ये माना रास्ते मुश्किल हैं और मन उदास है
ज़िन्दगी से नहीं शिकवा अगर रहती वो पास है
हर तरफ आग बरसे है कहीं बादल नहीं दिखते
धरा फिर से हरी होगी मगर पलती ये आस है
बेरुखी जिसने की मुझसे उसे मैंने वहीँ छोड़ा
मगर तुमको नहीं छोड़ा कहीं पे कुछ तो ख़ास है
मुझे मंज़ूर है सब कुछ मगर अपमान चुभता है
ऐसे इंसान की सूरत कभी आती ना रास है
लाख फूलों की राहें हों मगर पीड़ा नहीं थमती
अभी चुभती है पैरों में लगी कुछ ऐसी फांस है
मुहब्बत ढूंढने वालों संभल कर साथिया चुनंना
यहाँ लोगों के बदनों पे बड़ा नकली लिबास है
भंवर रिश्तों के भी मधुकर वहां पर लील लेते हैं
जहाँ ढूंढे से भी मिलता नहीं कोई निकास है