मेरे महबूब इस जनम में तू दीवाना हम जैसा ना पाएगा
हमारी याद बहुत रुलाएगी जब तू औरों को आज़माएगा.
दुनियाँ के डर से भले तूने खुद को हमसे दूर कर लिया
हमको यकीं है पूरा एक दिन तू फिर मेरे करीब आएगा.
दुनियाँ के अपने कायदे हैं मुहब्बत का भी है अपना धरम
हर शख्स जिन्दगी के इस खेल में अपना पात्र निभाएगा
नदियाँ की बहती धारा को तुम कितना भी चाहे रोक लो
एक न एक दिन पानी तो गहरे समुन्दर तक पहुँच जाएगा
वो क्या जानें हमको नशा है दर्द के समुन्दर को पीने का
मुहब्बत का मज़ा तो ऐ मेरे यारों इस हाल में ही आएगा
शिशिर "मधुकर"