चाह फूलों की थी मुझको, मगर कांटों ने घेरा है
नज़ारा कौन सा कुदरत ने देखो, पर उकेरा है
मुहब्बत की चाह रखना, गुनाह कोई नहीं होता
मगर इस वक्त ने देखो, हर एक, सपना बिखेरा है
रात तन्हाई की देखो, अब तो इतनी हुई लम्बी
ना ही तो नींद आती है, ना ही, होता सवेरा है
खुशी की चाह में मैंने, कभी अपनों की ना मानी
मेरे दिल में आज देखो, गमों का, बस बसेरा है
सफ़र पूरा किया सबने, इन्हीं राहों पे चल चल के
मगर मधुकर देख तुझको, मिला, कातिल लुटेरा है
शिशिर मधुकर