24 दिसम्बर 2017 को मोहम्मद
रफी जी के 93वें जन्मदिवस पर गूगल ने उन्हें सम्मानित करते
हुए उनकी याद में डूडल बनाकर उनके गीतों को और उनकी यादों को समर्पित किया |
इस डूडल को मुम्बई के चित्रकार साजिद शेख द्वारा बनाया गया ।
मोहम्मद रफ़ी (24 दिसम्बर 1924-31
जुलाई 1980) जिन्हें दुनिया रफ़ी या रफ़ी साहब के नाम से बुलाती है, हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे । अपनी आवाज की मधुरता और परास
की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई । इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम
भी कहा जाता था । मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने अपने आगामी
दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया । इनमें सोनू निगम, मुहम्मद अज़ीज़ तथा उदित
नारायण का नाम उल्लेखनीय है - यद्यपि इनमें से कइयों की
अब अपनी अलग पहचान है । 1940 के दशक से आरंभ कर 1980 तक इन्होने कुल मिलाकर 26,000 गानों का निर्माण किया था जो कि
एक वर्ल्ड रिकार्ड्स है । इनमें मुख्य धारा हिन्दी गानों के अतिरिक्त ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल
हैं ।
रफी साहब
भारत के ऊँचे और विख्यात गायकों में से एक थे । जिन अभिनेताओं पर उनके गाने फिल्माए गए उनमें गुरु दत्त, दिलीप
कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेन्द्रकुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर के
अलावे गायक अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है ।
'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे...' यह गीत सुनते ही आज भी मोहम्मद रफी का चेहरा आंखों के आगे आ जाता है । या दूसरे छोर से देखें, तो मोहम्मद रफी का नाम याद आते ही यही गीत सबसे पहले अंतर में बजने लगता है । आज 31 जुलाई को बॉलीवुड के सबसे मशहूर रहे पार्श्वगायक मोहम्मद रफी साहब को गुज़रे हुए 36 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन चाहे रोमांटिक गाने हों, दर्दभरे नग़मे, शादी-ब्याह का माहौल, देशभक्ति गीत या भजन उनके गाए गीतों का जादू आज भी बरकरार है ।
रफी जी एक
शर्मीले किस्म के व्यक्ति थे । आजादी के समय उन्होंने भारत में रहना पसंद किया ।
रफी जी की शादी बेगम विकलिस के साथ हुई । रफी साहब ने दो शादियाँ की पहली शादी का
एक बच्चा है और दूसरी शादी का 6 बच्चे हैं, कुल
मिलकर 7 बच्चे हुए ।
रफी साहब की गायन की शुरुआत : अपने समय के सबसे मशहूर अभिनेताओं को आवाज़ देने
वाले रफी साहब संभवतः हिन्दुस्तान के एकमात्र गायक हैं, जिन्होंने
किसी अन्य पार्श्वगायक के लिए भी गीत गाए । फिल्म 'रागिनी'
में 'मन मोरा बावरा ...' और 'शरारत' में 'अजब है दास्तां तेरी यह ज़िंदगी...' किशोर के ऐसे
गीत हैं, जिन्हें मोहम्मद रफी ने किशोर कुमार के लिए गाया ।
वैसे मोहम्मद रफी ने अपना पहला फिल्मी गीत
वर्ष 1944 में बनी पंजाबी फिल्म 'गुल
बलोच' के लिए गाया था, जिसके संगीत
निर्देशक श्याम सुंदर थे, लेकिन पहला हिन्दी फिल्मी गीत गाने
का अवसर उन्हें नौशाद ने फिल्म 'पहले आप' में दिया । वर्ष 1946 में मुंबई आकर बस गए रफी साहब
ने वर्ष 1949 में नौशाद के ही संगीत निर्देशन में 'दुलारी' फिल्म के गीतों से सफलता की ऊंचाइयों को छुआ
और उसके बाद का लंबा अरसा हिन्दी फिल्म जगत में 'रफी का युग'
कहा जाता है ।
वैसे बताया जाता है कि रफी ने अपना पहला
सार्वजनिक प्रदर्शन 13 साल की उम्र में तब किया था, जब वह अपने बड़े भाई के साथ एक कार्यक्रम में गए थे और बिजली चले जाने के
कारण केएल सहगल साहब ने गाने से इनकार कर दिया । कहते हैं, इसी
कार्यक्रम में श्यामसुंदर मौजूद थे और उन्होंने ही रफी को मुंबई आने का बुलावा
भेजा था ।
रफी साहब की ख्याति और पहचान : मोहम्मद
रफी साहब को नौशाद द्वारा गाये गीत ” तेरा खिलौना टुटा ” फिल्म – अनमोल घड़ी से
प्रथम बार हिंदी जगत में ख्याति मिली थीं । इसके बाद रफी जी ने शहीद, मेला और दुलारी में भी गाने गाये जो काफी पॉपुलर हुए । बैजू बावरा के
गानों ने रफी जी को फेमस गायक के रूप में स्थापित किया था । बाद में नौशाद ने रफी
को अपने निर्देशन में कई गीत गाने को दिए थे और इसी समय शंकर जय किशन को उनकी आवाज
काफी अच्छी लगी थीं । जयकिशन उस समय राजकपूर के लिये संगीत देते थे लेकिन राज कपूर
को केवल मुकेश की आवाज पसंद थी । ” चाहे मुझे जंगली कहे फिल्म -जंगली, एहसान तेरा होगा
मुझ पर फिल्म- जंगली, ये चाँद से रौशन चेहरा फिल्म- कश्मीर
की कली, दीवाना हुआ तेरा फिल्म- कश्मीर की कली । इन गानों से रफी की ख्याति बहुत ही ज्यादा बढ़ गयी थीं । भारत के
आजादी के समय शंकर जयकिशन, नौशाद तथा सचिन देव बर्मन ने रफी
से उस समय लोकप्रिय गीत गवाये थे । यह सिलसिला 1960 तक चला
था । रफी जी को 1960 में चौदवही
का चाँद नामक शीर्षक गीत के लिये अपना पहला फिल्मफेयर
पुरस्कार मिला था । इसके बाद रफी हब को घराना (1961), काजल (1965),
दो बदन (1966) और नीलकमल (1968) जैसी फिल्मों से दूसरा फिल्मफेयर अवार्ड्स से सम्मानित किया गया था । रफी
जी को तीसरा फिल्मफेयर अवार्ड्स गीत ‘‘ चाहूँगा मै तुझे साँझ
” के लिये पुरस्कार मिला था । भारत सरकार ने रफी जी को 1965 में पद्दम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था । 1965 में रफी जी संगीतकार जोड़ी कल्याण आनंद जी द्वारा फिल्म – ” जब – जब फूल
खिले ”, परदेसिया से ना अखिया मिलाना ”काफी लोकप्रियता मिली
थीं । 1966 में फिल्म- सूरज में सदाबहार गीत गाये थे ।”
बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया हैं ” और इस गीत के लिये रफी जी को चौथा फिल्मफेयर
अवार्ड्स पुरस्कार मिला था ।
इस गीत का
संगीत शंकर निर्देशन प्रख्यात संगीतकार जयकिशन ने दिया था । उसके बाद 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फिल्म ब्रम्हचारी के हिट गाने गाये
थे ” दिल के झरोखे में तुझको बैठाकर ” के लिये पांचवा फिल्मफेयर अवार्ड्स पुरस्कार
से सम्मानित किया गया था ।
मोहम्मद रफी एक ऐसे हरफनमौला गायक हैं जिन्होंने अपने दौर के हर
कलाकार को आवाज दी, हर संगीतकार के
साथ काम किया और अपने समय हिट रहे हर गीतकारों के गीत गाए । 55 बरस की छोटी आयु पाने वाले रफी साहब का करियर विविधता के हिसाब से बहुत
बड़ा था । 1944 से शुरू हुआ उनका यह फिल्मी सफर उनकी सांस
थमने वाले साल 1980 तक जारी रहा ।
रफी
साहब की करियर की शुरुआत 1944 में रिलीज हुई फिल्म 'पहले आप' से हुई । संगीतकार नौशाद के निर्देशन में
उन्होंने अपने पहला गीत गाया । 50 के दौर में रफी का कॅरियर
उतनी गति नहीं पकड़ पाया । रफी को उनके कद के अनुरूप पहचान 1960 के बाद रिलीज हुई फिल्मों से मिली । 'चौदहवीं का
चांद', 'ससुराल', 'घराना', 'प्रोफेसर', 'दोस्ती', 'काजल',
'सूरज', 'ब्रहमचारी', 'नीलकमल',
जैसी फिल्में रफी की वजह से मकबूल हुईं और रफी इन फिल्मों के गीतों
की वजह से ।
लगभग 700 फिल्मों के
लिए 26,000 से भी ज़्यादा गीत गाने वाले रफी साहब ने विभिन्न
भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी और अन्य यूरोपीय भाषाओं में भी गीत गाए । उन्हें
छह बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया और वर्ष 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा ।
मोहम्मद रफी ने अपने करियर में शंकर जशकिशन, नौशाद, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आरडी वर्मन जैसे
संगीतकारों के साथ सबसे ज्यादा जुगलबंदी की । अपने सक्रिय काल के दौरान बॉलीवुड के लगभग हर बड़े
अभिनेता को अपनी आवाज़ से अमर कर देने वाले रफी का 31 जुलाई,
1980 को निधन हो जाने के बाद भारी बारिश के बीच भी मुंबई की सड़कों
पर हज़ारों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी, क्योंकि उनके बीच से
गुज़र रहा था, उस आवाज़ का जनाज़ा, जिसने
सालों तक उनके दिलोदिमाग पर छाए रहकर उन्हें सुकून बख्शा था ।
मोहम्मद रफी के सदाबहार गीत :
ओ दुनिया
के रखवाले, ये है बाम्बे मेरी जान, सर जो तेरा
चकराए, हम किसी से कम नहीं, चाहे मुझे
कोई जंगली कहे, मै जट यमला पगला, चढ़ती
जवानी मेरी, हम काले हुए तो क्या हुआ दिलवाले हैं, ये हैं इश्क-इश्क, परदा है परदा, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों (देशभक्ति गीत), नन्हे
मुन्ने बच्चे तेरी मुठी में क्या है, चक्के पे चक्का (बच्चों
का गीत), ये देश हैं वीर जवानो का, मन
तड़पत हरी दर्शन को आज (शास्त्रीय संगीत), सावन आए या ना आए ।
मधुबन में राधिका, बाबुल की दुआएँ, आज
मेरी यार की शादी हैं (विवाह गीत), चौदहवी का चाँद हो,
हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं, तेरी प्यारी प्यारी
सूरत को, मेरे महबूब तुझे मेरी मुहबत की कसम, बहारो फूल बरसाओ, मै गाऊं तुम सो जाओं, दिल के झरोखे में, बड़ी मुश्किल हैं, हमको तो जान से प्यारी हैं, परदा हैं परदा, क्या हुआ तेरा वादा, आदमी मुसाफिर हैं, मेरे दोस्त किस्सा ये और मैंने पूछा चाँद से ।
संगीत के
क्षेत्र में कई गायक आये है और कई गायक आयेंगे लेकिन जो आवाज और गानों में धुन रफी
साहब ने दी है उनको भुला पाना नामुमकिन है । आज भी वर्तमान में जब हिंदी गानों की
रीमिक्स बनने लगी है, तब भी रफी के गाने आज भी हमारे साथ और बहुत प्रसिद्ध है ।
ऐ फूलों की रानी, बहारों की मलिका
हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन, आरजू (1965)
ऐ नर्गिस-ए-मस्ताना, बस इतनी शिकायत हैं
हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन, आरजू (1965)
आज कल में ढल गया, दिन हुआ तमाम
शंकर जयकिशन, बेटी बेटे
आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले
शकिल बदायुनी, नौशाद, राम और शाम (1967)
आज मौसम बडा बेईमान हैं
आनंद बक्षी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,
लोफर (1973)
आज पूरानी राहों से, कोई मुझे आवाज ना दे
शकिल बदायुनी, नौशाद, आदमी (1968)
आंचल में सजा लेना कलियाँ
मजरुह सुलतानपुरी, ओ. पी. नय्यर,
फिर वही दिल लाया हूँ (1963)
आने से उस के आए बहार
आनंद बक्षी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,
जीने की राह
आप के हसीन रुख पे आज नया नूर हैं
ओ. पी. नय्यर, बहारें फिर भी आयेंगी (1966)
आप के पहलू में आ कर रो दिए
राजा मेहंदी अली खान, मदन मोहन, मेरा साया (1966)
अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की
मजरुह सुलतानपुरी, रोशन, आरती (1962)
अगर बेवफा तुझको पहचान जाते
प्रेम धवन, प्रेम धवन, रात के अंधेरे में (1987)
ऐसे तो ना देखो के हम को नशा हो जाए
सचिनदेव बर्मन, तीन देवियाँ (1965)
अकेला हूँ मैं इस दुनियाँ में
मजरुह सुलतानपुरी, सचिनदेव बर्मन,
बात एक रात की (1962)
अकेले हैं चले आओ जहा हो
कल्याणजी आनंदजी, राज
यह हैं रफी साहब के सदाबहार
नगमें :-
'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं'
फिल्म हीर-राँझा/1970
'बाबूल की दुआएँ लेती जा'
जा तुझको सुखी संसार मिले
फिल्म नीलकमल/1968
'आई हैं बहारें मिटे जुल्मो-सितम'
प्यार का जमाना आया दूर हुए गम
फिल्म राम और श्याम/1967
'बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है'
- फिल्म सूरज/1966
'कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
बेखुदी में भी करार आता नहीं'
-फिल्म दिल दिया दर्द लिया/1966
'पुकारता चला हूँ मैं गली-गली बहार की'
बस एक छाँव जुल्फ की, एक निगाह प्यार की
-फिल्म मेरे सनम/1965
'छू लेने दो नाजुक ओंठों को
कुछ और नहीं ये जाम है'
-फिल्म काजल/1965
'तेरे-मेरे सपने अब इक रंग हैं
जहाँ भी ले जाएँ राहें हम संग हैं'
-फिल्म गाइड/1965
'ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना'
-पिल्म संगम/1964
'तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को
किसी की नजर न लगे'
फिल्म ससुराल/1961
'नैन लड़ जई हैं, तो मनवामा कसक होइबे करी'
-फिल्म गंगा-जमुना/1961
'चाहे मुझे कोई जंगली कहे'
फिल्म कहने दो जी कहता रहे
-फिल्म जंगली/1961
'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया'
-फिल्म हम दोनों/1961
(.... आज रफ़ी साहब को
उनके जन्म-दिवस पर हार्दिक श्रद्धांजलि..... )