मुहब्बत के दुश्मनों के हाथों ये जो खून हुए
जिंदगी में ख़त्म फिर वो सारे मेरे जुनून हुए
तेरे आँचल की छाँव ज्यों ही इस सर से हटी
ख़ुशी में झूमते मन आँगन फिर से सून हुए.
जिंदगी तप रही थी सूखे रेत की मानिंद जो
तेरी बाहों में आकर ही उसे कुछ चैन मिला
स्नेह की बारिश का मुझ पर जो करम हुआ
दिल की बंज़र हुई भूमि में हँसी फूल खिला.
गम और ख़ुशी में मन में जो ख़याल आते हैं
गीत और कहानी बन सफों पर उतर जाते हैं
जिंदगी जाने ये कैसे मोड़ पे मुझको ले आई
खतों किताब से गायब वो सभी मज़मून हुए .
जिंदगी है तो परेशानियाँ भी यहाँ पर आऍंगी
कुछ चोटें मगर नासूर बन कर सदा सताएंगी
मेरे अपनों ने दिए घावों को कुछ ऐसा छेड़ा है
अब तो मुद्द्तें हो गई है मुझको वो सुकून हुए .
शिशिर "मधुकर"