पास हो तुम दिल के इतने कैसे मैं तुमको छोड़ दूँ
जिसमें हैं बस छवियां तेरी वो आईना क्यों तोड़ दूँ
अविरल धार स्नेह की जो बहती है जानिब तेरे
इसका रुख क्यों गैरों के मैं कहने भर से मोड़ दूँ
प्रेम का रिश्ता ये हरगिज़ ख़त्म हो ना पाएगा
तू कहे तो एक नाम देकर सम्बन्ध अपना जोड़ दूँ
हाथ कोई गर तुझे छूने की हिम्मत भी करे
बाँह ऐसे शख्स की मैं कुछ सोचे बिन मरोड़ दूँ
मधुकर कहे जो सुख उसे मिलता है तुमसे बात कर
खूं की हर एक बूँद अपनी तेरी खुशियों पे निचोड़ दूँ