कोई सोचे भी ये कैसे कि हम ना तुझे चाहेंगे
मेरे तो अक्स भी तेरे हर अंग में नज़र आएँगे
जब तलक साँस है मेरे इस तड़पते सीने में
हर तल्ख मौसम में तेरा साथ हम निभाएँगे
शिशिर मधुकर
22 जून 2016
कोई सोचे भी ये कैसे कि हम ना तुझे चाहेंगे
मेरे तो अक्स भी तेरे हर अंग में नज़र आएँगे
जब तलक साँस है मेरे इस तड़पते सीने में
हर तल्ख मौसम में तेरा साथ हम निभाएँगे
शिशिर मधुकर
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विज्ञानं का छात्र होने के बावजूद मेरे लिए हिंदी कविता के माध्यम से मन के उद्गारों को व्यक्त करना सबसे बड़ा सुकून प्रदान करने वाला है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 1997 में भौतिकी में पी. एच . डी . करने के उपरान्त मैं विगत 18 वर्षों से विज्ञान एवम प्रोद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत प्रोद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान एवुम मूल्यांकन परिषद (टाईफैक ), नै दिल्ली में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हूँ .
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