चाह तुझसे मिलन की जब तलक सीने में जिंदा है
बड़ा बेचैन सा रहता मेरे मन का परिंदा है
मुहब्बत को बनाया पर सही ना साथ मिल पाया
परेशां इस जमीं पर देख लो हर इक बाशिंदा है
चोट सीने पे लग जाए बिखर जाती हैं खुशियां भी
कोई बनता है फिर साधू कोई बनता दरिंदा है
प्रेम होता नहीं सबको प्रेम की बातें हैं सारी
हर इक रिश्ता ज़माने ने झूठ का बस पुलिंदा है
इबादत सी मुहब्बत तो खुदा को चाहिए मधुकर
ऐसे रिश्तों को तुड़वाने में वो ही असली कारिंदा है