तुझको ख़बर, ए गुल नहीं, तुझ पर शबाब है
ऐसा लगे, ज्यों इस पेड़ पर , लटकी शराब है
नज़रों से मेरी, देख ले तू, खुद को, एक बार
तुझको लगेगा, तुझ पे ये रूप , बेहिसाब है
मुझको थी तेरी जुस्तजू, पर, तू, गैर को मिला
दोष दें, किसको यहाँ, मेरी किस्मत ख़राब है
जिसको पढ़ के, मैं कभी, थक सकता ही नहीं
खुशबू से भरे, हुस्न की तू वो, असली किताब है
तेरे हुस्न की, तारीफ़ मैं, अब किस तरह,करूँ
खुद में ही मधुकर, तू जहाँ में, एक खिताब है