छवि एक दूजे की दिल में, जहाँ में जब समाती है
तभी बदनॉ को आपस में, महक फूलों की आती है
अगर है मैल इस दिल में, हर इक रिश्ता हैं बेमानी
ना जाने क्यों मगर दुनिया यहाँ, इनको निभाती है
एक उल्फ़त के प्यासे को, जहाँ मिलती है ये दौलत
दरो दीवार उस घर की, उसे हर पल बुलाती है
बड़ा ऊँचा शज़र है जो, उसकी फितरत ज़रा देखो
ये बारिश प्रेम की उसको भी, धरती पे झुकाती है
जो खुद को छोड़ दे मधुकर, खुला नदिया के पानी में
तभी बाहों में भर के धार संग, उसको बहाती है