मिलन की चाह की देखो फ़कत बातें वो करता है
कभी कोशिश करे ना कुछ पास आने से डरता है
कोई सच्ची मुहब्बत अब न उसके पास है देखो
मुझे भी इल्म है इसका मैंने कितनों को बरता है
मन की बगिया के सारे फूल अब मुरझा गए मेरी
ना वो आँखों में आँखें डाल अब बाँहों में भरता है
वार मौसम भी करता है दोष उसका नहीं केवल
हवाएं गर्म होने पे कहाँ हरसिंगार झरता है
मुहब्बत की प्यास जिसकी बुझाने को न कोई हो
वो इंसान तो बस मधुकर तड़प तन्हा ही मरता है