‘ गूगल ’ के होमपेज पर भारत में आज दिनांक 11.04.2018 (बुधवार) के दिन, फिर से गूगल ‘ डूडल ’ दिख रहा है । आज ‘गूगल’ ने अपने जाने-पहचाने और अनोखे अंदाज़ में देश के जाने-माने सिंगर और ऐक्टर कुंदन लाल सहगल को उनके 114वें जन्मदिन पर याद किया है । के एल सहगल के नाम से पहचाने जाने वाले इस सुपरस्टार को याद करने के लिए गूगल ने ‘डूडल’ बनाया है । के एल सहगल का जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में हुआ था और उनका देहांत 18 जनवरी 1947 को हुआ था ।
बात करें गूगल डूडल की तो, रंग बिरंगे डूडल में सहगल को एक माइक के सामने गाते हुए दिखाया गया है । गूगल डूडल में सहगल के पीछे कोलकाता की कुछ बिल्डिंग्स भी दिखाई दे रही हैं । गूगल का यह डूडल जानी-मानी कलाकार विद्या नागराजन ने बनाया है । 1932 से 1947 तक का दौर के एल सहगल का था । वह एक सिंगर-ऐक्टर थे और उन्होंने तीन भाषाओं की 36 फिल्मों में काम किया । अपने 15 साल से भी ज़्यादा लम्बे करियर में उन्होंने 185 से ज़्यादा गाने गाए और अपनी एक अलग पहचान बनाई और हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने ।
सहगल साहब को उनकी शानदार आवाज़ और अनोखे स्टाइल के लिए याद किया जाता है । इसके अलावा उन्हें बॉलिवुड का पहला 'सुपरस्टार' भी कहा जाता है ।
वाकई सहगल भारतीय फिल्म जगत के पहले सुपर स्टार थे । उनके पिता अमरचंद जम्मू-कश्मीर के राजा के दरबार में तहसीलदार थे । मां केसर बाई बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थीं । संगीत उन्हें बहुत पसंद था । बेटे को लेकर वो भजन, कीर्तन और शबद सुनाने ले जाती थीं । यहीं से संगीत का कीड़ा कुंदन को लगा । कुंदन को एक्टिंग भी बहुत पसंद थी और इसी कारण से वे रामलीला में ‘सीता’ बनते थे । सूफी संत सलामत यूसुफ की दरगाह पर जाकर गाते थे । कहा तो यह भी जाता है कि एक तवायफ के घर जाते और छुप-छुप कर गाना सुनते थे और उसके बाद घर आकर उस गाने को खुद गाते थे । उन्होंने सुन-सुन कर ही संगीत सीखा । उनका पढ़ने में मन नहीं लगता था, तो स्कूल छोड़ दिया । रेलवे टाइमकीपर बन गए । रेलवे की नौकरी में मन नहीं लगा तो वह टाइपराइटर की नौकरी करने लगे फिर रेमिंगटन कंपनी के लिए टाइपराइटर बेचने लगे । इस नौकरी के सहारे उन्होंने पूरा देश घूमा । इसी दौरान लाहौर के अनारकली बाजार में उनकी मुलाकात मेहरचंद जैन से हुई । दोस्ती हो गई । वह मेहरचंद के साथ कोलकाता आए । कोलकाता में रहते हुए उनकी संगीत की और रूचि बढ़ने लगी । मेहरचंद उन्हें गाने के लिए प्रोत्साहित करते थे और इसी वजह से सहगल ने तमाम बार कहा कि वो जो भी हैं, मेहरचंद की वजह से हैं । सहगल होटल मैनेजर भी बने । लेकिन संगीत से लगाव हर दिन बढ़ता गया । साल 1930 में संगीत निर्देशक हरिश्चंद्र बाली के द्वारा आरसी बोरल रॉय से उनकी पहचान कराई गई । आरसी बोराल ने पान की दुकान पर उन्हें गुनगुनाते सुन लिया था । वो इतने प्रभावित हुए कि सहगल को अपने साथ लाने का फैसला किया । सहगल कलकत्ता में ‘न्यू थिएटर’ से जुड़े । फिल्मी दुनिया में कदम रखने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की । उन्होंने 200 रुपए महीने के वेतन पर बी एन के फिल्म स्टूडियो में काम किया । वहां काम करने के दौरान सहगल साहब की मुलाकात फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज केसी डे, पहारी सन्याल और पंकज मल्लिक से हुई । इसके बाद के एल सहगल ने फिल्म 'मोहब्बत के आंसू' पहली बार अभिनय किया । साल 1932 में ही वह 'जिंदा लाश' और 'सुबह का सितारा' जैसी फिल्मों में नजर आए । सहगल के गायन में फैय्याज़ खां, पंकज मलिक और पहाड़ी सान्याल का भी रोल था । सहगल मुंबई आ गए । उन्होंने करीब 36 फिल्मों में एक्टिंग की । इनमें देवदास भी थी, जिसे उस दौर के लोग दिलीप कुमार की देवदास से बेहतर मानते रहे । उनके गाए गैर फिल्मी गानों में भजन, गजल वगैरह ग़ालिब, ज़ौक जैसे शायरों को उन्होंने गाया और वो स्टार बन गए ।
उस दौर में जो भी गायक आते थे, वे सहगल बनना चाहते थे । सहगल के बाद आने वाले कई लोगों ने उनसे प्रेरणा ली तो कुछ ने उनकी नकल भी की । इनमें मोहम्मद रफी और किशोर कुमार भी शामिल हैं । बता दें कि सहगल ने किसी तरह के म्यूज़िक की ट्रेनिंग नहीं ली थी और वह अपनी मां और दूसरे लोगों के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में गाया करते थे । सहगल को 1932 में उस समय बड़ा ब्रेक मिला जब उन्हें ‘न्यू-थियेटर’ नाम के एक फिल्म स्टूडियो ने तीन फिल्मों में लिया । एक साल बाद, उन्होंने 'पुराण भगत' नाम की फिल्म में गाने गाए । मोहम्मद रफी भी सहगल के बड़े फैन थे । वो नौशाद के पास आए थे कि मैं सहगल साहब के साथ एक गाना गाना चाहता हूं । नौशाद ने फिल्म शाहजहां में 'रूही, रूही, रूही मेरे सपनों की रानी' की दो लाइनें रफी से गवाई थीं । वो गाना सहगल के साथ रफी ने कोरस की तरह गाया था । किशोर कुमार भी सहगल को अपना आदर्श मानते थे । संगीतकार नौशाद द्वारा एक विशेष आग्रह पर उन्हे बिना शराब पिए गाने के लिए मनाने की कोशिश की गई और कहा गया कि एक गाना मेरे कहने पर बिना शराब पिए गाइए । सहगल साहब मान भी गए । गाना बहुत अच्छा रहा । सहगल ने सुना और समझ आया कि बिना पिए तो वो बेहतर गाते हैं । सहगल थोड़ा भावुक थे । उन्होंने नौशाद के कंधे पर हाथ रखा और कहा– मियां नौशाद अली, अगर तुम मुझे इस काम के लिए पहले मना पाते, तो बेहतर होता । सहगल ने कहा कि अब तो शराब मुझे पी चुकी है । ऐसा नहीं होता, तो मैं दुनिया को अपने गानों से और खुश कर सकता था ।
उनके द्वारा गाए हुए गाने खूब पसंद किए गए और सहगल घर-घर में जाना पहचाना नाम बन गए । उनकी सबसे यादगार फिल्मों में भक्त सूरदास (1942) और तानसेन (1943) शामिल हैं । उमर खैयाम, कुरुक्षेत्र और शाहजहां जैसी कई बेहतरीन फिल्में भी उनके हिस्से में हैं । उनकी आखिरी फिल्म परवाना (1947) में रिलीज़ हुई । इस बीच उनका शराब से प्यार बढ़ता जा रहा था । शराब जिंदगी का सबसे जरूरी हिस्सा बन गई । उस दौर में मानते थे कि शराब से उनकी आवाज में सोज़ बढ़ता है । लेकिन इसका असर उनके काम पर दिखाई देने लगा । अफसोस इसी बात का है कि जब तक सहगल को अहसास हुआ, जिंदगी उनके मुट्ठी से फिसलने लगी थी । उन्हें पता था कि ये रेत की तरह है । एक बार फिसलने लगे, तो रोकना सम्भव नहीं होता । ये भारतीय फिल्म जगत के पहले सुपर स्टार की बेबसी की कहानी है ।
जब तक कुंदन लाल सहगल को अपने हालात का अहसास हुआ, बहुत देर हो चुकी थी । काफी बीमार होने पर वो जालंधर में एक संत के पास जाना चाहते थे । लेकिन परिवार चाहता था कि मुंबई में अच्छे डॉक्टर से इलाज कराया जाए । आखिर तय हुआ कि डॉक्टर उनके साथ जाएगा । लेकिन डॉक्टर और संत कुछ नहीं कर पाए और इसके बाद महज 42 साल की उम्र में 18 जनवरी 1947 को जालंधर में उनका निधन हो गया । सहगल के बारे में कहा जाता है कि वो आजाद भारत देखना चाहते थे; हालांकि ऐसा नहीं हो पाया था ।
यकीनन वो शहंशाह-ए मौसिकी थे । आज तमाम जगह उनकी आवाज के गाने सुनाते हुए उनका मजाक उड़ाया जाता है । उन सबके लिए जरूरी है कि वे सहगल को पहले जानें । उस दौर को जानें । उन्हें समझें । शायद तब उनके लिए सिर्फ और सिर्फ सम्मान बचेगा... और ये समझ आएगा कि काश शराब उन्हें इतनी जल्दी न छीन लेती ।
(Ref : https://hindi.firstpost.com/culture/raagdari-102550.html, https://navbharattimes.indiatimes.com/tech/computer-mobile/google-doodle-marks-the-114th-birth-anniversary-of-kl-saigal-today/articleshow/63708217.cms,)
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