मेरे दिल क्यूँ मचलता है तुझे तन्हा ही चलना है
आग अपने लगाते हैं तो फिर जलना ही जलना है
हिम से खुद को ढके देखो वो पर्वत मुस्कुराता है
हवाएं गर्म हों उसको तो फिर गलना ही गलना है
ख़ता मैंने करी है तो सज़ा भी मैं ही पाऊंगा
सूरते हाल हो कोई हाथ मलना ही मलना है
वक्त ने तय किया जिस चीज़ को वो हुई हरदम
सांझ आ गई सूरज को फिर ढलना ही ढलना है
जिन्हें आदत पडी हर बात को झूठा घुमाने की
सच उनके कानों को सदा खलना ही खलना है
लाख कोशिश करो तुम रोक लो बह रहा दरिया
समुन्दर जब तलक होगा नीर डलना ही डलना है
मुकद्दर से कोई कैसे लड़े कह दो तुम ही मधुकर
लिखा है जो भी हाथों में उसे फलना ही फलना है