था मुकद्दर सामने पर भूल हम से हो गई
ज़िंदगी की राह भटके मुस्कुराहट खो गई
झूठ का पहने लबादा साथ में वो आ गया
मन में मेरे बात उसकी बस ज़हर सा बो गई
रोशन करेंगे रास्ता सोचा जली मशाल से
इस शमा की रोशनी भी ज़िंदगी से लो गई
साथ आएगा कोई तो कुछ नया होगा मगर
किस्मत कहीं पे खुल गई और कहीं ये सो गई
हमसे मिली है ज़िंदगी इस राह पे जब भी कभी
मधुकर गले से लग गई और आँसुओं संग रो गई