ये कैसा प्रेम है, मुझको नहीं तुम, याद करते हो
मैं कैसे मान लूँ, तुम मेरी छवि, सीने में धरते हो
दर्द तुमको अगर होता, तो चेहरे से, बयां होता
जुदाई तुमको भाती है, तुम तो ऐसे, संवरते हो
बस एक सूरत है पहचानी, नहीं है, कोई भी नाता
मेरे नज़दीक से, तुम तो फ़कत, ऐसे गुजरते हो
मुझे भी वो हुनर दे दो, फ़कत है पास, जो तेरे
सहारे जिसके ले के तुम, हकीक़त से, मुकरते हो
इस राहे मुहब्बत में, चोट तो, लग ही जाती है
उन्हें तुम भूल के, मधुकर, नहीं अब क्यों उबरते हो