नज़रें चुरा ली आपने देख कर ना जाने क्यों
मन में हम बसते हैं तेरे बात अब ये माने क्यों
जानते थे जब ज़माना ख़ुदगर्ज होता है बहुत
चल पड़े तेरी मुहब्बत फिर यहाँ हम पाने क्यों
कुछ हश्र देखा है बुरा चाहत का इतना दोस्तों
सोचते हैं ये हाथ अपने इश्क में हम साने क्यों
तुमको तो ये मालूम था तूफां भी आएंगे बहुत
तुम सितम लगने लगे हो आँधियों में ढाने क्यों
मुफलिसी का दौर वो हमको तो अब तक याद है
मधुकर कहे खुद से ये पूछो तुम लगे इतराने क्यों