‘शहनाई’ का जादू आज भी बरकरार है और समान्यतः हर
शुभ अवसर पर उसको बजाया जाता है । 21 मार्च के दिन, उस्ताद
बिस्मिल्लाह खान को उनके 102वें जन्मदिन पर गूगल ने ‘डूडल’ बनाकर याद
किया गया ।
सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर इस शख्सियत को याद
किया है । यूं तो भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के
डुमराव में हुआ था, मगर वह कम उम्र में ही अपने चाचा अली बख्स के साथ वाराणसी आ
गए थे,
फिर
दालमंडी मे वे रहने लगे । आज भी उनका परिवार वाराणसी में ही रहता है । उस्ताद
बिस्मिल्लाह खान को जिंदगी में बहुत अवार्ड मिले । 1961 में पद्मश्री, 1968 में पद्म
विभूषण,
1980 में
भी पद्मविभूषण और 2001 में भारत रत्न सम्मान मिला था । 21 अगस्त 2006 को 90 वर्ष की आयु
में उनका निधन हो गया ।
उनके बचपन का नाम अमीरूद्दीन था । उन्हें बालाजी मंदिर पर रोज शहनाई बजाने के रूप मे एक अठन्नी मेहनताना मिलता था । बताया जाता है कि, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को जवानी के दिनों में दो ही चीजों की दीवानगी थी । एक तो कुलसुम हलवाइन की कचौड़ियां और दूसरा सुलोचना की फिल्में । बिस्मिल्लाह खान जवानी के दिनों में जो भी कमाते थे अपने इन्हीं दो शौक को पूरा करने पर खर्च कर देते थे । बिस्मिल्लाह खान ताउम्र मस्तमौला रहे और उन्हें फक्कड़ी में जिंदगी जी । लेकिन उनकी शहनाई का जादू कभी कम नहीं हुआ ।
लता
मंगेशकर पर किताब लिखने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता यतींद्र मिश्र ने 'सुर की बारादरी' में उस्ताद
बिस्मिल्लाह खान के साथ कई दिलचस्प बातें की हैं और उनके अनुभव भी साझा किए हैं ।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के बचपन से लेकर जवानी तक के ये किस्से बहुत ही मजेदार हैं, और कमाल के हैं
। बिस्मिल्लाह खान के बारे ऐसा ही एक किस्सा इस किताब से यहां दिया जा रहा है- "वे अपनी जवानी
के दिनों को याद करते हैं । वे अपने रियाज को कम, उन दिनों के
अपने जुनून को अधिक याद करते हैं । अपने अब्बाजान और उस्ताद को कम, पक्का महाल की
कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान व गीता बाली और सुलोचना को ज्यादा याद करते
हैं । कैसे सुलोचना उनकी पसंदीदा हीरोइन रही थीं, बड़ी रहस्यमय
मुस्कराहट के साथ गालों पर चमक आ जाती है...
कहा
जाता है कि शहनाई की मस्त धुन से दुनिया में मशहूर हुए बिस्मिल्लाह खान से
प्रभावित होकर उनसे मिलने के लिए एक बार एक अमेरिकी व्यापार ी वाराणसी पहुंचा ।
उसने मनचाहा पैसे देने की बात कहते हुए अमेरिका चलने की बात कही । जिस पर
बिस्मिल्लाह ने कहा-क्या अमेरिका में मां गंगा मिलेंगी ? गंगा को भी ले
चलो,
तभी
चलूंगा । बताया जाता है कि भले ही उस्ताद बिस्मिल्लाह ने शहनाई वादन से दुनिया में
भारत का डंका बजाया, तमाम अवार्ड जीते, मगर सुना जाता है कि, उनका परिवार आज
तंगहाली में गुजर-बसर कर रहा है । पोते नासिर के मुताबिक पैसे न होने पर घर की
आर्थिक हालत खराब हो चली है । यहां तक कि दादा उस्ताद के जीते हुए अवार्डों की
देखभाल भी नहीं हो पा रही है ।
https://www.youtube.com/watch?v=A7_UsDK4FVc