मुहब्बत जिससे होती है सुगंध एक उसमें आती है
उसे पाने की चाहत फिर जो बस मन में जगाती है
ये चेहरा कुछ नहीं दिल से जुड़ा एक आईना समझो
जो मन में चल रहा है बस वो ही सूरत दिखाती है
चाह जिसकी करी वो ही तो देखो ना मिला मुझको
ज़िन्दगी की ये सच्चाई तन्हा मेरे दिल को दुखाती है
छवि महबूब की जिसने बसाई हो फ़कत दिल में
वो ही सिंदूर उसके नाम का सर पे सजाती है
मुहब्बत भी ज़माने में मुकद्दर से मिली है बस
ये किस्मत ही असल महबूब से मधुकर मिलाती है