निभाना ही नहीं तुमको, तो क्यों, रिश्ता बनाते हो
इतने नज़दीक आ कर के, कहो क्यों, दूर जाते हो
ज़माने से डरे हो तुम, हर इक शमा, बुझा डाली
अँधेरों में तन्हा कर के, मुझे, हर पल सताते हो
एक तेरा साथ क्या छूटा, मैं तो, ग़मगीन बैठा हूँ
कुछ अपनी कहो, दिन रात तुम, कैसे बिताते हो
तुम्हें मालूम तो होगा, अलहदा, कर नहीं सकते
किसी की सांस में, जब भी तुम, घुल के समाते हो
मुझे तेरी जुदाई ने, तो मधुकर, तोड़ ही डाला
हिज्र के बोझ को, तुम भी कहो, कैसे उठाते हो
शिशिर मधुकर