कभी जिसके लिए हमनें सभी से बैर किया
एक ठोकर लगी उसने हम ही को गैर किया
ज़माने के सितम एक पल वो सह ना सके
टूट के हमको भी रुस्वा है सरे शहर किया.
कहाँ तो हर रोज़ ही दीदार ए यार होते थे
कितने हँसी सपने आँखों में हम संजोते थे
अब तो मिलने से भी उन्होंने fहै इंकार किया
कैसे जालिम ने दिल पे छुरी से वार किया
हमको मालूम था दुनियाँ तो बहुत संगदिल है
चाहतों को यहाँ मिलती ना कोई मंज़िल है
फिर भी हमनें क्यों तेरी बात पे एतबार किया
झूठ ही तुझ पे अपनी जान को निसार किया
तेरी राहों में अब हम कांटे ना कोई बोएंगे
दर्द ए तन्हाई को बस कन्धों पे अपने ढोएँगे
तेरे जज़्बातों का हमको तो कोई इल्म नहीं
मगर हमनें तो सदा तुझे प्यार बेशुमार किया
जिंदगी माना यहाँ इम्तिहान कड़े लेती है
दर्द को सहने की हिम्मत भी यही देती है
मुहब्बत का मज़ा मधुकर वो क्या समझेंगे
ज़माने ने जिनको यहाँ ना परेशान किया
शिशिर "मधुकर"