र में ही हो गई था । रुख्माबाई की मां ने भी बाल विवाह को झेला
था । जब वह 14 साल की थी, तब उनकी शादी
कर दी गई थी । जिसके बाद 15 साल की उम्र में उन्होंने रुख्माबाई
को जन्म दिया । जयंतीबाई और जनार्दन पांडुरंग की बेटी रुख्माबाई ने आठ साल की उम्र
में अपने पिता को खो दिया था और रुख्माबाई का विवाह 11 साल
की उम्र में दादाजी भीकाजी उनकी बिना मर्जी के करवा दिया गया था जिसके वो सख्त
खिलाफ थी । भारत में उस समय बाल-विवाह एक आम प्रथा थी । हालांकि शादी के बाद भी वो
अपनी मां के साथ ही रहती थीं । उनके माता-पिता ने हमेशा उनकी पढ़ाई को पूरा करने
में सहयोग दिया । वहीं, शादी के बाद रुख्माबाई अपने पति के
साथ नहीं रहती थीं । उन्होंने अपने माता-पिता के घर में ही रह कर अपनी पढ़ाई को
जारी रखा था । लेकिन उनके पति दादाजी भीकाजी रुख्माबाई को अपने साथ रहने के लिए
मजबूर करते रहते थे । जिसके बाद उन्होंने फैसला लिया कि वह दादाजी भीकाजी के साथ
विवाह सम्बंध में नहीं रहना चाहतीं हैं । सात साल बाद उनके पति ने पत्नी को अपने
साथ रखने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन रुख्माबाई
ने जाने से मना कर दिया । उनके घरवालों ने उनका साथ दिया और कोर्ट में केस लड़ा,
लेकिन दादादी ने यह केस जीत लिया और उन्हें अपने पति के साथ जाने का
आदेश दिया गया । रुख्माबाई ने उस वक्त सराहनीय कार्य किए थे, जब महिलाओं को विशेष अधिकारों से वंचित रखा जाता था । उस दौरान उन्होंने
अपने अधिकारों के लिए अपनी शादी का विरोध करते हुए अपने पति के खिलाफ ही केस लड़ा
था. बता दें कि साल 1884 में दादाजी भीकाजी ने रुख्माबाई के
खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसमें कहा गया था कि रुख्माबाई को आकर
अपने पति के साथ रहना होगा । जिसके बाद कोर्ट ने रुख्माबाई को अधिकारों का पालन
करने को कहा और अगर वह ऐसा नहीं करेंगी तो उन्हें जेल जाना होगा । वहीं, रुख्माबाई ने स्वाभाविक रूप से इनकार कर दिया । साथ ही उन्होंने कहा कि वह
इस शादी को नहीं मानती है । उन्होंने अपने तर्क में कहा कि वह उस उम्र में अपनी
सहमति नहीं दे पाईं थीं । इस तर्क को किसी भी अदालत में इससे पहले कभी नहीं सुना
गया था । रुख्माबाई ने अपने तर्कों से 1880 के दशक में प्रेस
के माध्यम से लोगों को इस पर ध्यान देने पर विवश कर दिया रुख्माबाई ने अपने तर्कों
और प्रेस के माध्यम से लोगों को इस पर ध्यान देने पर विवश कर दिया और इस प्रकार
रमाबाई रानडे और बेहरामजी मालाबारी सहित कई समाज सुधारकों की जानकारी में यह मामला
आया । अपनी मेडिकल की पड़े करने के लिए लंदन गयी
ताकि वे ‘लंदन स्कूल
फॉर मेडिसिन फॉर वीमेन’ से अपनी पढ़ाई कर सके और बाद में भारत
आ गयी । रुख्माबाई राउत ब्रिटिश भारत में शुरुआती
अभ्यास करने वाली डॉक्टरों में से एक थी । वे एक महान सामाजिक सुधारक भी थी । उन्होंने बाल विवाह का पुरजोर
विरोध किया और इसके लिए उन्होंने कई लड़ाई और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अथक प्रयास किये जो सफल भी हुए । उन्ही के प्रयासों से ( एज फॉर कंसेट एक्ट 1891 ) का
मार्ग प्रशस्त हुआ था ।
रुख्माबाई ने ब्रिटिश समय में अपनी पढ़ाई पूरी की जब महिलाओं को उनके मामूली अधिकारों से तक वंचिक रखा जाता था । इसके साथ ही उन्होनें हिंदू मैरिज की व्यवस्था को पुर्नस्थापित करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी जिसकी सफलता उन्हें 1955 में मिली । रुख्माबाई के इस कदम के 68 सालों बाद 1955 में ‘हिंदू मैरिज एक्ट’ पास किया गया जिसमें इस बात को रखा गया कि विवाह के बंधन में रहने के लिए पति-पत्नी दोनों की मंजूरी होना आवश्यक है । रुख्माबाई एक सक्रिय समाज-सुधारक थी, उनकी मृत्यु 91 वर्ष की आयु में 25 सितम्बर, 1991 में हुई थी ।
Rukhmabai and Her Case in hindi .
Rukhmabai and Her Case History हिंदी में। - YouTube