जैसे
ही माँ को पुकारा जाता है हमारी आखो में एक अलग ही चमक देखने को मिलती है । माँ
शब्द में असीम प्यार छुपा हुआ है । माँ को अनेक शब्द माँ, अम्मा,
मम्मी, ममा, आई, माता, माई जैसे रूपों में पुकारा जाता है । माँ शब्द
अपने आप में पूर्ण है जिसकी तुलना किसी से भी नही की जा सकती है ।
वो
कहते है जब ईश्वर ने यह दुनिया बनाया तो उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना माँ ही है,
ईश्वर तो हर किसी के पास तो जा नही सकता है इसलिए उसने अपने से बढकर हम सभी के पास
माँ को भेज दिया । माँ कभी भी अपनी संतान का बुरा नही चाहती है । माँ खुद भूखी सो
सकती है लेकिन कभी भी अपने संतान को भूखा नही सोने देती है और जिस पर माँ की असीम
कृपा हो जाए उसे दुनिया में सर्वश्रेष्ट स्थान मिल जाता है । कहने का तात्पर्य यही
है कि, इस दुनिया में चाहे कितने भी ऋण और कर्ज हो, चुकाए जा सकते है लेकिन माँ के प्यार और ममता के मोल को कभी भी नही
चुकाया जा सकता है; यहाँ तक एक माँ अपने पुत्र को इस संसार
में पाने के लिए सारे दुखो को भूल जाती है एक सन्तान जो की माँ के कलेजे का टुकड़ा
ही होता है जिसे चाहकर भी माँ अपने अपने संतान को कभी भी अपने से अलग होते हुए नही
देखना चाहती है माँ चाहे कितने भी दुःख में न हो लेकिन एक माँ ही अपने संतान के
हित की बात हर घडी सोचती रहती है इसलिए हमे भूलकर माँ के ममता और प्यार का मोल नही
लगाना चाहिए अगर कुछ देना ही है तो हमे अपनी माँ के प्रति हमेशा प्रेम बनाये रखना
चाहिए क्योंकि इस दुनिया में हमारी माँ जैसी कोई दूसरी चीज भी नही है । जब भी
संतान के ऊपर कभी भी आत्म सम्मान की भावना की बात आती है तो कोई भी माँ अपने संतान
को हमेशा प्रथम ही देखना चाहती है और अपने सारे दुखो को भूलते हुए माँ अपने अपने
संतान के हितो को पूरा करने में लग जाती है इसलिए शास्त्रों में भी माँ को भगवान
से बढ़कर माना गया है ।
हमारे
देश भारत में माँ के लिए कोई विशेष तिथि निर्धारित नही है ऐसा इसलिए है की हमे
सिर्फ साल के एक दिन माँ का सम्मान न करके साल के हर के हर दिन माँ का सम्मान करना
सिखाया जाता है । इसके बावजूद आधुनिक समय में एक माँ को सम्मान और आदर देने के
लिये हर वर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में ‘ मातृ-दिवस ’ को मनाया जाता है । ये आधुनिक समय का उत्सव है जिसकी उत्पत्ति उत्तरी
अमेरिका में माताओं को सम्मान देने के लिए हुई थी । बच्चों से माँ के रिश्तों में
प्रगाढ़ता बढ़ाने के साथ ही मातृत्व को सलाम करने के लिए इसे मनाया जाता है । समाज
में माँ का प्रभाव बढ़ाने के लिए इसे मनाया जाता है । पूरे विश्व के विभिन्न देशों
में अलग-अलग तारीखों पर हर वर्ष मातृ-दिवस को मनाया जाता है । भारत में, इसे हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को (मदर्स-डे) मनाया जाता है ।
वो
कहते है न “
जब जब मै माँ के पैरो में जितना झुकता हूँ उतना ही मै दुनिया में
ऊपर उठता चला जाता हूँ ।”
अर्थात
हमे आगे बढ़ना है तो सबसे पहले अपने माँ का आशीर्वाद हमारे पास होना चाहिए और जिस
किसी के पास माँ का आशीर्वाद होंगा फिर उसे आगे बढ़ने और सफल होने से कोई भी रोक
नही सकता है ।
मातृ
दिवस का इतिहास :
प्राचीन काल में ग्रीक और रोमन के द्वारा पहली बार इसे मनाने की
शुरुआत हुयी । हालाँकि, ‘ममता रविवार’ के रुप में यूके में भी इस उत्सव
को देखा गया था । ‘मातृ-दिवस’ का उत्सव
सभी जगह आधुनिक हो चुका है । इसे बेहद आधुनिक तरीके से मनाया जाता है ना कि पुराने
वर्षों के पुराने तरीकों की तरह । अलग-अलग तारीखों पर दुनिया के कई देशों में
मनाया जाता है जैसे यूके, चाईना, भारत,
यूएस, मेक्सिको, डेनमार्क,
इटली, फिनलैण्ड, तुर्की,
ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा, जापान
और बेल्जियम सहित लगभग 46 देशों में इसे मनाया जाता है । ये
सभी के लिए एक बड़ा उत्सव है जब लोगों को अपनी माँ का सम्मान करने का मौका मिलता
है । हमें इतिहास को धन्यवाद देना चाहिये जो मातृ-दिवस की उत्पत्ति का कारण था ।
पूर्व
में, ग्रीक के प्राचीन लोग वार्षिक वसंत ऋतु त्योहारों के खास अवसरों पर अपनी
देवी माता के लिए अत्यधिक समर्पित थे । ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार, रिहिह (अर्थात् बहुत सारी देवियों की माताओं के साथ ही क्रोनस की पत्नी)
के सम्मान के लिए इस अवसर को वो मनाते थे ।
प्राचीन
रोमन लोग हिलैरिया के नाम से एक वसंत ऋतु त्योंहार को भी मनाते थे जो सीबेल
(अर्थात् एक देवी माता) के लिए समर्पित था । उसी समय, मंदिर
में सीबेल देवी माँ के सामने भक्त चढ़ावा चढ़ाते थे । पूरा उत्सव तीन दिन के लिए
आयोजित होता था जिसमें ढ़ेर सारी गतिविधियाँ जैसे कई प्रकार के खेल , परेड और चेहरा लगाकर स्वाँग रचना होता था ।
कुँवारी
मैरी (ईशु की माँ) को सम्मान देने के लिए चौथे रविवार को ईसाईयों के द्वारा भी
मातृ दिवस को मनाया जाता है । 1600 ईस्वी के लगभग इंग्लैण्ड में 'मातृ-दिवस' मनाने उत्सव का एक अलग इतिहास है । ईसाई
कुँवारी मैरी की पूजा करते हैं, उन्हें कुछ फूल और उपहार
चढ़ाते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं ।
वर्ष
1972 में जूलिया वार्ड हौवे (एक कवि, कार्यकर्ता और लेख क)
के विचारों के द्वारा आधिकारिक कार्यक्रम के रुप में यूएस में मातृ दिवस को मनाने
का फैसला किया गया था । जून के दूसरे रविवार को मातृ-शांति दिवस और 2 जून को मनाने के लिए एक शांति कार्यक्रम के रुप में उन्होंने मातृ दिवस की
सलाह दी थी ।
अन्ना
जारविस,
यूएस में मातृ-दिवस (मातृ दिवस की माँ के रुप में प्रसिद्ध) के
संस्थापक के रुप में जाने जाते हैं यद्यपि वो अविवाहित महिला थी और उनको बच्चे
नहीं थे । अपनी माँ के प्यार और परवरिश से वो अत्यधिक प्रेरित थी और उनकी मृत्यु
के बाद दुनिया की सभी माँ को सम्मान और उनके सच्चे प्यार के प्रतीक स्वरुप एक दिन
माँ को समर्पित करने के लिए कहा । अपनी माँ को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए कई
सारे क्रिया-कलापों को आयोजित करने के द्वारा बहुत ही उत्साह और खुशी के साथ लोग
इस दिन को मनाते हैं ।
भारत
में मातृ दिवस : भारत में इसे हर साल मई के दूसरे रविवार को (मदर्स-डे)
देश के लगभग हर क्षेत्र में मनाया जाता है । पूरे भारत में आज के आधुनिक समय में
इस उत्सव को मनाने का तरीका बहुत बदल चुका है । ये अब समाज के लिए बहुत बड़ा
जागरुकता कार्यक्रम बन चुका है । सभी अपने
तरीके से इस उत्सव में भाग लेते हैं और इसे मनाते हैं । विविधता से भरे इस देश में
ये विदेशी उत्सव की मौजूदगी का इशारा है । ये एक वैश्विक त्योहार है जो कई देशों
में मनाया जाता है ।
सभी
के लिए मातृ-दिवस वर्ष का एक बहुत ही खास दिन होता है । जो लोग अपनी माँ को बहुत
प्यार करते हैं और ख्याल रखते हैं वो इस खास दिन को कई तरह से मनाते हैं । ये साल
एकमात्र दिन है जिसे दुनिया की सभी माँ को समर्पित किया जाता है । विभिन्न देशों
में रहने वाले लोग इस उत्सव को अलग अलग तारीखों पर मनाते हैं साथ ही अपने देश के
नियमों और कैलेंडर का अनुसरण इस प्यारे त्योंहार को मनाने के लिए करते हैं ।
समाज
में एक विशाल क्रांति कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसी उच्च तकनीक ले आयी है जो आमतौर पर
हर जगह दिखाई देता है । आज के दिनों में, लोग अपने रिश्तों के बारे में
बहुत जागरुक रहते हैं और इसे मनाने के द्वारा सम्मान और आदर देना चाहते हैं । भारत
एक महान संस्कृति और परंपराओं का देश है जहाँ लोग अपनी माँ को पहली प्राथमिकता
देते हैं । इसलिए, हमारे लिए यहाँ मातृ-दिवस का उत्सव बहुत
मायने रखता है । ये वो दिन है जब हम अपनी माँ के प्यार, देखभाल,
कड़ी मेहनत और प्रेरणादायक विचारों को महसूस करते हैं । हमारे जीवन
में वो एक महान इंसान है जिसके बिना हम एक सरल जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं
। वो एक ऐसी व्यक्ति हैं जो हमारे जीवन को अपने प्यार के साथ बहुत आसान बना देती
है ।
इसलिए, मातृ-दिवस
के उत्सव के द्वारा, हमें पूरे साल में केवल एक दिन मिलता है
अपनी माँ के प्रति आभार जताने के लिए । उनके महत्व को समझने के द्वारा ये खुशी
मनाने का दिन है और उन्हें सम्मान देने का है । एक माँ एक देवी की तरह होती है जो
अपने बच्चों से कुछ भी वापस नहीं पाना चाहती है । वो अपने बच्चों को केवल
जिम्मेदार और अच्छा इंसान बनाना चाहती हैं । हमारी माँ हमारे लिए प्रेरणादायक और
पथप्रदर्शक शक्ति के रुप में है जो हमें हमेशा आगे बढ़ने में और किसी भी समस्या से
उभरने में मदद देती है ।
माँ
के महत्व और इस उत्सव के बारे में उन्हें जागरुक बनाने के लिए बच्चों के सामने इसे
मनाने के लिए शिक्षकों के द्वारा स्कूल में मातृ दिवस पर एक बड़ा उत्सव आयोजित
किया जाता है । इस उत्सव का हिस्सा बनने के लिए खासतौर से छोटे बच्चों की माताओं
को आमंत्रित किया जाता है । इस दिन, हर बच्चा अपनी माँ के बारे
में कविता , निबंध लेखन, भाषण करना,
नृत्य, संगीत, बात-चीत
आदि के द्वारा कुछ कहता है । कक्षा में अपने बच्चों के लिए कुछ कर दिखाने के लिए
स्कूल के शिक्षकों के द्वारा माताओं को भी अपने बच्चों के लिए कुछ करने या कहने को
कहा जाता है । आमतौर पर माँ अपने बच्चों के लिए नृत्य और संगीत की प्रस्तुति देती
हैं । उत्सव के अंत में कक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए माताएँ भी कुछ प्यारे
पकवान बना कर लाती हैं और सभी को एक-बराबर बाँट देती हैं । बच्चे भी अपनी माँ के लिए
हाथ से बने ग्रीटींग कार्ड और उपहार के रुप में दूसरी चीजें भेंट करते हैं । इस
दिन को अलग तरीके से मनाने के लिए बच्चे रेस्टोरेंट, मॉल,
पार्क आदि जगहों पर अपने माता-पिता के साथ मस्ती करने के लिए जाते
हैं ।
ईसाई
धर्म से जुड़े लोग इसे अपने तरीके से मनाते हैं । अपनी माँ के सम्मान के लिए चर्च
में भगवान की इस दिन खास पूजा करते हैं । उन्हें ग्रीटिंग कार्ड और बिस्तर पर
नाश्ता देने के द्वारा बच्चे अपनी माँ को आश्चर्यजनक उपहार देते हैं । इस दिन, बच्चे
अपनी माँ को सुबह देर तक सोने देते हैं और उन्हें तंग नहीं करते साथ ही उनके लिए
लजीज व्यंजन बनाकर खुश करते हैं । अपनी माँ को खुश करने के लिए कुछ बच्चे रेडीमेड
उपहार, कपड़े, पर्स, सहायक सामग्री, जेवर आदि खरीदते हैं । रात में,
सभी अपने परिवार के साथ घर या रेस्टोरेंट में अच्छे पकवानों का
आनन्द उठाते हैं । परिवार के साथ खुशी मनाने और ढ़ेर सारी मस्ती करने के लिए
बच्चों को इस दिन अच्छे से मनाने का पूरा मौका देने के लिए कुछ देशों में मातृ
दिवस एक अवकाश होता है । ये सभी माँओं के लिए एक बहुत ही सुंदर दिन है, इस दिन उन्हें घर के सभी कामों और जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाता है ।
वो
तो बस इस दुनिया के रिवाजो कि बात है- “वरना इस संसार में माँ के
अलावा कोई भी सच्चा प्यार नहीं करता”
आईये
आपको माँ की ममता और माँ के दिखाए रास्ते की एक छोटी सी कहानी बताते है जो हमे माँ
की ममता और आत्म सम्मानपूर्वक जीवन जीने का मार्ग दिखाता है --
शायद
आपको याद हो की अभी कुछ महीनो पहले जापान में बहुत भयानक भूकम्प आया था । उसी समय
दिल को छू लेने वाली एक सच्ची घटना भी हुई ।
भूकम्प
से काफी ज्यादा नुक्सान हो गया था, काफी घर टूट गये थे, जिसकी वजह से बचाव कार्य करने वालो की टीम को वहा पर बुलाया गया ।
तभी
एक बचाव कार्य की टीम का एक व्यक्ति एक टूटे हुए घर की छान-बिन करने पहुचा । छान-बिन
ज्यादा गहराई से नहीं की गई परन्तु कुछ समय बाद वहा उनको एक महिला दिखी जो की बहुत
ही अजीब अवस्था में वहा बैठी थी । अवस्था ऐसी थी जैसे लोग पूजा करने के लिए
मंदिरों में बैठते हैं या फिर आप बोल सकते हैं नमाज़ पढने के लिए मस्जिद में ।
कड़ी
मुश्कत के बाद एक बचाव कार्य की टीम का व्यक्ति उस महिला तक पहुचा और उसने उस औरत
की ओर अपना हाथ बढाया ।
“उस आदमी को लगा की शायद वो महिला जिंदा हो, परन्तु
उसकी पीठ और सर पर काफी चोट लग चुकी थी और छू कर देखा गया तो उस महिला का शारीर
बिलकुल ठंडा हो चूका था” । बचाव दल को समझ आ गया की अब वो
महिला जिंदा ना थी, ऐसा जानने के बाद वो उस घर को छोर दूसरे
घरो की ओर छान-बिन करने चल पड़े ।
लेकिन
फिर कुछ समय बाद उस टीम के हैड ने कहा कि, पता नहीं क्यों ? “मुझे वो घर अपनी तरफ खीच रहा है, कुछ तो है उस घर
में जो मुझे बोल रहा है कि मै उस घर को इस तरह से छोड़ के ना जाऊ” ।
इसलिए
फिर उस टीम के हैड ने अपनी टीम को आदेश दिया कि वो दुबारा से उस घर की अच्छी प्रकार
से जाँच करे । बचाव दल के व्यक्ति फिर दुबारा से उस घर की ओर गये, इस
बार अच्छे से जाँच हुई, उन्होंने उस महिला को उस अवस्था से
निकालने की कोशिश की । जब वो उस महिला को वहा से निकाल रहे थे तब उन्होंने देखा की
वहा बगल में एक टोकरी में 3 महीने का एक बच्चा मखमल के कपडे
में लिपटा हुआ है, जो की उस महिला के शारीर से ढका हुआ था ।
बचाव
दल के अलावा वहाँ और भी बहुत सारे लोग खड़े थे और उन सभी को एक बात समझ में आ गई कि
“उस महिला ने अपने बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी” ।
भूकम्प
के समय जब उस औरत को एहसास हुआ की अब उनका घर गिरने वाला है और उनके पास इतना वक़्त
नहीं है की वो अपने बच्चे को लेकर घर से बाहर जा सके, तो भूकम्प
से अपने बच्चे को बचाने के लिए वो उस अवस्था में बैठ गई । ज़ल्द ही वहाँ डॉ॰ की एक
टीम भी पहुँच गई, बच्चे की जाँच करने के बाद उन्हें पता चला
की बच्चा अभी बेहोश और वो ज़ल्द ही ठीक हो जायेगा । तभी एक व्यक्ति ने उस मखमल के
कम्बल को उस टोकरी में से हटाया, वहाँ उसको एक चिठ्ठी मिली
जिसमे लिख था -
मेरे बच्चे,
अगर तुम बच गये, तो बस इतना याद रखना, कि तुम्हारी माँ तुमसे, बहुत प्यार करती थी...
उस
चिठ्ठी को पढने के बाद,
वहा उपस्थित सभी लोगो की आँखे नम हो गई ।
घुटनों से रेंगते-रेंगते,
कब पैरों पर खड़ा हुआ, तेरी ममता की छाँव में, जाने कब बड़ा हुआ..
काला टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है, मैं ही मैं हूँ हर जगह, माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधा-साधा, भोला-भाला,
मैं ही सबसे अच्छा हूँ, कितना भी हो जाऊ बड़ा, “माँ!” मैं आज भी तेरा बच्चा हूँ ।
कौन सी है वो चीज़ जो यहाँ नहीं मिलती,
सब कुछ मिल जाता है लेकिन “माँ” नहीं मिलती, माँ-बाप ऐसे होते हैं दोस्तों जो ज़िन्दगी में फिर नहीं मिलते, खुश रखा करो उनको फिर देखो जन्नत कहाँ नहीं मिलती...
(Ref. : https://www.shikhabhatt.info/mothers-day-speech-in-hindi.html, http://www.achhiadvice.com/2017/05/10/mother-day-special-speech-in-hindi/, http://www.hindikiduniya.com/events/mothers-day/, )