कोई रिश्ता फ़कत इक नाम से ना खास होता है
मुहब्बत जो भी बांटेगा वो दिल के पास होता है
परेशां मन जो रहता है गैर दोषी नहीँ इसके
मेरे घर में ही कुछ खामी है ये एहसास होता है
बात कितनी करे कोई अगर उल्फ़त नहीं दिल में
दूरियों का हर समय बीच में आभास होता है
कोई गैरों की पूजा में ही जब मसरूफ़ रहता हो
सामने उसके तो बस अपनों का उपहास होता है
ज़िन्दगी क्या शक्ल लेगी किसे मालूम है मधुकर
सभी का अपना अपना कोई बस कयास होता है